-बीते 15 साल की जा रही है सोध
रामायण काल के बाबत कई मान्यताएं हैं। एतिहासिक साक्ष्य न मिलने के कारण रामायण काल को केवल एक पौराणिक कथा के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन श्री लंका में रामायण कालीन स्थानों का अस्तित्व होना इस बात को प्रमाणित करता है कि हिंदुओं के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ रामायण का सीधे तौर से श्रीलंका से गहरा संबंध रहा है। श्रीलंका रामायण रिसर्च कमेटी की ओर से श्रीलंका में किए गए शोध के बाद लंकापति रावण के भव्य महल, विमान स्थल, पुष्पक विमान, युद्ध स्थल, अशोक वाटिका, रामसेतू, रावण द्वारा बनवाई सुरंगें, देवी सीता का अग्नि परीक्षा स्थल, विभीषण का महल, रावण का ताबूत जैसे कई महत्वपूर्ण स्थलों के अस्तित्व को ढूंडना किसी रोमांच से कम नहीं है। इन साक्ष्यों के मिलने के बाद यह सिद्ध हो गया है कि रामायण एक एतिहासिक सच्ची घटना है। आईए, आज आपको उक्त स्थलों के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।
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लंकापति रावण का भव्य महल
लंकापति रावण के भव्य महल का अस्तित्व आज भी मौजूद है। जिसमें रावण अपनी महारानी मंदोदरी के साथ निवास करता था। इस महल अवशेष आज भी मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र श्री हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था।
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अशोक वाटिका में मौजूद है माता सीता मंदिर
लंका में अशोक वाटिका वह स्थान है, जहां लंकापति रावण ने माता सीता को हरण के बाद बंदी बना कर रखा था। आज इस जगह को सीता एलीया के नाम से जाना जाता है। यह स्थानन नूवरा एलिया नामक जगह के पास स्थित है। यहां पर मौजूदा समय में सीता माता का एक मंदिर भी है। पास ही एक झरना भी बहता है। माना जाता है कि देवी सीता यहां पर ही स्नान किया करती थीं। इस स्थान पर अंजनी पुत्र श्री हनुमान ने निशानी के रूप में भगवान श्री राम की ओर से प्रदान की अंगूठी को सीता माता को सौंपा था। अशोक वाटिका में नाम अनुरूप इस क्षेत्र में वृक्ष व पौधों की संख्या अधिक है। श्री राम की याद में माता सीता अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने अशोक वृक्षों की नूतन कोंपलों से अग्नि की मांग की थी।
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यहां पर मौजूद है श्री हनुमान जी के पदचिह्न
अशोक वाटिका के मौजूद झरने के आसपास की चट्टानों पर पवन पुत्र श्री हनुमान जी के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। अशोक वाटिका के पास वह पर्वत है। जहां पर श्री हनुमान जी ने पहली बार कदम रखा था। इस स्थान को पवाला मलाई के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत लंकापुरा और अशोक वाटिका के बीच में स्थित है।
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तालाब दिलाता है माता सीता की याद
लंका में कैंडी से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नंबारा एलिया मार्ग पर एक तालाब मौजूद है। जिसे सीता टियर तालाब (सीता के आंसू का तालाब) कहते हैं। कहा जाता है कि बेहद गर्मी के दिनों में इस इलाके में कई तालाब सूख जाते हैं । परंतु यह तालाब कभी नहीं सूखता है। आसपास के अन्य सभी तालाबों का पानी तो मीठा है, लेकिन सीता टियर तालाब का पानी आंसुओं जैसा खारा है। कहते हैं कि रावण जब सीता माता को हरण करके ले जा रहा था, तो इसमें माता सीता जी के आंसू गिरे थे।
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यहां माता सीता ने दी थी अग्नि परीक्षा
लंका में वेलीमड़ा नामक जगह पर डिवाउरूम्पाला मंदिर है। यह वही स्थान है, जहां पर माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। आज भी यहां के स्थानीय लोग इस जगह पर किसी समस्या के पैदा होने पर सुनवाई करते हैं। यहीं पर न्याय किया जाता है। यहां कहा जाता है कि जिस तरह इस जगह पर देवी सीता ने सच्चाई साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा की थी। उसी तरह यहां पर लिया गया हर फैसला सही साबित होता है।
रावण ने बनवाई थी कई सुरंगे
लंका पमें रावनागोड़ा नामक जगह है। इस जगह पर कई गुफाएं और सुरंगें आज भी मौजूद हैं। ये सुरंगें रावण के शहर को अंदर ही अंदर जोड़ती थी। यहां के लोगों का मानना हैं कि कई सुरंगें तो लंका से साउथ अफ्रीका तक जाती हैं। इन सुरंगों में ही लंकापति रावण ने बहुमूल्य खजाना छुपाया था। यह सभी सुरंगें व गुफाएं प्राकृतिक नहीं है। इनको रावण ने बनवाया था।
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सुग्रीव गुफा
रामायणकाल में वानर राज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते समय राक्षस दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह किसने किया। क्रुद्ध ऋषि ने बाली को श्राप कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानकर बाली के छोटे भाई सुग्रीव ने अपने बड़े भाई बाली को प्रताड़ित कर अपने राज्य से निकाल दिया। बाली ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में रहने लगा। इसी स्थान पर बाद में श्री राम ने बाली का वध किया। और सुग्रीव को किष्किंधा का राजा नियुक्त किया।
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श्री राम ने किया था समुद्र पर रामसेतु का निर्माण
भारत में तमिलनाडु के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक विशाल श्रृंखला है। शोध अनुसार इक समय था जब सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था। यह पुल करीब 30 किलोमीटर लंबा था। 15वीं शताब्दी तक लोग पैदल लंका तक जाते थे। समुद्र में आए चक्रवातों के कारण यह पुल क्षतिग्रस्त हो गया। कुछ समय पहले नासा के एक उपग्रह ने कुछ चित्र लिए। जिसमें इस रामसेतू के कुछ हिस्से मिले। गौर हो इसी रास्ते श्री राम की सेना ने लंका पहुंच कर लंकापति रावण से युद्ध किया था।
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रावण के थे चार विमान स्थल
रामायण में वर्णित लंका आज की श्री लंका है। लंकापति रावण के रामायणकाल में उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला नामक चार हवाईअड्डे थे। । उसानगोडा रावण का निजी हवाईअड्डा था। यहां का रनवे लाल रंग का है । इसके आसपास की जमीं कहीं-कहीं काली तो कहीं-कहीं हरी घास वाली है । जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गए थो, तो वहां से लौटते समय उन्होंने रावण के इस निजी उसानगोडा को नष्ट कर दिया था। सिन्हाला शहर में वेरागनटोटा नाम की एक जगह मिली है। जिसका मतलब विमान उतरने की जगह होता है।
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युद्धागनावा नामक युद्ध स्थान पर हुआ राम-रावण युद्ध
श्रीलंका रामायण रिसर्च कमेटी अनुसार श्री हनुमान की श्रीलंका में उत्तर दिशा में स्थित नागदीप से एंट्री हुई थी। यहां पर मिले निशान उनके आगमन की पुष्टि करते हैं। कमेटी ने उस स्थान की भी तलाश कर ली है। जहां पर श्री राम व रावण के बीच भीष्ण जंग हुई थी। श्रीलंका में आज इस युद्घ-स्थान को युद्घागनावा नाम से जाना जाता है।
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शोध कमेटी ढूंड चुकी है 50 विशेष स्थान
शोध कमेटी के अध्यक्ष अशोक कैंथ अनुसार उनकी टीम अब तक श्री लंका में रामायण काल के 50 दुर्गम स्थानों की खोज कर चुकी है । उन्होंने यह खोज साल 2004 में शुरु की थी। इसके बाद श्रीलंका सरकार ने 2007 में श्री रामायण अनुसंधान कमेटी का गठन कर अशोक कैंथ को इसका अध्यक्ष बनाया। इस कमेटी में श्रीलंका पर्यटन मंत्रालय के निदेशक जनरल क्लाइव सिलबम , आस्ट्रेलिया के हेरिक बाक्सी , लंका के पीवाई सुदेशम, जर्मनी के उर्सला मुलर , इंग्लॅण्ड की हिमी जायज शामिल है ।
प्रदीप शाही