पूरे भारत में होली का त्योहार धूम–धाम से मनाया जाता है। होली का त्योहार प्रेम व सद्भावना का प्रतीक है। भारत में खासकर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में होली का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए व होली का आनन्द मानने के लिए देश के साथ–साथ विदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ब्रज की होली की खास बात यह है कि बाकी स्थानों की बजाए इस स्थान पर फूलों की होली खेली जाती है। मथुरा में होली का पर्व एक–दो दिन नहीं बल्कि पूरे एक सप्ताह तक मनाया जाता है। भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा है इस लिए यहां की होली का विशेष महत्व है।
इसे भी पढ़ें…जानिए ‘होली’ के त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें
बरसाने की लठमार होली
मथुरा के कस्बा बरसाना में खेली जाने वाली लठमार होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर डंडे से वार करती हैं और पुरुष इस वार से बचने का प्रयास करते हैं। इस में मुख्य रूप से औरतें डंडे या लाठी से पुरुषों पर वार करती हैं और पुरुष ढाल से अपना बचाव करते हैं। इस होली या इस प्रथा के बारे में मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण होली के अवसर पर बरसाने आए तो वह राधा और उनकी सखियों को छेड़ने लगे। इस पर राधा अपनी सखियों के संग लाठी लेकर भगवान कृष्ण के पीछे दौड़ी थीं। तभी से ही बरसाने में इस प्रकार की होली की इस परंपरा की शुरूआत हुई। बरसाने की इस विश्व प्रसिद्ध लठमार होली का आरम्भ शुक्ल पक्ष की नवमी को होता है। इस अवसर पर सुबह से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इस दौरान भांग का रंग भी दिखाई देता है। इस लठमार होली में हिस्सा लेने वाले पुरुषों को होरियारे कहा जाता है और यह होरियारे भगवान श्री कृष्ण के सखा माने जाते हैं। इस अवसर पर नंदगाँव वासियों द्वारा रसिया गीत गाए जाते हैं। लठमार होली खेलने की यह परम्परा वर्षों से निरंतर जारी है।
इसे भी पढ़ें…भारत ही नहीं विदेशों में भी है होली की धूम
वृंदावन में फूलों की होली
वृंदावन की फूलों की होली भी लठमार होली की तरह ही विश्व प्रसिद्ध है। फूलों की होली फागुन की एकादशी को वृंदावन में खेली जाती है। लेकिन इस होली की खास बात यह है कि इस होली का आनन्द लेने के लिए समय का पाबंद होना अति जरूरी है क्योंकि बांके बिहारी मंदिर में खेली जाने वाली यह फूलों की होली केवल 15 से 20 मिनट तक ही होती है। बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारियों द्वारा भक्तों पर फूलों की वर्षा की जाती है।
इसे भी पढ़ें…अधूरी है गीत, संगीत बिन होली के पर्व की मस्ती
मथुरा में होती है विधवा होली
वृंदावन में विधवा महिलाएं भी होली का पर्व मनाती हैं। परिवार द्वारा इन विधवा महिलाओं को वृंदावन में छोड़ दिया जाता है इसलिए देश के अलग–अलग हिस्से से आई विधवाएं इस स्थान रहती हैं और होली के पर्व पर खूब होली खेलती हैं। 2013 में शुरू हुई यह होली एक अच्छा व सार्थक प्रयास है क्योंकि भारतीय रीति–रिवाज और समाज की रूढ़िवादी सोच विधवाओं को ऐसी अनुमति नहीं देती। लेकिन यह प्रयास विधवा महिलाओं को आज़ादी से अपनी बेरंग ज़िंदगी में रंग भरने का मौका देता है। फूलों की होली के अगले दिन विधवा महिलाएं अलग–अलग स्थानों पर जमकर होली खेलती हैं।
इसे भी पढ़ें…ऐसे मनाएं होली का त्योहार…नहीं होगा कोई नुकसान
धर्मेन्द्र संधू