-एक ऐसा किला जो कभी युद्ध में जीता ना जा सका
वंदना
किलों की बात की जाए तो राजस्थान का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है राजस्थान को किलों का स्टेट भी कहा जाता है क्योंकि इसके कई शहरों में विश्व प्रसिद्ध किले हैं और ज्यादातर किले पहाड़ी पर ही बने हुए हैं। इन्हीं में से एक किला है कुंभलगढ़ का किला| जो दो वजह से ख़ास है एक तो यहाँ विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार है और दूसरा इस किले को ‘अजेयगढ’ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना नामुमकिन था।यह किला कभी भी युद्ध में जीता नहीं जा सका हालाँकि इतिहास में सिर्फ एक बार यहाँ पर पानी की कमी होने के कारण आत्म समर्पण करना पड़ा था।
कब हुआ किले का निर्माण
कुंभलगढ़ किला राजस्थान के उदयपुर से करीब 82 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों के चोटी पर बना हुआ है| जिसका निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया था | साथ ही यह भी कहा जाता है कि यह किला मेवाड़ को मारवाड़ से अलग करता है। सम्राट अशोक के दूसरे बेटे संप्राति ने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसको बनवाया जोकि पुराने किले के अवशेषों पर ही है। वैसे इस किले को पूरी तरह से बनने में 15 साल का वक्त लगा। मौजूदा किले को मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक महाराणा कुंभा ने बनवाया था।निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के बनवाये जिन पर दुर्ग और उनका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार बने इस किले में प्रवेश द्वार, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि सभी आज भी है। इस किले की दीवार 36 किलोमीटर लंबी और 15 फीट चौड़ी है जो कि चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लम्बी दीवार है| इस किले को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का स्टेटस भी मिला है।
किले का आकर्षण केंद्र है इसकी दीवार
भारतीय किले के चारों तरफ सुरक्षा के कड़े प्रबंध होते है | वैसे तो पहाड़ी पर बनी ऊंचाई या फिर जंगल से सुरक्षा की जाती है| कुंभलगढ़ के किले में यह दोनों ही सुविधाएं मौजूद थीं | किले की दीवार 36 किलोमीटर लंबी और 15 फीट चौड़ी होने के कारण प्रहरी को मीलों दूर तक साफ-साफ दिखाई देता था और वहां पर पैदल चलने के अलावा घोड़ों से भी आसानी से और जल्दी ही जाया जा सकता था | वहां पास में ही एक जंगल भी है जिसे अब वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी में बदल दिया गया है।
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कुंभलगढ़ है महाराणा प्रताप की जन्मस्थली
कुंभलगढ़ किले की विश्व प्रसिद्ध 36 किलोमीटर लंबी दीवार के अंदर के क्षेत्र में 360 मंदिर है जिसमें से 300 मंदिर जैन धर्म के हैं और बाकी हिंदू धर्म के हैं। कुंभलगढ़ मेवाड़ के एक महान योद्धा महाराणा प्रताप की जन्म स्थली भी है।
कुम्भलगढ़ का ऐतिहासिक महत्व
कुम्भलगढ़ का इतिहास इस बात का गवाह है कि यह विशाल किला अभेद व अजेय रहा है। कुम्भलगढ़ के पूरे इतिहास में केवल एक बार ऐसा हुआ था, जब तीन राजाओं अकबर, उदय सिंह और राजा मान सिंह की सेनाओं ने कुम्भलगढ़ को चारो ओर से घेर लिया था और किले के अंदर पानी की भारी कमी हो गई, तब कुम्भलगढ़ की सेना को आत्मसमर्पण करना पडा था।
कुम्भलगढ़ में 1535 में राजकुमार उदय की तस्करी की गई थी। ऐसा तब हुआ जब चित्तौड घेराबंदी में था। बाद में राजकुमार उदय सिंहासन के उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने उदयपुर शहर बसाया।
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यह किला कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है। इस किले में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई थी और समतल भूमि को खेती के लिए काम में लाया जाता था। साथ ही ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए किया गया एक तरह से इस किले को स्वाबलंबी बनाया गया था। इस किले के अंदर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ कहा जाता है। इस गढ़ के बीच में बादल महल और सबसे ऊपर कुम्भा महल है।
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किले की सबसे दुखद घटना
कुम्भलगढ़ अधिकतर मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा करता था। यहां पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का भी बचपन बीता था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी किले में छिपा कर रखा था और उनका पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक यहाँ रहे। इस किले के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए थे लेकिन एक बार को छोड़ कर यह किला हमेशा अजेय ही रहा है | इस किले में महाराणा कुम्भा को कोई हरा नहीं सका लेकिन उनके अपने ही पुत्र ऊदा सिंह ने राज्य हथियाने के चक्कर में उनको मारवा दिया। यह किला ऐतिहासिक विरासत होने के साथ साथ शान से शूरवीरों की तीर्थ स्थली भी रहा है।