वेद, पुराण, उपपुराण, रामायण, श्री मद्भगवत गीता में है ब्रह्मांड के समूचे ज्ञान का समावेष

-चार वेद, 16 पुराण, 18 उपपुराण, रामायण, श्री मद्भगवत गीता हैं मानव सभ्यता की आधारशिला
चारों वेद, 16 पुराण, 18 उपपुराण, रामायण, श्री मद्भगवत गीता को यदि मानव सभ्यता की आधारशिला कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। या यूं कहें कि वेद, पुराण, उपपुराण, रामायण, श्री मद्भगवत गीता में ब्रह्रामांड के समूचे ज्ञान का समावेष है। संस्कृत भाषा में रचित इन पावन सनातन ग्रंथों का अध्ययन हमें नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्पराओं, विज्ञान के बारे विस्तार से अवगत करवाता है।

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चार वेदों में कुल कितने श्लोक, मंत्र हैं?
प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य में चार वेद प्रमुख हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन धर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। जिनमें ईश्वर का ज्ञान समाहित है। वेद विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में से एक हैं, जिनके पवित्र मंत्रों का मौजूदा समय में भी बेहद श्रद्धा से उच्चारण किया जाता है।
वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान का ग्रंथ माना गया है। इसमें ‘विदित’ (जाना हुआ), ‘विद्या’ (ज्ञान), ‘विद्वान’ (ज्ञानी) जैसे शब्दों का समावेष है।
ऋग्वेद – सबसे प्राचीन वेद – ज्ञान हेतु इसमें लगभग 10 हजार मंत्र हैं। इसमें देवताओं के गुणों का कविता-छन्द रूप में वर्णन किया है।
सामवेद – इस वेद में ईष्ट देव की उपासना में संगीतमयी 1975 मंत्र रचित हैं।
यजुर्वेद – इस वेद में कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 3750 गद्यात्मक मंत्र हैं।
अथर्ववेद – इस वेद में गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 7260 कवितामयी मंत्र सम्मलित हैं।

 

चारों वेदों का विस्तार रुप है पुराण
‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘प्राचीन’ या ‘पुराना’ होता है। पुरा’ शब्द का अर्थ अनागत एवं अतीत होता है। ‘अण’ शब्द का अर्थ कहना या बतलाना है। पुराण वास्तव में वेदों का विस्तार रुप है। वेद बेहद जटिल भाषा-शैली में रचित हैं। पुराणों की रचना और पुनर्रचना महृर्षि वेदव्यास जी ने की थी। जबकि पुराणों में वेदों की जटिल भाषा में कही गई बातों को सरल भाषा में समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परंपराओं, विज्ञान तथा अन्य विषयों पर आधारित है। पुराणों में देवी, देवताओं, राजा, महाराजाओं, ऋषियों, मुनियों के अलावा जनमानस की कथाओं का उल्लेख किया है। इनमें पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण है।
महृर्षि वेदव्यास जी ने कुल 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया। भगवान श्री ब्रह्मा जी, भगवान श्री हरि विष्णु व देवों के देव महादेव इन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के सभी भगवान स्वरूप को छह-छह पुराण समर्पित किए गये हैं।


ब्रह्म पुराण में है सृष्टि उत्पत्ति की बहुमूल्य
ब्रह्म पुराण सभी 18 पुराणों से सब से प्राचीन पुराण है। इस पुराण में 246 अध्याय और 14 हजार श्र्लोक रचित हैं। इस ग्रंथ में भगवान श्री ब्रह्मा की महानता, सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण, श्री रामायण और श्री कृष्णावतार की कथाओं को संकलित किया हैं। इस ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिंधू घाटी सभ्यता की भी जानकारी मिलती है।

55 हजार श्लोक, पांच खंडों में विभाजित है पद्म पुराण
पांच खंडों में विभाजित पद्म पुराण में 55 हजार श्र्लोक हैं । सृष्टि खंड, स्वर्ग खंड, उत्तर खंड, भूमि खंड, पाताल खंड इन पांच खंडों में पृथ्वी, आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति, पर्वतों, नदियों के बारे में विस्तार से जानकारी वर्णित है। इस पुराण में शाकुंतला दुष्यंत से ले कर भगवान श्री राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास भी है। शाकुंतला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जंबू दीप पड़ा। इसके बाद यह भरत खण्ड और बाद भारत नाम पड़ा।

विष्णु पुराण में है भगवान श्री विष्णू, कृष्णावतार का जिक्र
विष्णु पुराण में 6 अंश व 23 हजार श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान श्री हरि विष्णु, बालक ध्रुव, श्री कृष्णावतार की कथाओं को संकलित किया हैं। सम्राट पृथु की कथा को भी शामिल किया है। सम्राट पृथु के नाम से हमारी धरती का नाम पृथ्वी पड़ा था। इस पुराण में सू्र्यवंशी, चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास भी शामिल है। इस ग्रंथ में भारत की भूगौलिक जानकारी भी संकलित है। विष्णु पुराण वास्तव में एक एतिहासिक ग्रंथ है।

भगवान शिव को समर्पित है शिव पुराण
भगवान शिव को समर्पित शिव पुराण में कुल 24 हजार श्र्लोक हैं। यह ग्रंथ सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहा जाता हैं। इस ग्रंथ में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व की विस्तृत जानकारी है। सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के बारे जानकारी संकलित है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मंडल के ग्रहों पर आधारित हैं। इन ग्रहों पर आज समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

आध्यात्मिक विषयों पर आधारित है भागवत पुराण
अध्यात्मिक विषयों पर आधारित भागवत पुराण में 18 हजार श्र्लोक हैं । इस ग्रंथ में भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अलावा महाभारत काल से पूर्व के राजाओं, ऋषि, मुनियों तथा असुरों की कथाएं इसमें शामिल हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यादवों के नाश तक का विवरण भी है।

समस्त पुराणों का सार है नारद पुराण
समस्त 18 पुराणों के सार नारद पुराण में कुल 25 हजार श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ के दो भाग हैं। प्रथम भाग में मंत्र तथा मृत्यु पश्चात के विधि विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक वर्णित है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थान, स्वरमंडल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान मौजूदा समय में भारतीय संगीत का आधार है। नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पांच स्वर ही थे।

मार्कण्डेय पुराण में है समाजिक न्याय, योग विषय की जानकारी
मार्कण्डेय पुराण अन्य पुराणों की तुलना में बेहद छोटा पुराण है। पुराण में मात्र नौ हजार श्र्लोक व 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषि मार्कण्डेय व ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप को संकलित किया है। इसके अलावा माता भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुई कथाओं संकलित हैं।

भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष है अग्नि पुराण
383 अध्याय तथा 15 हजार श्र्लोक वाले पुराणों को अग्नि पुराण का नाम दिया है। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष कहते हैं। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण और महाभारत की संक्षिप्त कथाओं को संकलित किया हैं। इस के अलावा धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। गौर हो धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

 

सूर्य, साल, माह के विषयों का पुराण है भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28 हजार श्र्लोक सम्मलित हैं। इस ग्रंथ में सूर्य के महत्व, वर्ष, 12 महीनों के निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों संबंधी वार्तालाप है। इस पुराण में सांपों की पहचान, विष तथा विषदंश सबंधी महत्वपूर्ण जानकारी भी दर्ज है। साथ ही पुराने राजवंशों, नंद वंश, मौर्य वंश, मुगल वंश, छत्रपति शिवा जी तक का वृतांत दर्ज है । भगवान सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है। यह पुराण भारतीय इतिहास का महत्वशाली स्त्रोत्र है।

आयुर्वेद ज्ञान का खजाना है ब्रह्मावैवर्ता पुराण
आयुर्वेद संबंधी ज्ञान का खजाना है ब्रह्मावैवर्ता पुराण। इस पुराण में 18 हजार श्र्लोक और 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में भगवान श्री ब्रह्मा, सिद्धिविनायक श्री गणेश, तुलसी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है।

 

लिंग पुराण में अघोर मंत्र. अघोर विद्या की विशेष जानकारी है संकलित
लिंग पुराण में 11 हजार श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या का विशेष उल्लेख है। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प का वर्णन है। राजा अंबरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है।

 

भूगौल, खगौल का संकलन है वराह पुराण
भूगौल, खगौल की विस्तृत जानकारी वाले वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10 हजार श्र्लोक संकलित हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। भूगौलिक और खगौलिक तथ्यों से पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चला था।

प्राचीन भारत की अनमोल जानकारी का संकलन स्कंद पुराण
स्कंद पुराण सब से विशाल पुराण है। इस पुराण में 81 हजार श्र्लोक और छह खंड हैं। प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन, 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश के सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, गंगा अवतरण की बहुमूल्य जानकारी है। इस पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मंदिर की जानकारी भी दर्ज है।

 

दो खंडों वाले वामन पुराण का उपलब्ध है केवल एक खंड
95 अध्याय तथा 10 हजार 000 श्र्लोक वाले वामण पुराण के दो खंडों में से मौजूदा समय केवल एक खंड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा की जानकारी है। इस ग्रंथ में सृष्टि, जम्बूद तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, पर्वतों, नदियों तथा भारत के खंडों का जिक्र है।

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कुर्मा पुराण में है वेदों का सार, सागर मंथन की जानकारी
18 हजार श्लोक और चार खंडों में विभाजित कुर्मा पुराण में चारों वेदों का सार और सागर मंथन की कथा विस्तार से दर्ज है। इस पुरामम में भगवान श्री ब्रह्मा, विष्णू, शिव, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रमों, धर्मों, तथा चन्द्रवंशी राजाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दर्ज है।

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मतस्य पुराण में संकलित है मतस्य अवतार की कथा
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14 हजार श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा की विस्तार से जानकारी है।

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84 लाख योनियों का संकलन है गरुड़ पुराण
279 अध्याय व 18 हजार श्लोक वाले गरुड़ पुराण में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नर्क तथा 84 लाख योनियों के जीवन बारे विस्तार से जानकारी है। आम लोक इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं। क्यों कि इस ग्रंथ को अपने किसी परिजन की मृत्यु के पश्चात ही पढ़वाया जाता है।

विश्व का पहला खगोल शास्त्र है ब्रह्मांड पुराण
12हजार श्र्लोक, पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भागों वाले ब्रह्मांड पुराण को विश्व का पहला खगोल शास्त्र कहा जाता रहै। इस पुराण में ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रहों की जानकारी वर्णित है। सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर अब तक सात काल बीत चुके हैं। इन की विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इंडोनेशिया भी ले गये थे। जिस के प्रमाण इंडोनेशियन भाषा में मिलते है।

लोकप्रिय 18 उपपुराण
1. आदित्य या सौर 2. उशनस्‌ या औशनसव 3. कपिल 4. कालिका 5. कुमार 6. गणेश 7. गौतम 8. दुर्वासा 9. देवीभागवत 10. नंदी 11. नृसिंह 12. महेश्वर 13. मारीच 14. शिवधर्म 15. सांब 16. सनत्कुमार 17. विष्णुधर्मोत्तर 18. कल्कि

 

कुमार प्रदीप

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