-सावन के महीने में इस व्रत का है विशेष महत्व
भारतीय संस्कृति में श्रावण मास यानि सावन के महीने का विशेष महत्व माना जाता है। आधुनिक महत्व के साथ-साथ इस मास का पौराणिक महत्व भी है। श्रावण मास का हर किसी को बेसबरी से इंतज़ार रहता है। खासकर महिलाओं व लड़कियों का उत्साह इस महीने में देखते ही बनता है। यह महीना जहां गर्मी से राहत दिलाता है वहीं हर तरफ हरियाली देखने को मिलती है। मानव मन के साथ ही पेड़-पौधे व पशु-पक्षी सब झूम उठते हैं। श्रावण मास में हरियाली तीज का अपना महत्व है। इसे एक त्योहार या उत्सव के के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का मुख्य उत्सव माना जाता है।
इसे भी पढ़ें…मानसून में इन बातों का रखें ध्यान…फिर आप कहेंगे वाह.. होने दो बरसात
हरियाली तीज
हरियाली तीज का उत्सव पूरे उत्साह के साथ हर साल श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। इस दौरान हर ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। इसी लिए इसे हरियाली तीज कहा जाता है। खासकर इस उत्सव में महिलाओं की भागीदारी अधिक रहती है और महिलाएं व लड़कियां इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। महिलाएं इसके लिए कई दिन पहले ही तैयारियां करने लगती हैं। बड़े वृक्षों की शाखाओं पर झूले डाले जाते हैं। महिलाएं व लड़कियां झूलों का आनन्द लेते हुए खूब नाचती व गाती हैं।
अलग-अलग राज्यों में तीज का त्योहार
पूरे भारत में यह त्योहर मनाया जाता है। पंजाब में तीज के त्योहार का अलग रंग देखने को मिलता है। इस दौरान लड़कियां व महिलाएं एक साथ मिलकर पंजाब का लोक नृत्य गिद्धा डालती हुई मस्ती में झूमती हैं। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में महिलाएं हरियाली तीज को कजली तीज के रूप में मनाती हैं। इसके अलावा राजस्थान में भी तीज का त्योहार उत्साह के साथ मनाने की परंपरा है। तीज के बारे में राजस्थान में एक लोक कहावत प्रचलित है। ‘तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर…’ इसका मतलब है कि सावन महीने की तीज से सभी बड़े त्योहारों व पर्वों की शुरू हुई यह श्रृंखला गणगौर के विसर्जन तक चलेगी। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दशहरा व दीपावली यह सभी बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं। राजस्थान में तीज के त्योहार को इस लिए भी खास महत्व दिया जाता है क्योंकि सावन का महीना राजस्थान जैसे मरुस्थल में गर्मी को शांत करते हुए ठंडक का अहसास करवाता है।
इसे भी पढ़ें…सदियों पुराना विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर…जहां नंदी जी की होती है विशेष पूजा
हरियाली तीज की तैयारियां
पौराणिक महत्व के अनुसार हरियाली तीज का उत्सव भगवान शिव व माता पार्वती के पुनर्मिलन के संदर्भ में मनाने की परंपरा है। महिलाएं इस दिन खास रूप से तैयार होती हैं। इस दौरान मेहंदी लगाने की परंपरा भी है। महिलाएं अपने हाथों, कलाइयों और पैरों पर मेहंदी लगाती हैं और नए सिलाए कपड़े व हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। मेहंदी को सुहाग का प्रतीक भी माना जाता है और इसे लगाने के पीछे आयुर्वेदिक व वैज्ञानिक कारण भी है। मेहंदी की तासीर ठंडी होती है जो मन को शांत रखती है। एक और मान्यता के अनुसार सावन के महीने में काम भावना अधिक बढ़ जाती है। तासीर में ठंडी होने के कारण मेहंदी मन के इन भावों को भी शांत करती है। साथ ही किसी बड़े बरगद के पेड़ की शाखा पर झूला डाला जाता है और इस स्थान पर पूरे गांव की महिलाएं व लड़कियां इस स्थान पर पहुंचकर झूला झूलती हैं।
हरियाली तीज का महत्व
हरियाली तीज में छोटी उम्र की लड़कियों से लेकर बुजुर्ग महिलाएं यहां तक कि हर उम्र की महिलाएं हिस्सा लेती हैं। शहरों व गांवों में खास कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। खासकर नवविवाहित लड़कियां विवाह के बाद आने वाले पहले सावन में मायके आती हैं और अपनी सहेलियों के साथ मिलकर हरियाली तीज मनाती हैं। मायके वालों द्वारा लड़की को खाने-पीने का सामान व उपहार भेजे जाते हैं। विवाहित महिलाओं द्वारा व्रत भी रखा जाता है। व्रत में लड़की की सास व अन्य लोग नवविवाहित लड़की को कपड़े, हरे रंग की चूड़ियां, श्रृंगार का सामान व मिठाई भेंट करते हैं। इसके पीछे कारण है कि नई दुल्हन हमेशा सदा सुहागिन रहे और वंश आगे बढ़े।
इसे भी पढ़ें…यह है कोणार्क के बाद… विश्व का दूसरा सदियों पुराना सूर्य देव मंदिर
हरियाली तीज का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती का कई सौ सालों की साधना के बाद भगवान् शिव से मिलन हुआ था। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 107 बार जन्म लिया लेकिन फिर भी माता पार्वती को भगवान शिव पति के रूप में नहीं मिल सके। माता पार्वती ने जब 108वीं बार जन्म लिया तो इस दिन यानि श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवान शिव माता पार्वती को पति रूप में प्राप्त हुए।
हरियाली तीज का व्रत
भगवान शिव व माता पार्वती के मिलन यानि जब भगवान शिव माता पार्वती को पति रूप में मिले तभी से ही हरियाली तीज के व्रत की प्रथा आरंभ हुई। मान्यता है कि हरियाली तीज पर जो विवाहित महिलाएं यह व्रत रखकर व सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा करती हैं वह सदा सुहागिन रहती हैं। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने कुंवारी कन्याओं को यह आशीर्वाद दिया था कि जो कुंवारी कन्या इस दिन व्रत रखते हुए भगवान शिव व माता पार्वती की आराधना करेगी, उसे योग्य वर मिलेगा और साथ ही शादी में आने वाली सभी बाधाएं भी दूर होंगी। इसके अलावा विवाहित महिलाओं को पति का सौभाग्य प्राप्त होगा और वैवाहिक जीवन सुखी होगा। आज भी विवाहित महिलाओं व कुंवारी लड़कियों द्वारा यह व्रत रखकर भगवान शिव व माता पार्वती पूजा अर्चना करने की प्रथा जारी है।
धर्मेन्द्र संधू