विश्व का एकमात्र चतुर्मखी मंदिर है पशुपति नाथ पर…

-एक नहीं दो देशों में प्राण-प्रतिष्ठित पशुपति नाथ मंदिर

देवों के देव महादेव भगवान शंकर को ही इस सृष्टि का आदि और अंत माना गया है। यही कारण है कि महादेव शिव का पूजन केवल भारत ही नहीं विश्व भर में स्थापित मंदिरों में होता है। भगवान शिव का एकमात्र एेसा मंदिर भी है, जहां पर पर भोले बाबा चतुर्मुखी शिवलिंग के रुप में विराजमान है। सबसे खास बात यह है कि चतुर्मुखी शिवलिंग वाले पशुपति नाथ नाम से विख्यात  मंदिर नेपाल के बागमती नदी के किनारे काठमांडू अलावा भारत के राजस्थान मंदसौर में भी स्थित है।  सबसे खास बात यह है कि इन दोनों मंदिरों में प्राण-प्रतिष्ठित मूर्तियां एक समान आकृति वाली है। इतना ही नहीं नेपाल स्थित पशुपति मंदिर को यूनेस्को ने  विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। जहां पर हर साल भारी संख्या में विदेश पर्यटक दर्शन करने के लिए आते हैं।

क्या है पशुपति का अर्थ

नेपाल व मंदसौर स्थित पशुपति नाथ मंदिर में पशुपति नाथ का क्या अर्थ है। पशु यानि जीव या प्राणी, पति का अर्थ है स्वामी और नाथ का अर्थ है मालिक या भगवान होता है। इस शब्द के पूर्ण अर्थ की व्याख्या करें तो  इसका मतलब यह कि संसार के समस्त जीवों के स्वामी या भगवान हैं पशुपतिनाथ। पशुपति नाथ को जीवन का मालिक भी कहा गया है।

 

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क्या है पशुपति नाथ मंदिर का इतिहास

पशुपति नाथ मंदिर में स्थापित शिव लिंग के बारे माना जाता है कि यह लिंग इस मंदिर  में वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था। पशुपति नाथ काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के प्रमुख देवता रहे हैं। पशुपति मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था। 605 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण छूकर अपने को धन्य माना था। बाद में इस मंदिर का दोबारा निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था। दीमक लगने के कारण इस मंदिर को भारी नुकसान हुआ। एक बार फिर 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ है। इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप को नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया था। अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल की कई इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयी थी। जबकि पशुपतिनाथ के मुख्य मंदिर और मंदिर के गर्भ गृह को कोई हानि नहीं हुई थी।

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भारतीय ब्राह्मण करते थे मंदिर में पूजा

पशुपति नाथ मंदिर में प्रभु की सेवा करने के लिए वर्ष1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को नियुक्त किया। बाद में माल्ला राजवंश के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया। उस समय से दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त रहे थे। परंतु नेपाल की प्रचंड सरकार के समय में भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली ब्राह्मणों को पूजा का कार्यभार सौंप दिया।

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पशुपति नाथ मंदिर का विशेषता

नेपाल का पशुपति नाथ मंदिर काठमांडू के पास देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठित है। पशुपति नाथ प्रागंण में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की तरफ है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। मान्यता है कि पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है। पांचों मुंह अलग-अलग दिशा और गुणों का परिचय देते हैं। पूर्व दिशा  वाले मुख को तत्पुरुष, पश्चिम दिशा वाले मुख को सदज्योत, उत्तर दिशा वाले मुख को वामवेद या अर्धनारीश्वर, दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा और उपर की दिशा वाले मुख को ईशान मुख कहा जाता है। मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के लिए चार द्वार बने हुए हैं। यह चारों द्वार चांदी से निर्मित हैं। पश्चिमी द्वार की ठीक सामने शिव जी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा है। जो पीतल से बनी हुई है। इस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई अन्य मंदिर और प्रतिमाएं है। पशुपति नाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है।

हिंदू, बौद्ध वास्तुकला की अनुपम कारीगरी

पशुपति नाथ मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का एक अच्छा मिश्रण है। यह मंदिर लगभग 264 हेक्टयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें 518 मंदिर और स्मारक हैं। मंदिर की  छत का निर्माण तांबे से किया गया है । जिनपर सोने की परत चढाई गई है। मंदिर वर्गाकार के एक चबूतरे पर बना है । मंदिर का शिखर सोने का है। जिसे गजुर कहते हैं

 

मंदिर परिसर में स्थापित हैं कई अन्य मंदिर

पशुपति नाथ मंदिर परिसर के भीतर दो गर्भगृह है। एक भीतर और दूसरा बाहर। भीतरी गर्भगृह वह स्थान है जहां शिव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है जबकि बाहरी गर्भगृह एक खुला गलियारा है। भीतरी आंगन में वासुकि नाथ मंदिर, उन्मत्ता भैरव मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, कीर्ति मुख भैरव मंदिर, बूदानिल कंठ मंदिर हनुमान मूर्ति, और 184 शिवलिंग मूर्तियां प्रमुख रूप से विद्यमान हैं। बाहरी परिसर में राम मंदिर, विराट स्वरूप मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंग और पंद्र शिवालय गुह्येश्वरी मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य घाट स्थिति है। पौराणिक काल से ही केवल इसी घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाए जाने की प्रथा है।

मंदिर दर्शन की मान्यता

पशुपति नाथ मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि जो भी इंसान इस मंदिर के दर्शन करता है। उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है, लेकिन शर्त यह है कि शिवलिंग के दर्शन से पहले नंदी के दर्शन न किए जाएं।  यदि वो ऐसा करता है तो फिर अलगे जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है।

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मंदिर की पौराणिक कथाएं

मंदिर के इतिहास बारे कई पौराणिक कथाएं हैं। एक पौराणिक कथा अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर ध्यान निद्रा में  बैठे थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापिस लाने का प्रयास किया तो महादेव ने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था। इसके बाद भगवान शिव भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे। दूसरी कथा अनुसार एक चरवाहे से जुड़ी है। कहते हैं कि इस शिवलिंग को एक चरवाहे द्वारा खोजा गया था जिसकी गाय का अपने दूध से अभिषेक कर शिवलिंग के स्थान का पता लगाया था। तीसरी कथा अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्ग जाने से पहले शिव जी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे। जो बाद में धरती में समा गए, लेकिन उनके धरती में समाने से पहले ही महाबली भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था। उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है।

 

प्रदीप शाही

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