-तीन माह तक जलती रही थी आग
छठी शताब्दी बीसी में समूचे विश्व को शिक्षा की ज्योति से जगमगाने वाली सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी भारत की देन थी। परंतु यह प्राचीन यूनिवर्सिटी एक मुस्लिम शासक की सनक के कारण जबरन अग्नि भेंट कर दी गई। आग इतनी भयावह थी कि यूनिवर्सिटी में तीन माह तक आग धधकती रही थी। क्या आप इस सच से वाकिफ हैं। आखिर क्यों मुस्लिम शासक ने यूनिवर्सिटी को आग के भेंट किया। आईए, आज आपको इस सच से अवगत करवाते हैं।
इसे भी देखें….भगवान श्री राम ने लंका कूच से पहले यहां किया था श्री गणेश का पूजन
प्राचीन यूनिवर्सिटी कहां स्थापित थी ?
बिहार के नालंदा शहर में नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना छठी शताब्दी बीसी में गुप्त राजवंश ने की थी। नालंदा यूनिवर्सिटी तब राजगीर का एक उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली रोड पर स्थित थी। बौद्ध धर्म के इस विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म के अलावा अन्य सभी धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी। यह विश्व की पहली एेसी यूनिवर्सिटी थी, जहां पर छात्रों के लिए रहने के लिए हॉस्टल बने हुए थे।
इसे भी देखें….ब्राह्मण पिता, राक्षसी माता के पुत्र थे परम शिव भक्त, वेदों के ज्ञाता दशानन
यूनिवर्सिटी में कुल कितने शिक्षक व छात्र थे
छठी शताब्दी में भारत को सोने की चिडिया कहा जाता था। इस वजह से विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी यहां पर अक्सर हमले करते रहते थे। इसी शताब्दी में तुर्की शसक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी का भारत पर राज था। नालंदा यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र विदेशी थे। उस समय यूनिवर्सिटी में 10 हजार छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। जबकि दो हजार शिक्षक तैनात थे। यूनिवर्सिटी में भारत के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, तुर्की व अन्य देशों के छात्र पढ़ने और शिक्षक पढ़ाने आते थे। सबसे खास बात यह है कि नामवर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां एक साल तक शिक्षा ग्रहण की थी। यह यूनिवर्सिटी समूचे विश्व के लिए नॉलेज का भंडार मानी थी।
इसे भी देखें….जानें भगवान शिव के अश्रु से उत्पन्न ‘रुद्राक्ष’ आपके लिए कैसे है वरदान..?
यूनिवर्सिटी थी अद्भुत कला का नमूना
जनमानस को शिक्षित करने के उद्देश्य से नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 ई. के मध्य की थी। यूनिवर्सिटी का पूरा कैंपस एक विशाव दीवार से घिरा हुआ था। जिसमें आने और जाने के लिए केवल एक मुख्य दरवाजा बना हुआ था। नॉर्थ से साउथ की तरफ मठों की कतार थी। इनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर बने हुए थे। मंदिरों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां थीं। यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत में सात विशाल और 300 छोटे कमरे बने हुए थे। इन कमरों में बच्चों को पढ़ाया जाता था। मठ एक या अधिक मंजिलों वाले थे। हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था। आठ बड़ी इमारतों, 10 मंदिर, कई प्रार्थना रुम और स्टडी रूम के अलावा इस कैंपस में सुंदर बगीचे और झीलें बनी हुई थीं। नालंदा यूनिवर्सिटी भारतीय व विदेशी राजाओं से आर्थिक मदद मिलती थी। यूनिवर्सिटी का समूचा कुलपति या फिर प्रमुख आचार्य करते थे। इनका चयन बौद्ध भिक्षु करते थे।
इसे भी देखें…इस मंदिर में मिलती है बारिश की चेतावनी! 14 फुट मोटी दीवार से बिन बारिश पानी टपकता..
खिलजी का भारतीय वैद्य ने किया उपचार
कहा जाता है कि एक बार खिलजी बुरी तरह बीमार पड़ा गया। उसने अपने सभी काबिल हकीमों से काफी इलाज करवाया, लेकिन ठीक नहीं हुआ। तब किसी ने उसे यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद शाखा के प्रमुख राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाने की सलाह दी, लेकिन खिलजी किसी भारतीय वैद्य से से इलाज के लिए तैयार नहीं था। आखिर खिलजी ने इलाज के लिए राहुल श्रीभद्र को बुलवाया। खिलजी ने उनके सामने शर्त रखी कि वह कोई भी भारतीय दवा का प्रयोग नहीं करेगा। अगर वह ठीक न हुआ, तो राहुल को मौत दे देगा। यह सुन कर राहुल श्रीभद्र परेशान हो गए। फिर कुछ सोचकर उन्होंने खिलजी की शर्तें मान लीं। कुछ दिनों बाद वह खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे। और उससे कहा कि इसके इतने पन्ने आपको रोज पढ़ने होंगे। आप ठीक ठीक हो जाएंगे। कुछ समय के बाद खिलजी पूरी तरह से स्वस्थ हो गया।
इसे भी देखें…इस चमत्कारिक शिवलिंग की मुस्लिम भी करते हैं पूजा….
आखिर केवल कुरान पढ़ने से कैसे ठीक हुआ खिलजी
आयुर्वेद के विद्वान राहुल श्रीभद्र ने खिलजी को भेंट की कुरान के पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था। खिलजी जब भी पन्ने पलटने के लिए मुंह से थूक लगाता तो वह दवा उसके शरीर में चली जाती। एेसे में वह ठीक हो गया। पूरी तरह ठीक होने के बाद खिलजी ने भारतीय वैद्य के अहसानों को भुला दिया। उसे इस बात का गुस्सा हुआ कि उसके सभी वैद्य भारतीय वैद्यों के सामने उपचार में फेल गए। इस बात से गुस्से में आकर उसने सोचा क्यों न इस ज्ञान की जड़ नालंदा यूनिवर्सिट को ही समाप्त कर दिया जाए।
इसे भी देखें…महाकाल की पातालेश्वर महादेव मंदिर में अनूठी भस्म आरती
गुस्से में आकर खिलजी ने यूनिवर्सिटी में लगवा दी आग
गुस्साए खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में बेशकीमती किताबों का विशाल भंडार था। आग लगने के कारण यह कितावों का भंडार तीन माह तक लगातार जलता रहा था। इतना ही नहीं उसने नालंदा के हजारों धार्मिक नेताओं और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी। कहा जाता है कि उस समय यूनिवर्सिटी में 90 लाख किताबों का विशाल संग्रह था।
इसे भी देखें…जानिए ‘पंचामृत’ बनाने की पूरी विधि…इसके सेवन से कई रोगों से मिलेगी मुक्ति
राष्ट्रपति कलाम ने की थी यूनिवर्सिटी को जीवंत करने की कोशिश
नालंदा यूनिवर्वसिटी को विश्व धरोहर के रुप में संग्रहित किया हुआ है। 2006 में पूर्व दिवंगत राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कालम ने नालंदा यूनिवर्सिटी को दोबारा जीवंत करने का सुझाव दिया। बिहार सरकार ने राजगीर में यूनिवर्सिटी के लिए 450 एकड़ ज़मीन भी खरीद ली थी। इसके पुनर्निमाण के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की अगुवाई में 2007 में परियोजना की निगरानी के लिए टीम का गठन किया गय। परंतु यह प्रयास आज भी अधर में लटका हुआ है।
प्रदीप शाही