पूरे भारत में भगवान शिव से संबंधित मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों में भगवान शिव शिवलिंग रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। भगवान शिव के साथ ही उनके वाहन व द्वारपाल नंदी जी भी विराजमान होते हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसमें भोलेनाथ के साथ-साथ नंदी जी की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। खास बात यह है कि यह मंदिर ‘बुल टेंपल’ के नाम से प्रसिद्ध है।
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बुल टेंपल
बेंगलुरु के बसवनगुड़ी क्षेत्र में भगवान शिव के वाहन नंदी जी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है जिसे ‘बुल टेंपल’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर नंदी जी के आकार के अनुसार विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। यहां नंदी जी मूर्ति की ऊंचाई 15 फीट और लंबाई तकरीबन 20 फीट है। खास बात यह है कि यह मूर्ति एक ही पत्थर से बनाई गई है। इस मंदिर का निर्माण 1537 में मैसूर के शासक केंपे गोडा द्वारा करवाया गया था। केंपे गोडा विजयनगर सम्राज्य के अधीन आते मैसूर के शासक थे। इसीलिए मंदिर के निर्माण में विजय नगर साम्राज्य के वास्तुशिल्प का प्रभाव साफ दिखाई देता है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार द्रविड़ शैली में निर्मित है। नंदी जी की मूर्ति सालों से चारकोल और तेल से निरंतर घर्षण के चलते काले रंग की दिखती है। बीसवीं सदी में इसके ऊपर छत का निर्माण किया गया और अब छत के कारण ही यह मूर्ति गर्भ गृह में स्थित है। छत बनने से पहले खुले आसमान के नीचे ही नंदी जी के दर्शन होते थे।
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ऐसे पड़ा मंदिर का नाम
इस प्राचीन नंदी मंदिर का नाम बुल टेंपल इस लिए पड़ा क्योंकि जिस इलाके में यह मंदिर है उसे बसवनगुड़ी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय भाषा में बसवन का अर्थ बुल और गुड़ी का अर्थ मंदिर है। यह मंदिर बिग बुल टेंपल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मंदिर से जुड़ी कथाएं
इस मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार इस इलाके में पहले खेती की जाती थी। उस समय में इस इलाके को सनकेनहल्ली नाम से जाना जाता था। इस इलाके के किसान उन जानवरों से काफी परेशान थे जो फसलों का नुकसान करते थे। इसी दौरान एक जमींदार को सपना आया कि अगर इस स्थान पर नंदी जी के मंदिर का निर्माण कर दिया जाए तो फसलों को जानवरों से बचाया जा सकता है।
एक अन्य कथा के अनुसार कई सौ साल पहले इस इलाके में नारियल की खेती होती थी। एक बार एक जंगली बैल ने पूरे इलाके में तबाही मचाते हुए नारियल की सारी फसल को बरबाद कर दिया। इस पर गुस्से में आए एक किसान ने डंडे से उस बैल पर धावा बोल दिया। कहते हैं कि इस दौरान ऐसा चमत्कार हुआ कि वह जंगली बैल काले रंग की पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो गया। लोगों का यह भी मानना है कि इस मूर्ति का आकार निरंतर बढ़ रहा था। मूर्ति के बढ़ रहे आकार को रोकने के मकसद से एक त्रिशूल को बैल के माथे पर स्थापित कर दिया गया, जिससे आकार बढ़ना रुक गया। इसी स्थान पर बाद में शिवलिंग की स्थापना करके मंदिर का निर्माण करवाया गया।
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नंदी जी की होती है विशेष पूजा
इस मंदिर में नंदी जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नंदी जी का अभिषेक मक्खन से किया जाता है। इस विशेष अभिषेक में 100 किलोग्राम के करीब मक्खन का उपयोग होता है। यह प्राचीन मंदिर सुबह 6 खुलता है और रात के 8 बजे तक बड़ी संख्या में भक्त नंदी जी के दर्शन करते हैं।
हर साल लगता है मेला
‘बुल टेंपल’ के पास के क्षेत्र हर साल कार्तिक माह में विशाल मेले का आयेजन किया जाता है। यह मेला पिछले कई सालों से चला आ रहा है। इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में नारियल चढ़ाते हैं। हर साल लगने वाले इस मेले में हर जगह नारियल की दुकानें देखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के साथ ही किसानों द्वारा नारियल चढ़ाने की परंपरा की शुरूआत की गई थी। कई सौ साल बीतने के बाद भी यह परंपरा जारी है। किसानों द्वारा आज भी अपनी फसल का पहला हिस्सा इस मंदिर में चढ़ाया जाता है।
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मक्खन के गणेश जी भी हैं दर्शनीय
‘बुल टेंपल’ के पास ही एक गणेश मंदिर भी मौजूद है। यह मंदिर भी अन्य गणेश मंदिरों से अलग है। जो बात इस मंदिर को अन्य गणेश मंदिरों से अलग करती है वह यह है कि इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति 110 किलोग्राम मक्खन से बनी हुई है। इस मूर्ति से जुडी़ विशेष बात यह भी है कि यह मक्खन कभी भी नहीं पिघलता। चार साल बाद इस मक्खन को बदला जाता है। और पहले मक्खन को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है।
धर्मेन्द्र संधू