-सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद सरकार नहीं देख पाई श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का सारा खजाना
-आखिर क्या राज है मंदिर के सातवें द्वार का
भारत में हर मंदिर प्राचीन, हर गुरुद्वारा एतिहासिक और हर मस्जिद पाक है ऐसे में किस मंदिर को प्राचीन माना जाए और किसे नहीं इसे बहस का विषय कहा जा सकता है, लेकिन कुछ ऐसे धार्मिक स्थल भारत की भूमि पर मौजूद हैं जो अपने साथ कई रहस्य भी छिपाए हए है, या यूं कहिए कि हमारी समझ आज भी उन गुत्थियों को सुलझा नहीं पाई है जो हमारे पूर्वज हमारी परीक्षा लेने के मदे्ेनजर छोड़ गए थे।
इन्हीं में से एक मंदिर पर हम आज चर्चा करने जा रहे हैं जिसके पास ना केवल भारतीय रिजर्व वैंक से ज्यादा धन संपदा है लेकिन इस अकूत धन को ना तो मुगल और ना ही तुर्क आक्रांताओं ने हाथ तक लगाया।
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संभव है कि सूदूर दक्षिण में होने के चलते कृष्णा, कावेरी और गोदावरी जैसी बड़ी नदियां पार कर पाने में अस्मर्थ रहने के चलते यह मंदिर मुगल सल्तनत व अरब आक्रांताओं की पहुंच से बाहर रहा हो पर समुद्र मार्ग से भारत में आने वाले और दक्षिणी राज्यों पर पर पहले काबिज होने वाले अंग्रेजों, फ्रांसिसियों, पुर्तगालियों ने भी इस मंदिर को हाथ तक नहीं लगाया। हो सकता है रिसर्च के नाम पर कुछ साजिशेें जरूर हुई होंगी पर कामयाब कोई नहीं रही, बताया तो यहां तक भी जाता है अंग्रेजो ने मंदिर के बारे में होने वाली चर्चाओं, किदवंतियों के आगे नत्मस्तक होकर पंगा लेने से ही परहेज किया हो।
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जी हां हम बात कर रहे हैं केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की जो ना केवल भारत के सबसे अधिक अमीर मंदिर के रूप में जाना जाता है बल्कि अपने खजाने के रहस्य भी इसे चर्चाओं में रखते हैं।
दिलचस्प है भारत की अंग्रेजों से आजादी के बाद और लोकतांत्रिक रूप से संविधान के लागू होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद भारत की सरकार भी पद्मनाभस्वामी मंदिर का सारा खजाना आज तक नहीं देख पाई है, अलबत्ता मदिर की आडिट के नाम पर किए गए आंकलन ने इसकी संपति को तीन लाख करोड़ रूपये के पार बताया है, लगभग यही वो राशि है जिसके बराबर भारत के आरबीआई के पास रिजर्व हैं।
आखिर क्या राज है श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के सातवें द्वार का
देश में अनेकों मंदिर हैं और हर मंदिर में श्रद्यालु भी होते हैं लेकिन बहुत कम मंदिर होते हैं जो वैज्ञानिक रिसर्च का विषय बनते हों और इनमें से कई मंदिर तो आज भी वैज्ञानिक रिसर्च से काफी दूर हैं। और जिन मंदिरों पर वैज्ञानिक ने रिसर्च की भी है, उसने भी सबका सर चकरा कर रख दिया है। कई लोगों के मन में जरूर इसके खिलाफ शंका होगी, लेकिन फिर भी उनके पास वैज्ञानिकों की ही तरह कोई भी जवाब नहीं होगा और ना ही उसका रहस्य सुलझा पा रहे हैं।
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श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखाने की खबर कुछ साल पहले काफी सुर्खियां बन गई, लेकिन इसे खोलने की कोशिश साल 1931 से शुरू हो गई थी। इसी साल गाइड आफ त्ऱावनकोर किताब लिखी गई थी, इसमें बताया गया था, कि जब पद्मनाभस्वामी मंदिर के कोबरा वाले तहखाने को खोलने की कोशिश की गई, तब उसमें से कई जहरीले सांप निकले थे और सभी को सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा। मंदिर का रहस्य तलाशने वाले लोगों ने अगले कई सालों तक यह दावा किया कि उन सांपों ने उनका हर जगह पीछा किया हो, इसके अलावा और भी कई किताबों हैं जिनमें मंदिर के सातवें दरवाजे के बारे में जिक्र किया गया है।
इसके बाद साल 2011 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखाने को खोलने के लिए एक टीम बनाई गई ़त्रावनकोर जिले के पूर्व कलेक्टर और सीवीसी के पूर्व चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित सरकार टीम ने मंत्रोचारण व विधी विधान से की गई पूजा के बाद मंदिर में छह तहखाने ढूंढ निकाले, इन्हें ए, बी, सी, डीई, एफ नाम दिया गया इसी दौरान दो और तहखाने ढूंढ लिया गए, जिसे जी और एच नाम दिया गया।
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इसमें से बी तहखाने को छोड़कर बाकी सारे तहखाने खोले गए, और उसमें सोने की मूर्तियां, गहने, कई कीमती चीजें मिली। जिनकी कुल कीमत तीन लाख करोड़ थी। लेकिन बी तहखाना जिस के दरवाजे पर कोबरा बना हुआ था, उसे नहीं खोला जा सका। क्योंकि जब उस तहखाने का लोहे का दरवाजा खोला गया तो, उसके अंदर एक लकड़ी का दरवाजा निकला। जब उस लकड़ी के दरवाजे को तोड़कर खोला गया तो, उसके अंदर एक और लोहे का भारी दरवाजा था जिसे खोलने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे लाहे के इस दरवाजे को लगाया ही ऐसे गया हो कि, कोई उसे दोबारा खोल ही ना सके। वहां साधु संतों का कहना है कि इस दरवाजे पर ‘नाग बंधम’ लगाया गया है। यानी इसे शक्तिशाली मंत्रों से बंद किया गया है। और इस दरवाजे को सिद्ध पुरुष ही खोल सकते हैं, जो इन मंत्रों की जानकारी रखते हो। अगर इसे ऐसे ही खोलने की कोशिश की गई तो ऐसा संभव नहीं है। हर दरवाजा खोलने पर उसके अंदर एक और दरवाजा निकलता जायेगा , और इसे कभी खोला नहीं जा सकेगा।
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इतना ही सुनामी से लेकर भारी प्राकृतिक आपदा की बात भी कही गई, आशंका जताई गई कि हो सकता है कि इसका रास्ता सीधा समुद्र में निकलता हो और सही तकनीक ना लगाए जाने के चलते मंदिर की नींव ही खतरे में ना पड़ जाए।
वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि इसमे प्राचीन विज्ञान की कोई कड़ी हो सकती है। इसलिए इस में जहरीली गैस भी भरी हो सकती है, और यह जानलेवा भी हो सकती है। इतने साल बीत जाने के बाद आज तक बस इस तहखाने को खोलने की बातें ही की जा रही है।
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आखिर क्या है ऐसा पद्मनाभस्वामी मंदिर के इस तहखाने में? जो वैज्ञानिकों की भी कोशिशें ठंडी पड़ गई है। तो क्या सच में इसे खोला जा चुका है? पर इसे पूरी दुनिया से छिपाया जा रहा है। और इस तहखाने में ऐसा क्या है? जो इतना बड़ा रहस्य होते हुए भी इसकी सच्चाई सामने नहीं आ पा रही है।
इन सब सवालों का जवाब तो उस तहखाने में ही छुपा हुआ है, लेकिन आज भी इसे देखकर ऐसा नहीं लगता की इन सवालों का जवाब हमें जल्द ही मिल पाएगा!
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याद रहे कि देश की आजादी के बाद और राजाओं और महाराजाओं की सत्ता जाने यहां तक की प्रीवी पर्स बंद होने के बावजूद त्रावनकोर राजपरिवार ने मंदिर के खजाने पर अपना किसी प्रकार का अधिकार नहीं जताया है। निसंदेह यही वो राज परिवार है जो शताब्दियों से शासन करता रहा है, मंदिर के निर्माण व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भी इसी राज परिवार की रही है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के रहस्यों पर राज परिवार की खामोशी कई प्रकार के संदेह उत्पन्न जरूर करती है।