लंकापति रावण के दस सिर थे, इस चीज के प्रतीक

-महर्षि पिता औऱ राक्षसी माता की संतान थे शिव भक्त रावण

प्रदीप शाही

महाबली, प्रकांड पंडित, वेदों के ज्ञाता, महादेव के अनन्य भक्त, संगीत विशेषज्ञ, वीणा वादक, ज्योतिष के विद्वान लंकापति रावण को दशानन के नाम से भी पुकारा जाता है। दशानन यानिकि दस सिरों वाले रावण। रावण के दस सिर किस चीज के प्रतीक माने जाते थे। रावण के पुतले का हर साल दीपावली से पहले बुराई का प्रतीक मानते हुए दहन करने की परंपरा है। आईए, आज आपको लंकापति रावण के जीवन से जुड़े कुछ अनछूए पहलूओं से अवगत करवाते हैं।

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कौन थे लंकापति रावण ?

लंकापति रावण महर्षि विश्रवा और राक्षसी माता कैकसी की संतान थी। माता कैकसी राक्षसों के महाराजा सुमाली की बेटी थी। जबकि रावण के पिता विश्रवा वेदों का महान ज्ञाता थे। रावण को अपने पिता महर्षि विश्रवा से वेदों, शास्त्रों का ज्ञान मिला। जबकि माता कैकसी से राक्षसी प्रवृति की भावनाएं मिली। ब्राह्मण कुल का होने की वजह से रावण जैसा प्रकांड विद्वान इस विश्व में कोई भी नहीं था।

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रावण था एक कुशल वीणा वादक

लंकापति रावण की छवि जहां एक बुराई के प्रतीक के रुप में होती है। वहीं रावण की कई अच्छाईयों से जनमानस आज भी अवगत नहीं है। लंकापति रावण एक बेहद कुशल वीणा वादक भी थे। रावण जब भी वीणा बजाता था। तो क्या देव लोक की अप्सराएं, तो क्या असुर या फिर इंसान। हर कोई वीणा की तान को सुन कर मोहित हो जाता था। यह भी कहा जाता है कि पिता महर्षि विश्रवा से वेदों के मिले ज्ञान के कारण रावण से बड़ा से बड़ा ज्ञानी विद्वान भी शास्त्रार्थ करने से घबराता था।

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अद्भुत बल का स्वामी था रावण

अद्भुत बल के स्वामी रावण की गर्जना सुनने से बडे-बडे योद्धाओं के भी पसीने छूटने लग जाते थे। रावण के बल के सामने कोई भी नहीं टिक पाता था। रावण अपने जीवन में केवल एक बार पराजित हुआ। रावण को यह पराजय किष्किंधा नरेश बाली से मिली थी। रावण को अपने अजेय होने के अहंकार को बाली ने ही तोड़ा था।

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रावण का परिवार

लंकापति रावण के अलावा उनके परिवार में दो भाई व एक बहन थी। इस बारे रामायण में भी उल्लेख मिलता है। रावण का छोटा भाई कुंभकर्ण था। इस बारे कहा जाता है कि वह छह माह सोता और छह माह जागता था। परंतु कई जगहों पर यह उल्लेख है कि कुंभकर्ण छह माह अपने शोध कार्यशाला में आविष्कार करते थे। बाकि के छह माह इन आविष्कारों का वह परीक्षण करते थे। रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण थे। जिन्होंने अपने बड़े भाई के गलत कामों का सदा विरोध किया। इसी विरोध के कारण उन्हें देश निकाला मिला। रावण के इसी भाई ने श्री राम का साथ दिया। रावण की एक बहन शूर्पनखा भी थी। जिसने बनवास के दौरान लक्ष्मण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, तब लक्ष्मण ने गुस्से में आकर शूर्पनखा का नाक काट दिया था। बहन का अपमान होने पर गुस्साए रावण ने सीता माता कर हरण कर लिया था।

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 भगवान शिव के अनन्य भक्त ऐसे बने दशानन

विद्वान रावण देवों के देव महादेव के अनन्य भक्त थे। सोने की लंका के निर्माण के बाबत एक प्रसंग मिलता है। इस प्रसंग अनुसार भगवान शिव ने लंका का निर्माण देवी पार्वती की इच्छापूर्ति के लिए किया था। गृह प्रवेश के समय रावण ने भगवान शिव से लंका को ही दक्षिणा में मांग लिया। ब्राह्मण होने के कारण भगवान शिव ने रावण को लंका दान में प्रदान कर दी। एक बार रावण भगवान शिव की अराधना कर रहा था। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने दस बार अपने शीश को काट कर अर्पित कर दिया था। रावण की इस भक्ति को देख कर भगवान शिव ने रावण को दशानन होने का वरदान दिया। इसके बाद ही रावण दशानन के नाम से पहचाने जाने लगे। भगवान शिव ने रावण को यह वरदान दिया कि जब तक उसकी नाभि पर कोई प्रहार नहीं करेगा। तब तक उसकी मौत नहीं होगी। गौर हो भगवान श्री राम और रावण के मध्य हुए युद्ध में कई बार रावण का सिर काटा। परंतु हर बार उनका सिर दोबारा पैदा हो जाता था। आखिर रावण के भाई विभीषण ने रावण की मौत की जानकारी प्रदान की। इसके बाद ही भगवान श्री राम ने रावण की नाभि में तीर मार कर रावण का वध किया।

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रावण के दस सिर किस का प्रतीक थे

दशानन रावण के दस सिर, दस बुराईय़ों के प्रतीक माने जाने जाते हैं। इन दस बुराईयों में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, द्वेष, घृणा, पक्षपात, व्यभिचार और धोखा प्रमुख है। यह बुराईयां ही रावण के दस सिरों को दर्शाते हैं।

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