मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक ऐसा गाँव है जहा का किला हमेशा से ही रहस्य और जिज्ञासा का विषय बना रहा है | यह किला न केवल बेजोड़ शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है बल्कि विश्वासघात की नींव पर रची गई खूनी प्रणय गाथा के अंत का गवाह भी है। ११ वीं शताब्दी में यह किला जुझौती प्रदेश की राजधानी था | उस समय उत्तर भारत का एक बड़ा शहर गढ़ कुंडार हुआ करता था | गढ़कुंडार का किला बेहद रहस्मयी है। गढ कुण्डार का प्राचीन नाम गढ कुरार है।
ये किला 1500 से 2000 साल पुराना है। यहां चंदेलों, बुंदेलों, खंगार कई शासकों ने शासन किया। घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बना यह किला इस तरह बनाया गया कि 4-5 किलोमीटर दूर से तो दिखाई देता है, लेकिन जैसे जैसे नजदीक पंहुचते है किला दिखना बंद हो जाता है। जिस रास्ते से किला दूर से दिखाई है। अगर उसी रास्ते से आगे जाते है तो ये रास्ता भी किले की बजाय कहीं और जाता है। जबकि किले के लिए दूसरा रास्ता है। आक्रमण की द्रष्टि से यह पूर्णरूप से सुरक्षित है इसलिए इसे दुर्गुम दुर्ग भी कहा जाता है| यह किला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन ईमारतों में से एक है | यह पहाड़ों के बीच इतनी ऊंचाई पर बना है कि तोपों के गोले इसे नहीं तोड़ सकते लेकिन इस किले से बहुत दूर तक दुश्मनों को देखकर उन्हें आसानी से मारा जा सकता था | हाथिओं द्वारा इस किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है|
किले का वास्तु
राजमहल को चारों तरफ ६ फुट मोटाई का परकोटा घेरे हुए है जिस का द्वार सिंहद्वार कहा जाता है | सिंह द्वार के बाहर दो चबूतरे बने हैं जिन्हें दीवान चबूतरा कहते है ! सिंहद्वार की ऊंचाई लगभग २० फुट तथा लम्बाई ८० फुट है| सिंह द्वार को पार करने के बाद सिंह पौर है इसके बाद तोप खाना है जहाँ राजाओं के समय में तोपें रखी जाती थीं |
राज महल के बाहर १८ फु० चौड़ी और १०० फ़ु० लम्बी घुडसाल है जहाँ राजा के घोड़े बांधे जाते थे !इस घुडसाल में ११ दरवाजे हैं इसके सामने एक चक्की लगी है जिससे चूना पीसने का काम किया जाता था | इसी घुडसाल के सामने भव्य राजमहल बना है | 11वीं सदी में बना ये किला 5 मंजिलों का है। 3 मंजिल तो ऊपर हैं, जबकि 2 मंजिल जमीन के नीचे है।
महल बहुत ही बड़ा और वर्गाकार बना है! महल में राजा रानी के कमरे, राजकुमारों के कमरे, राजा का दीवाने आम और बंदी गृह भी बने हुए हैं ! महल के आँगन में हनुमान जी का एक मंदिर था जो अब जीर्ण अवस्था में है | आँगन में ही एक विशाल वेदी बनी है जहाँ राज परिवार महापूजा किया करता था !
जौहर स्तम्भ
आँगन में राजकुमारी केशर दे का जौहर स्तम्भ भी है | खंगार राजवंश के अन्तिम राजा मानसिंह की बेटी का नाम केसर दे था। राजकुमारी केसर दे अनुपम सौंदर्य की मल्लिका थी| जिसकी ख्याति दिल्ली तक थी | दिल्ली के सुल्तान मोहम्मदतुगलक ने राजकुमारी से शादी करने का प्रस्ताव भेजा परन्तु राजा मानसिंह ने राजकुमारी के लिए आया प्रस्ताव ठुकरा दिया । मोहम्मद तुगलक की सेना ने सन् 1347 में गढ़ कुंडार पर आक्रमण कर किले को अपने कब्जे में कर लिया। राजकुमारी केसर दे और अन्य महिलाओं ने अपनी अस्मिता बनाए रखने के लिए किले के अन्दर बने कुंए में आग जलाकर अपने प्राणों की आहुति दी थी | इस कुंए को जौहर कुआं भी कहते हैं | महल में सबसे नीचे के तल से एक सुरंग महल के बाहर इसी जौहर कुंए तक जाती है |
किले के रक्तरंजित इतिहास
गढ़कुंडार का किला एतिहासिक समृद्धि का प्रतीक होने के साथ-साथ रक्तरंजित प्रणय गाथा का भी साक्षी रहा है जिसमें खंगार राजवंश को खत्म करने की साजिश को अंजाम दिया गया था। इस किले के पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस किले पर कब्जा कर खंगार राज्य की नींव डाली। खेतसिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव का पुत्र था। रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह मित्र हुआ करते थे। जिस कारण पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह भी बचपन से ही मित्र हो गए थे। खेतसिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी।यहाँ चंदेलो का पहिले एक किला हुआ करता था जिसे जिनागढ के नाम से जाना जाता था। खंगार वंशीय खेत सिंह बनारस से बुंदेलखंड आये और जिनागढ पर कब्जा कर एक नए राज्य की स्थापना की। उनके पोते ने इस किले का नव निर्माण करवा कर नाम गढ़कुंडार रखा।
अन्य दर्शनीय स्थल
गढ़ कुंडार में राजमहल के साथ साथ गिद्ध वाहिनी देवी का मंदिर , सिंदूर सागर ताल, गजानन माता मंदिर, मुडिया महल , खजुआ बैठक सिया की रावर भी दर्शनीय स्थल हैं |
किले में मौजूद खजाने का रहस्य
इतिहासकारों के कहना है कि गढ़कुंडार बेहद ही संपन्न और पुरानी रियासत रही है। यहां के राजाओं के पास कभी भी सोना, हीरे, जवाहरात की कमी नहीं रही है। कई विदेशी ताकतों ने भी खजाने को लूटा। स्थानीय चोर उचक्कों ने भी खजाने को तलाशने की भरपूर कोशिश की और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा | इसलिए दो फ्लोर बेसमेंट को बंद कर दिया गया है। कहा जाता है इस किले में इतना सोना चांदी अब भी है कि भारत जैसा देश भी आसानी से अमीर हो जाए।
किले में गायब हुई बारात
किला 2000 साल पुराना है आसपास के लोग बताते हैं कि काफी समय पहले यहां पास के ही गांव से एक बरात आई थी। बरात किला घूमने आई थी। घूमते-घूमते वे लोग बेसमेंट में चले गए। और फिर कभी वापस नहीं आए | उन गायब हुए 50-60 लोगों का आज तक पता नहीं चल सका। इसके बाद भी कुछ इस तरह की और घटनाएं हुईं। इन घटनाओं के बाद किले के नीचे जाने वाले सभी दरवाजों को बंद कर दिया गया है ।यह किला भूल-भुलैय्या की तरह है। इसमें अधिक अंदर जाने पर कोई भी दिशा भूल हो सकता है। दिन में भी अंधेरा रहने के कारण यह दिन में भी डरावना लगता है।
गढ़ कुंडार में खंगार राजवंश के संस्थापक महाराजा खेत सिंह खंगार की जयंती पर २७ दिसम्बर को प्रति वर्ष मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं और बड़ी संख्या में देश विदेश से लोग आते है | वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार बुंदेलखंड के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में भी निवास करते हैं|
-वंदना