17 तत्वों से निर्मित सूक्ष्म शरीर शिव लिंग में समाहित है समूची सृष्टि 

 

-लिंग के मूल में भगवान ब्रह्रमा, मध्य में भगवान श्री विष्णू और उपर जागृत अवस्था में भोले नाथ हैं विराजमान

-शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग ही हैं भगवान शंकर

देवताओं में भोले नाथ को देवों के महादेव के रुप में पूजा जाता है। वहीं इस सृष्टि में भी भोले नाथ अपने भक्तों के कष्टों व पापों का निवारण करने के लिए  द्वादश ज्योर्तिलिंगों के रुप अवतरित हुए। शास्त्रों अनुसार 17 तत्वों से निर्मित सूक्ष्म शरीर शिव लिंग में ही समूची सृष्टि समाहित है। शिव लिंग के मूल रुप में भगवान ब्रह्रमा, मध्य में श्री हरि विष्णु और उपर के भाग में जाग्रत अवस्था में भोले नाथ विराजमान रहते हैं। इतना ही नहीं शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग को ही भगवान शंकर का साकार रुप माना गया है।

 शिव लिंग है दो शब्दों का मेल

हिंदू परंपरा अनुसार लिंग पूजन को परमात्मा के प्रमाण स्वरुप सूश्र्म शरीर के रुप में पूजा जाता है। शिवलिंग असल में दो शब्दों शिव व लिंग से बना है। शिव का अर्थ कल्याणकारी व लिंग का अर्थ सृजन करना है। शिव लिंग को भगवान शंकर का अंग कहा जाता है।

17 तत्वों से निर्मित सूक्ष्म शरीर शिव लिंग

शिवलिंग को 17 तत्वों  (मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेंद्रियां, कर्मेन्द्रियां और पांच वायु) से निर्मित सूक्ष्म शरीर माना गया है।  शिव लिंग के शरीर से आत्मा के विराजमान होने का प्रमाण मिलता है। शिवलिंग में मुख्‍यत: तीन भाग होते हैं। शिव लिंग का सबसे निचला भाग हमें दिखाई न‍हीं देता है। मध्‍य भाग समतल रहता है और ऊपर का भाग गोलाकार होता है, जिसकी असल में पूजा होती है। सबसे नीचे का भाग भगवान ब्रह्मा जी, मध्‍य भाग श्री हरि विष्‍णु जी और सबसे उपर के भाग में जागृत अवस्था में भोले नाथ खुद विराजमान है। शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग में भगवान शंकर विद्यमान है।  सिर्फ लिंग की ही पूजा करने से इंसान त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णू व भगवान महादेव के अलावा  आदि शक्ति की पूजा कर लेता है। सारी सृष्टि शिवलिंग में समाहित है। यानिक एक-एक कण शिवलिंग में विद्यमान है। शिवलिंग को लिंग और योनि के मिलन के रूप में नहीं, केवल इसे सृष्टि सजृन के रूप में देखना चाहिए।

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भारत में स्थापित 12 ज्योर्तिलिंग

देवों के देव महादेव भारत में  सोमनाथ, वैद्यनाथ, काशी विश्वनाथ, मल्लिकार्जुन,  भीमशंकर, त्रिंबकेश्वर, महाकालेश्वर, रामेश्वर, केदारनाथ, ओंकेश्वर, नागेश्वर, घृष्णेश्वर के रुप में  इन 12 ज्योर्तिलिंगो के तौर पर भक्तों को दर्शन देकर उन के कष्ट दूर कर रहे हैं।

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शिवलिंग है महादेव का निराकार रुप

शिवलिंग का हिंदू धर्म में विशेष महत्‍व व स्‍थान है। शिवलिंग की पूजा कर उनका आशीर्वाद हासिल किया जाता है। महादेव शिव का हर आत्मा में वास माना जाता है।  शिवलिंग महादेव के निराकार रूप को दर्शाता है।  शिवलिंग को देखने के साथ ही मन में महादेव भोले नाथ के  अस्तित्‍व की कल्पना प्रगाढ़ हो जाती है।

क्यों किया जाता है शिव लिंग का जलाभिषेक

भगवान शंकर के शरीर में अपार गर्म उर्जा का भंडार है। यही कारण है कि भोले नाथ कैलाश पर्वत पर विराजमान रहते है। यह क्षेत्र सबसे अधिक ठंडा है। विशाल जटाओं में गंगा जी समाहित होने के कारण भगवान भोले नाथ का मन व मस्तिष्क ठंडा रहता है। शिवलिंग को देवों के देव महादेव का अभिन्न अंग कहा जाता है। जो अति गर्म है। शिव जी के अभिन्न अंग शिव लिंग के बेहद गर्म होने के कारण इस पर जल चढ़ाने की परंपरा है।  इसी कारण मंदिरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है। जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरती है। जो शिवलिंग की अपार गर्मी को शांत करने में अहम भूमिका निभाती है। शिव लिंग के शांत रहने के कारण ही इसमें से निकलने वाली  सकारात्मतक उर्जा भक्तों  के कष्टों का निवारण करती है।  शिवलिंग पर नियमित जल अर्पित करने से आपके मन में संग्रहित नकारात्मक विचार भी  शिवलिंग में समा जाएंगे।

शिवलिंग की पूरी परिक्रमा क्यों नहीं की जाती है ?

शिवलिंग की परिक्रमा बांयी तरफ से शुरु कर  जलधारी के निकले हुए भाग तक की जाती है। फिर  विपरीत दिशा में लौट कर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी की जाती है। जलधारी हिस्से को पैरों से नहीं पार करना चाहिए। क्योंकि यही वह भाग है जहां पर उर्जा और शक्ति का भंडारण  होता है। जलधारी हिस्से को लांघने के समय इंसान की विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं पर उर्जा का बुरा प्रभाव पड़ता है। इंसान को सही ढंग से परिक्रमा कर देव-दोष से बचना चाहिए।

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घरों के पूजा स्थलों में नहीं रखना चाहिए  शिवलिंग

शास्त्रों अनुसार शिवलिंग से हर समय गर्म उर्जा प्रवाहित होती है। इसलिए घरो में शिवलिंग को स्थापित नहीं करना चाहिए। घर में शिवलिंग रखने से कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो जाती है। खासकर महिलाएं  सिर दर्द, स्त्री रोग, जोडो में दर्द, मन अशांत, घरेलू झगड़े, आर्थिक तंगी जैसी समस्यायें घर में जूझने लग जाती है। यदि किसी घर में शिवलिंग रखा है तो उसे निकट किसी मंदिर में दान कर देना चाहिए।

काले रंग के शिवलिंग का पूजन सबसे हितकारी

शिव महापुराण सहित अनेक ग्रंथों में शिवपूजा के अलग-अलग विधान बताए गए हैं। काले रंग के शिवलिंग का पूजन करना सबसे हितकारी होता है। काले रंग को सबसे अधिक शुभ माना गया है। क्योंकि काला रंग किसी भी रंग को परवर्तित नहीं करता। काले रंग का शिवलिंग आसपास की समस्त नकारात्मक उर्जा को अपने आप में समाहित कर लेता है। शिवलिंग उर्जा का स्रोत है।  इसमें से निकलने वाली सकारात्‍मक उर्जा भक्तों के जीवन को खुशहाल बना देती है। पुराणों व शास्‍त्रों में यह भी वर्णित है कि जो इंसान अपने हाथों से शिवलिंग का निर्माण करके उसकी  पूजा करता है। उस पर भगवान शिव की अपार कृपा होती है।  श्रावण माह में शिवलिंग का पूजन व जलाभिषेक का विशेष महत्‍व होता है।

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16 सोमवार का व्रत कर मिलता है मनचाहा वर

धार्मिक रीति रिवाजों अनुसार अविवाहित कन्याओं को  शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति नहीं दी जाती है। तर्क अनुसार शिवजी हमेशा ध्यान में मग्न रहते हैं। उनकी तपस्या भंग न हो जाए। इसी कारण से किसी भी देवी, कन्या या अप्सरा को भगवान शिव के ध्यान से दूर रखा जाता है। अविवाहित कन्या को भगवान शिव के साथ माता पार्वती का पूजन एक साथ करना चाहिए। विवाहित जीवन सुख भरा पाने के लिए  कन्याओं को भगवान शिव के 16 सोमवार का व्रत रखने के लिए कहा जाता है। वहीं दूसरी तरफ विवाहित लोगों को शिव लिंग की पूजा कर संतान का सुख प्राप्त होता है।

कुमार प्रदीप

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