-महाबली रावण ने करवाया था भगवान श्री राम, लक्ष्मण का अपहरण…
-वीर हनुमान ने दिलवाई थी बंधन से मुक्ति
यह सभी जानते हैं कि भगवान श्री राम, माता सीता औऱ लक्ष्मण के बनवासकाल दौरान माता सीता का लंकापति रावण हरण कर लेते हैं। माता सीता को रावण के बंधन से मुक्त करवाने के लिए श्री राम और रावण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में रावण की तरफ से युद्ध करने वाले महाबलशाली मेघनाद, कुंभकर्ण की मौत के बाद रावण चिंतित होने लगा। तभी उसने एक चाल चलते हुए पाताल में रहने वाले अपने भाईयों अहिरावण और महिरावण की मदद से भगवान श्री राम और लक्ष्मण का हरण करवा लिया। तब श्री राम भक्त हनुमान जी ने अपने आराध्य श्री राम व लक्ष्मण को पाताल से मुक्ति दिलाने के लिए पंचमुखी रुप धरा था। आज हम आपको इस रहस्य से अवगत करवाएंगे।
रावण ने कैसे करवाया श्री राम, लक्ष्मण का हरण
मेघनाद की मृत्यु के बाद चिंचित हुए रावण को देखकर उनकी माता कैकसी ने अपने बेटे रावण को पाताल में बसे उसके दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई। रावण यह भली-भांति जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र औऱ जादू टोने के परम ज्ञाता व मां कामाक्षी के परम भक्त हैं। इस तरह उसके दोनों भाई ही उनकी सही ढंग से मदद कर सकते हैं। रावण ने अपने भाईयों को अपने छल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया करने को कहा। परंतु यह जानकारी विभीषण को पता चल गई। तब विभीषण ने वीर हनुमान को श्री राम व लक्ष्मण की सुरक्षा करने की जिम्मेवारी सौंप दी। उस समय श्री राम व लक्ष्मण लंका के सुमेल पर्वत पर एक कुटिया में रह रहे थे। हनुमान ने जी कुटिया के चारों तरफ सुरक्षा घेरा खींच दिया। ताकि कोई भी मायावी राक्षस इस कुटिया में प्रवेश न कर सकें। अहिरावण व महिरावण ने इस सुरक्षा को तोड़ने की कोशिश की, परंतु वह सफल न हो सके। तब महिरावण विभीषण का रुप धर कुटिया में प्रवेश कर गया। महिरावण शिला पर लेटे श्री राम व लक्ष्मण को उठा कर पाताल ले गया। विभीषण को जब यह जानकारी मिली तो वह चिंतित हो गए। तब उन्होंने हनुमान जी को पक्षी का रुप धर पीछा करने के लिए कहा। हनुमान जी पक्षी के रुप में पीछा करते हुए निकुंभला नगर पहुंच गए। रास्ते में कबूतर कबूतरी की बातों से पता चला कि अहिरावण व महिरावण श्री राम व लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया है। जहां वह कामाक्षी देवी समक्ष इनकी बलि चढाएंगे। हनुमान जी बिना देरी किए पाताल पहुंच गए।
पाताल में हनुमान जी की अपने बेटे संग हुई मुलाकात
हनुमान जी को पाताल के मुख्य द्वार पर वानर व मछली के आधे-आधे शरीर वाले द्वारपाल ने भीतर जाने से रोक कर कहा कि मुझे हरा कर ही भीतर जा सकते हो। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। परंतु हनुमान जी के समक्ष वह न टिक सका। तब उन्होंने पूछा कि वीर तुम कौन हो। तो उसने बताया कि वह हनुमान का पुत्र हैं। उनका जन्म एक मछली से हुआ है औऱ मेरा नाम मकरध्वज है। हनुमान जी को मकरध्वज ने बताया कि लंका दहन के समय जब हनुमान जी अपनी अग्नि शांत करने समुद्र में पहुंचे। तो उनका तेज पसीने के रुप में पानी में गिरा। तभी मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला। तो वह तेज माता के गर्भ में प्रवेश कर गया। इस तरह मेरा जन्म हुआ। तब हनुमान जी बताया कि वह ही तुम्हारे पिता हैं। बेटे को गले लगा कर सारी जानकारी दी। मकरध्वज ने कहा कि आप भेष बदल कर कमाक्षी मंदिर में बैठ जाएं। हनुमान जी मधु मक्खी का रुप धर मंदिर में प्रवेश कर माता से कहा कि आप श्री राम व लक्ष्मण की बलि रोकने का समाधान करें। तो माता ने कहा कि वह तो अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हैं। माता ने बताया कि मंदिर जो पांच दीप जल रहे हैं। वह सभी अलग-अलग दिशा में है। यदि इन्हें एक साथ बुझा दिया जाए, तो उनका अंत हो जाएगा।
हनुमान जी कैसे करवाया श्री राम, लक्ष्मण को मुक्त
जब अहिरावण व महिरावण मंदिर में प्रवेश करने लगे। तो हनुमान जी ने महिला स्वर में कहा कि मैं कामाक्षी देवी हूं। आज मेरी पूजा झरोखे से करो। झरोखे में पूजा आरंभ हुई। पूजन के सामान सहित बेहोश श्री राम व लक्ष्मण को वहां चढ़ाया गया। झरोखे में से श्री राम व लक्ष्मण को निकाल कर बंधन मुक्त किया। तब मकरध्वज को श्री राम व लक्ष्मण का ध्यान रखने के लिए कहा।
पंचमुखी रुप धर कैसे दी अहिरावण व महिरावण को सजा
श्री राम व लक्ष्मण को मुक्त करवाने के बाद अहिरावण व महिरावण को सजा देने का काम लंबित था। तब हनुमान जी तत्काल पंचमुखी रुप धारण कर उत्तर में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख औऱ पूर्व दिशा में हनुमान मुख धारण कर मंदिर में जल रहे सभी दियों को बुझा दिया। इसके बाद श्री राम, लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सुवेल पर्वत पर वापिस लौट आए
प्रदीप शाही