जानिए ‘होली’ के त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें

भारत एक ऐसा देश है जिसमें सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। भारत में प्रत्येक धर्म का सम्मान किया जाता है। भारत वासी सभी त्योहार व पर्व मिलजुल कर मनाते हैं। होली भारत का प्रसिद्ध व बड़ा त्योहार है। रंगों का त्योहार होली पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। कई स्थानों पर केवल रंग खेलने या रंग लगाने की परंपरा है तो कई स्थानों पर होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन करने की परंपरा भी है। प्राचीन समय में होली के त्योहार को होलिका या होलाका कहा जाता था। देश के अलग-अलग हिस्सों में होली के त्योहार को फगुआ व धुलेंडी नाम से भी मनाया जाता है।

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होली का पौराणिक महत्व

प्राचीन समय से ही होली का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता रहा है। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन से हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। इतिहास के अनुसार होली का त्योहार मनाने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। हिन्दू मान्यता के अनुसार होली के दिन से नया संवत शुरू होता है। इसी दिन मनु का जन्म और कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इसलिए रंगों के त्योहार होली का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसी दिन ही भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करते हुए और उसे दर्शन देते हुए नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकश्य का वध किया था। नारद पुराण और प्राचीन ग्रंथों में भी होली पर्व का उल्लेख किया गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण में होली के त्योहार का विशेष उल्लेख देखने को मिलता है। भगवान श्री कृष्ण भी होली खेला करते थे। भगवान कृष्ण की लीलाओं में भी होली का वर्णन किया गया है। साहित्य में महाकवि सूरदास ने होली व वसन्त से संबंधित 78 के करीब पदों की रचना की है।

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होलिका दहन से जुड़ी है प्राचीन कथा

प्राचीन कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक असुर भगवान विष्णु को नहीं मानता था। वह अहंकार में आकर खुद को ईश्वर मानने लगा और कहा कि केवल वही सर्व शक्तिमान है इसलिए राज्य में केवल उसी की पूजा की जाए। अहंकारवश वह अपने राज्य में पूजा- अर्चना और यज्ञ बंद करवाकर ईश्वर की भक्ति करने वाले लोगों को परेशान करने लगा। अन्य लोगों के साथ ही हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भी भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप के मना करने के बावजूद भी प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा।  प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने का कई बार प्रयास किया लेकिन उसके सभी प्रयास असफल रहे। इसका कारण था कि प्रह्लाद की रक्षा खुद भगवान विष्णु करते थे इसलिए प्रह्लाद की भक्ति व विश्वास भगवान के प्रति और प्रबल होता गया।

होलिका ने किया था प्रह्लाद को मारने का प्रयास

हिरण्यकश्यप की होलिका नामक एक बहन भी थी। मान्यता के अनुसार होलिका के पास एक ऐसी चादर या कपड़ा था जिसे ओढ़ने से आग से जलने से बचाव होता था। यह चादर होलिका को भगवान शंकर से मिली थी। प्रह्लाद को मारने की नीयत से होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता बैठ गई। उसने सोचा था कि वह तो उस चादर के कारण जलने से बच जाएगी और प्रह्लाद उस आग में जलकर मारा जाएगा। लेकिन जिसकी रक्षा खुद भगवान करते हैं उसे मौत के घाट उतारना इतना आसान नहीं होता। भगवान की कृपा से वह चादर प्रह्लाद के ऊपर आ गई।  जिसके कारण होलिका उस चिता की आग में जल गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसके बाद से आज तक होली के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका को बुराई व दुर्भावना का प्रतीक मानते हुए होली जलाकर, भगवान द्वारा एक भक्त की रक्षा करने की खुशी मनाई जाती है।

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मुगल काल में भी मनाया जाता था होली का त्योहार

प्रसिद्ध पर्यटक अलबरूनी ने भी अपनी यात्रा के संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। इसके अलावा मुस्लिम कवियों द्वारा भी अपनी रचनाओं में होली के त्योहार का उल्लेख किया गया है। इतिहास के पन्नों में मुगल शासन के समय में भी होली का त्योहार मनाने का ज़िक्र मिलता है। इतिहास में अकबर व जोधाबाई और जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का उल्लेख मिलता है। साथ ही शाहजहां के शासन काल में भी होली का त्योहार मनाने का उल्लेख किया गया है। शाहजहां के समय होली के त्योहार को आब-ए-पाशी यानि रंगों की बौछार और ईद-ए-गुलाबी नामों से जाना जाता था। 

रंगों का त्योहार है होली

रंगों का त्योहार होली हर उम्र व वर्ग के लोगों की पहली पसंद है। प्रेम और सद्भावना के इस त्योहार पर लोग एक दूसरे को गुलाल व रंग लगाते हैं। होली के दिन कोई भी किसी द्वारा रंग लगाने पर गुस्सा नहीं करता । बल्कि यह कहा जाता है कि बुरा ना मानो होली है।

धर्मेन्द्र संधू

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