-वंदना
5000 सालों से भी पुराना और ऐतिहासिक शहर उज्जैन जिसका वर्णन पुराणों में भी किया गया है। इसे आदि ब्रह्म पुराण में सबसे अच्छा शहर, अग्नि पुराण में मोक्षदा और भक्ति पुराण में भक्ति मुक्ति कहा गया है। हिंदू धर्म ग्रंथों में कई पवित्र नदियों की महिमा बताई गई है। गंगा नदी पापों का नाश करने वाली मानी जाती है। इसी क्रम में उज्जैन की दो नदियां नर्मदा और शिप्रा भी हैं जो जन आस्था से जुड़ी हैं। नर्मदा को ज्ञान देने वाली और शिप्रा को मोक्ष देने वाली यानी जन्म मरण के बंधन से मुक्त कराने वाली माना जाता है। शिप्रा उज्जैन नगर की जीवनधारा भी है।
शिप्रा का उद्गम स्थल
मध्यप्रदेश की महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाड़ियों को शिप्रा का उद्गम स्थल माना जाता है जो कि पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान परशुराम जी का जन्म स्थान भी माना गया है।
शिप्रा के घाट का धार्मिक महत्व
उज्जैन भारत देश का प्रमुख धार्मिक सांस्कृतिक और प्राचीन नगर है जो शिप्रा के किनारे बसा है। शिप्रा नदी में स्नान करने से वैसा ही फल प्राप्त होता है जैसा कि इलाहाबाद प्रयाग हरिद्वार और काशी में गंगा स्नान से प्राप्त होता है। उज्जैन में अनेक पवित्र धार्मिक स्थल जैसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ हरसिद्धि देवी, पवित्र वट वृक्ष आदि होने के साथ-साथ अनेक घाट भी है। 12 वर्षों बाद होने वाले सिंहस्थ स्नान के कारण भी शिप्रा का धार्मिक महत्व है।
मेष राशि में सूर्य का और सिंह राशि में गुरु का योग बनने पर कुंभ स्नान किया जाता है। शिप्रा के अमृत समान जल से स्नान करने पर कोई भी व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से छूट जाता है।
भगवान श्री कृष्ण बलराम और उनके प्रिय मित्र सुदामा ने भी शिप्रा के किनारे बने सांदीपनि आश्रम में विद्या ग्रहण की थी। गुरु गोरखनाथ और राजा भर्तृहरि ने भी शिप्रा तट पर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की थी।
शिप्रा तट के घाटों का पौराणिक महत्व
शिप्रा के घाटों का वर्णन पुराणों में भी मिलता है कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने अपने पिता श्री दशरथ जी का श्राद्ध कर्म और तर्पण राम घाट पर किया था नाम घाट शिप्रा का प्रमुख घाट माना जाता है। इसके अलावा नरसिंह घाट गंगा घाट पिशाच मोचन तीर्थ गंधर्व तीर्थ शिप्रा घाट है।
रामघाट से जुड़ी पौराणिक कहानी
शिप्रा नदी को उज्जैन की रक्त धमनी भी कहते हैं। एक प्राचीन कथा के अनुसार शिप्रा, भगवान श्री विष्णु जी की तर्जनी उंगली की रक्त वाहिका है। कथा के अनुसार एक बार जब महाकाल को भूख लगी तो वह भिक्षा मांगने गए और कई दिनों तक उन्हें कहीं भी भिक्षा नहीं मिली। वह भगवान विष्णु के पास गए और विष्णु जी ने अपनी तर्जनी उंगली दिखाई तो महाकाल नाराज हो गए और उन्होंने त्रिशूल से उस उंगली पर प्रहार कर दिया जिससे उसमें से रक्त निकलने लगा। महाकाल ने उसके नीचे कपाल और कमंडल रख दिए जब कमंडल भर गए तो शिप्रा नदी का जन्म हुआ जो आज भी बहती है और भारतीयों को उन्नति का मार्ग दिखाती है यह भारत सहित पूुरे विश्व की एकमात्र नदी है जो उन्नति का दिशा सूचक यानी उत्तर दिशा की ओर बहने वाली इकलौती नदी है।
शिप्रा मध्य प्रदेश के 4 जिलों से होते हुए 196 किलोमीटर सफर तय करते हुए चंबल, यमुना और फिर गंगा में मिल जाती है। प्राचीन काल से आज तक गंगा, यमुना, गोमती, महानदी, कोसी, गंडक, घाघरा, सोन, महानंदा, रामगंगा आदि नदियों का शुद्धिकरण शिप्रा द्वारा ही हुआ है। जिसका वर्णन कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है। यह शुद्धिकरण सतयुग में परशुराम जी, त्रेता युग में राजा भागीरथी के वंशज द्वारा, द्वापर में श्री कृष्ण जी द्वारा हुआ है। रामघाट शिप्रा का प्रमुख घाट होने के कारण सिंहस्थ मेला हर 12 वर्ष बाद यही लगता है। महा आरती का आयोजन पंडितों द्वारा किया जाता है और आस्था से देश-विदेश से आए पर्यटक , नागा साधु व स्थानीय निवासी आदि सभी डुबकी लगाते हैं।
यही वह नदी है जो पुराणों के अनुसार बैकुंठ में शिप्रा, स्वर्ग में स्वरागिनी, यम द्वार में पापा गनी, और पाताल में अमृत संभवा के नाम से जानी जाती है। भौगोलिक घटनाओं के अनुसार कहा जाता है कि उत्तर में पहाड़ है, जहां किसी भी नदी का विपरीत दिशा में बहना असंभव है, मगर शिप्रा नदी उत्तर दिशा की ओर बहती है। उज्जैन से ओंकारेश्वर जाते हुए ऐसा लगता है कि पाताल की तरफ जा रहे हैं। एक घाटी आती है और फिर समतल। भौगोलिक घटनाओं में जो अंतर आता है इसी घाटी की वजह से होता है। घाटी में नीचे उतरने के लिए कई जगह विपरीत दिशा में चलना होता है, जो कि काफी हितकर है और घाटी में चढ़ना और उतरना आसान कर देता है। आगे जाकर यह नदी शिप्रा नर्मदा में मिल जाती है और नर्मदा के किनारे ही ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। नर्मदा के एक तरफ ओमकारेश्वर और दूसरी तरफ ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है।