-समुद्र की गहराईयों में मिला मंदराचल पर्वत
-मंदराचल पर्वत के मध्य मिले नाग की आकृति के चिह्न
हमारी सदियों पुरानी सनातन सभ्यता के मौजूदा समय में मिलने वाले प्रमाण इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हमारी यह पौराणिक घटनाएं, इन घटनाओं से संबंधित हमारे पौराणिक पात्र कल्पना नहीं हकीकत को ब्यां करते हैं। आज हम आपको सदियों पुरानी एक पौराणिक घटना के सत्य से अवगत करवाते हैं। हम सभी ने देवताओं और दानवों के एक साथ समुद्र मंथन की घटना को सुना या पढ़ा है। यह घटना पूर्णतौर से सत्य हैं। वैज्ञानिकों ने समुद्र की गहराईयों में समुद्र मंथन वाले मंदराचल पर्वत को ढूंड निकालने में सफलता हासिल की है। मंदराचल पर्वत के मध्य नाग की आकृति के चिह्न का मिलना उस घटना को प्रमाणित करता है।
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किस समुद्र में मिला मंदराचल पर्वत
गुजरात में सूरत के ओलपाड से लगे पिंजरत गांव के समुद्र में आज से लगभग 31 साल पहले भगवान श्री कृष्ण की समुद्र में समाई द्वारिका नगरी को ढूंडने की शुरुआत की गई। इस अभियान को सफलता भी मिली। गोताखोरों की टीम को प्राचीन द्वारिका नगरी के अवशेष भी मिले थे। इस अभियान में डॉ. एसआरराव शोधकार्य कर रहे थे। उनके साथ सूरत के मितुल त्रिवेदी भी सहयोग कर रहे थे। द्वारिका नगरी के अवशेषों की छानबीन के लिए लगातार जारी अभियान दौरान विशेष कैप्सूल में मौजूद डॉ. राव और त्रिवेदी समुद्र के भीतर 800 फीट तक की गहराई में चले गए। तब उन्हें समुद्र के गर्भ में एक विशाल पर्वत मिला था। इस पर्वत पर घिसाव के कुछ विशेष निशान नजर आए। वैज्ञानिकों की इस टीम के लिए पर्वत का मिलना हैरानी से कम नहीं था। ओशनोलॉजी विभाग ने पर्वत पर अपनी रिसर्च शुरु कर दी। पर्वत के विशेष कॉर्बन टेस्ट किए गए। टेस्ट के बाद पता चला कि यह पर्वत वहीं मांधार (मंदराचल) पर्वत है। जो पौराणिक काल में समुद्रमंथन के लिए इस्तेमाल हुआ था।
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गुजरात और बिहार के मांधार पर्वत एक समान
दक्षिण गुजरात के पिंजरत गांव के समुद्र की गहराईयों में मिला पर्वत और बिहार के भागलपुर में मौजूद मांधार पर्वत एक समान हैं। दोनों ही पर्वतों में ग्रेनाइट भारी मात्रा में मौजूद है। सबसे खास बात यह है कि इन दोनों पर्वतों के मध्य नाग की आकृति भी मौजूद है। गौर हो समुद्र की गहराईयों में मिलने वाले पर्वत इस तरह के नहीं होते हैं।
समूद्र में मिले पर्वत की वीडियो में भी पुष्टि
ओशनोलॉजी विभाग ने दो साल पहले अपनी वेबसाइट पर लगभग 50 मिनट का एक वीडियो जारी किया है। इसमें पिंजरत गांव के समुद्र से दक्षिण में 125 किलोमीटर दूर 800 फीट की गहराई में समुद्र मंथन में प्रयुक्त होने वाले मंदराचल पर्वत मिलने की बात भी कही है। वीडियो में द्वारिका नगरी के अवशेष मिलने की भी जानकारी दी गई है। ओशनोलॉजिस्ट वेबसाइट पर मौजूद आर्टिकल में विभाग द्वारा इस बात की पुष्टि कर दी गई है। आर्कियोलॉजी विभाग ने सबसे पहले अपने तरीके से टेस्ट किए। इनसे साफ हुआ कि पर्वत पर जो निशान नजर आ रहे हैं, वह निशान पानी के घर्षम से नहीं पड़े थे। इसके बाद एब्स्यूलूट मैथड, रिलेटिव मैथड, रिटन मॉर्कर्स, एईज इक्वीवेलन्ट स्ट्रेटग्राफिक मॉर्कर्स एवं स्ट्रेटीग्राफिक ढंग से औऱ प्राचीन तथ्यों के अनुसार भी शोध की गई।
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द्वारिका नगरी के पास ही हुआ था समुद्र मंथन
द्वारिका नगरी के पास ही देवताओं और दानवों में अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। समुद्र के मंथन के लिए मंदराचल पर्वत का उपयोग किया गया था। समुद्र मंथन के दौरान इतनी बड़ी रस्सी न होने पर वासुकी नाग का प्रयोग किया गया था। समुद्र मंथन के दौरान हलाहल भी निकला था। जिसे महादेव शिव ने अपने कंठ में धारण कर इस ब्रह्मांड को खतरे से बचाया। इन पर्वतों के मध्य जो निशान हैं, वह उसी वासुकि नाग के लपेटने से ही हुए माने जाते हैं।
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प्रदीप शाही