-प्रदीप शाही
इस धरती पर पेड़, पौधे इंसानी जीवन चक्र को बनाए रखने में अहम रोल अदा करते हैं। भारतीय प्राचीन सभ्यता के अनुसार ही नहीं साइंस ने इंसान, जानवरों के अलावा पौधों में भी जीवन होना स्वीकार किया है। इस धरती पर कई पेड़ ऐसे भी हैं, तो हजारों साल से विद्यमान है। कुछ इसी तरह से वेद और पुराणों में भी एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है। जिसे कल्पवृक्ष कहा गया था। हिंदू मान्यता अनुसार कल्पवृक्ष के नीचे बैठ कर इंसान जो भी कामना करता है। उसकी वह कामना पूर्ण होती है। सबसे अहम बात यह है कि कल्पवृक्ष आज भी इस धरती पर विद्यमान है।
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क्या है कल्पवृक्ष?
पौराणिक ग्रंथों अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले अमूल्य रत्नों में से एक कल्पवृक्ष भी था। मंथन के दौरान इस कल्पवृक्ष को देवराज इंद्र को प्रदान कर दिया गया था। देवराज इंद्र ने कल्पवृक्ष की स्थापना हिमालय के उत्तर में स्थित सुरकानन वन में कर दी थी। पद्मपुराण में पारिजात को ही कल्पवृक्ष कहा गया है।
भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में विद्यमान है कल्पवृक्ष
समुद्र मंथन में निकले कल्पवृक्ष की प्रजाति भारत ही नहीं विश्व के कई देशों की धरती पर विद्यमान है। भारत में इस वृक्ष का साइंटिक नाम बंबोकेसी है। जबकि विदेश में इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। भारत, फ्रांस, इटली के अलावा दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में इस प्रजाति का वृक्ष पाया जाता है। बाकी देशों में इसका नाम बाओबाब भी है।
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वनस्पति के माहिरों का मानना है कि यह वृक्ष एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है। इसकी टहनी लंबी और पत्ते लंबे होते हैं। इसका तना बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है। इसका फल नारियल की तरह दिखाई देता है। जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। कमल के फूल जैसा दिखाई देने वाला इसका फल एक छोटी सी गेंद जैसा प्रतीत होता है। इस वृक्ष की विशेषता यह भी है कि यह वृक्ष कम पानी में भी जीवंत रहता है।
भारत के किन प्रांतों में पाया जाता है यह वृक्ष
भारत में कल्पवृक्ष के औषधीय गुणों के कारण इसका पूजन भी किया जाता है। भारत में यह वृक्ष नर्मदा, कर्नाटक, रांची, काशी, अल्मोड़ा के अलावा उत्तर प्रदेश के बारांबकी में पाया जाता है। इसके अलावा ग्वालियर के पास कोलारस में भी दो हजार साल पुरान एक कल्पवृक्ष पाए जाने का समाचार है। इतना ही नहीं एक वृक्ष राजस्थान के अजमेर के पास मांगलियावास में और पुट्टापार्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में भी विद्यामान बताया जाता है।
पर्यावरण के लिए बेहद हितकारी
यह वृक्ष जिस भूमि पर है, वहां पर किसी तरह का सूखा नहीं पड़ता है। यह वृक्ष कीट-पतंगों को यह अपने पास आने नहीं देता। दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है। इस वृक्ष में तुलसी जैसे गुण हैं। इस पेड का तना खोखला होने के कारण इसमें पानी का भंडारन किया जा सकता है। इस वृक्ष की छाल से डाई भी बनाई जा सकती है। माना जाता है कि इस वृक्ष की उंचाई लगभग 70 फीट होती है, जबकि इसके तने का व्यास 35 फीट तक हो सकता है। विश्व में सबसे अधिक तने का घेरा 150 फीट तक नापा गया है। इस वृक्ष का औसत जीवन अढाई से तीन हजार साल माना गया है। परंतु कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने वृक्ष की उम्र छह हजार साल आंकी गई है।
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कल्पवृक्ष एक मेडिसन प्लांट है
वैज्ञानिकों अनुसार यह एक मेडिसन प्लांट है। इसके फल में संतरे से भी छह गुणा अधिक विटामिन सी पाया जाता है। इसके अलावा गाय के दूध से दोगुणा कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है। इसकी पत्ती को धो कर सूखा कर या फिर पानी में उबालकर खाया जा सकता है। इस वृक्ष की छाल और फूल का उपयोग भी बेहद लाभकारी है। इस वृक्ष की तीन से पांच पत्तियों का सेवन करने से शरीर को जितने भी पौष्टिक तत्वों की जरूरत होती है, वह पूरी हो जाती है। माना जाता है कि इसकी पत्तियां खाने से इंसान की आयु में वृद्धि होती है। क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। इसके अलावा इसमें कब्ज, एसिडिटी, एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। इसके पत्तों का सेवन और फूलों का रस गुर्दे के रोगियों के लिए भी लाभदायक माना गया है। इसके बीजों से निकाले गए तेल में हाईडेंस्टी कॉलेस्ट्रोल होने से दिल के मरीजों के लिए बेहद हितकारी होता है। वर्लड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हमारे शरीर के विकास के लिए आठ अमीनो एसिड में से छह इस वृक्ष में पाए जाते हैं। इस वृक्ष का फल कच्चा रहने पर आम जैसा, पकने पर नारियल जैसा दिखाई देता है। जबकि सूख जाने पर खजूर जैसा दिखाई देता है
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