सामान्य से श्लोक का गूढ़तम भावार्थ

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

सरल-सा अर्थ है, ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। मेरे देवता हो।’

बचपन से प्रायः सबने पढ़ी है। छोटी और सरल है इसलिए रटा दी गई है। बस त्वमेव माता भर बोल दो, सामने वाला तोते की तरह पूरा श्लोक सुना देता है।

मैंने ‘अपने रटे हुए’ कम से कम 50 मित्रों से पूछा होगा, ‘द्रविणं’ का क्या अर्थ है? संयोग देखिए एक भी न बता पाया। अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द ‘द्रविणं’ पर सोच में पड़ गए।

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द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। आखिर ‘लक्ष्मी’ भी कहीं टिकती है क्या!

कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका ‘वरीयता क्रम’। ज़रा देखिए तो! समझिए तो!

सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु! तुम माता हो!

फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेवं!

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वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आना है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में ‘द्रविणं’ अर्थात धन। जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो।

रह-रहकर सोचता हूं कि प्रार्थनाकार ने वरीयता क्रम में जो धन-द्रविणं सबसे पीछे है, हमारे आचरण में सबसे ऊपर क्यों आ जाता है? इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता से पिता तक, बंधु से सखा तक सब नीचे चले जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं।

वह कीमती है, पर उससे ज्यादा कीमती और भी हैं। उससे बहुत ऊँचे आपके अपने।

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अनगिनत प्यारी से प्यारी प्रार्थनाओं में न जाने क्यों अनजाने ही एक अद्भुत वरीयता क्रम दर्शाती यह प्रार्थना मुझे जीवन के सूत्र और रिश्तों के मर्म सिखाती रहती है।

बार-बार ख्याल आता है, द्रविणं सबसे पीछे बाकी रिश्ते ऊपर। बाकी लगातार ऊपर से ऊपर, धन क्रमश: नीचे से नीचे!

जब गुरूजनों से जाना इस अनूठी प्रार्थना का यह पारिवारिक पक्ष’ और ‘द्रविणं’ की औकात पर मित्रों से सत्संग होता है, एक बात कहना नहीं भूलता!

याद रखिये दुनिया में झगड़ा रोटी का नहीं थाली का है! वरना वह रोटी तो सबको देता ही है!

चांदी की थाली यदि कभी आपके वरीयता क्रम को पलटने लगे, तो इस प्रार्थना को जरूर याद कर लीजिये।

हमेशा ख्याल रहे कि क्रम माता च पिता, बंधु च सखा है-
🙏जय श्री राम 🙏🏽

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