-पहाड़ी पर स्थित है सुभद्रा माता का मंदिर
राजस्थान का संबंध रामायण काल व महाभारत काल से रहा है। सूर्यनगरी का संबंध रामायण काल के रावण और मंदोदरी से है। क्योंकि यहां पर रावण के ससुराल थे। वहीं राजस्थान के जोधपुर जिले के संबंध पौराणिक इतिहास महाभारत काल से भी जुड़े हुए है। क्योंकि यहां पर भगवान श्री कृष्ण की प्रिय बहन सुभद्रा का विवाह श्री कृष्ण के प्रिय सखा अर्जुन से हुआ था। इस क्षेत्र में सुभद्रा को माता के रुप में पूजा जाता है। यहां पहाड़ी पर एक मंदिर सुभद्रा माता का भी है। आईए, आज आपको इस इलाके के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।
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यहां से जुड़ीं हैं अर्जुन, सुभद्रा की कहानियां
राजस्थान के जोधपुर जिले के लूणी तहसील के सर गांव से धनुर्धारी अर्जुन औऱ श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा की कई कहानियां जुड़ी हुई है। यहां पर अर्जुन की पत्नी सुभद्रा ने कुछ समय बिताया था।
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दिवांदी गांव से भी अर्जुन, सुभद्रा का नाता
धनुर्धारी अर्जुन और सुभद्रा का नाता जहां सर गांव से माना जाता है। वहीं पाली जिले के दिवांदी गांव से भी इन दोनों का नाता माना जाता है। दिवांदी का पौणिक नाम ताबावंती था। जो बाद में देवनगरी बन गया। मौजूदा समय में इस इलाके को दिवांदी नाम से जाना जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गो के अनुसार इस स्थान पर ही सुभद्रा-अर्जुन के विवाह की सभी रस्में पूर्ण हुई थी। इनका विवाह महर्षि वेद व्यास ने करवाया था। जहां तोरण बांधने की रस्म हुई थी, वहां अर्जुन-सुभद्रा ने भगवान शिव का लिंग स्थापित किया। जिसे आज तोरणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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सुभद्रा-अर्जुन ने बसाया था भाद्राजून
दिवांदी से आगे जाकर सुभद्रा-अर्जुन ने एक नगर भी बसाया था। जिसे वर्तमान में भाद्राजून कहा जाता है। एेसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस स्थान पर 12 साल तक तपस्या की थी। इन बारह सालों में एक बार भी सोमवती अमावस्या नहीं आई। इस पर पांडवों ने दिया कि कलयुग में हर साल सोमवती अमावस्या आया करेगी। तभी से सोमवती अमावस्या हर वर्ष आने लगी। मंदिर के पीछे के एक भाग में एक प्राचीन गुफा है, जो सर गांव स्थित सुभद्रा माता मंदिर तक जाती है।
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सुभद्रा माता ने दिए थे साक्षात दर्शन
इस स्थान पर सुभद्रा माता ने भाखर (पहाड़ी) में कलबी कुल के सुरो बापू भुंगर को साक्षात दर्शन दिए थे। तब से आज तक सुभद्रा माता की पूजा अर्चना की जा रही है। वर्तमान पुजारी भोपाजी भलाराम भुंगर व गांव के बुजुर्गो के अनुसार सर गांव में साल 1910 में उनके बुजुर्गों को सुभद्रा माता ने दर्शन देकर वचनसिद्धि का वरदान दिया था। उसके बाद सुरो बापू भुंगर ने यहां पर 12 साल तक अपने खेत में सुभद्रा माता की पूजा की। बाद में तत्कालीन ठाकुर विजयसिंह के शासन में मुख्य गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ी में बनी प्राकृतिक गुफा में पुजा-अर्चना की शुरुआत की। उन्होंने वहां मंदिर के लिए एक कमरा मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढि़यों का निर्माण भी करवाया था। गौर हो वर्तमान पुजारी भोपाजी भलाराम भुंगर सुरो बापू भुंगर के पौत्र हैं।
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नवरात्रि में होता है भव्य आयोजन
सुभद्रा माता मंदिर में नवरात्रि पर भव्य आयोजन होता है। यहां पर हर साल बड़ी संख्या भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। यह इलाका आज पर्यटन के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका है। मंदिर में दिन में दो बार आरती करने की परंपरा है। मौजूदा समय में मंदिर की गतिविधयों व अन्य व्यवस्थाओं की देखभाल एक ट्रस्ट द्वारा की जा रही है।
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प्रदीप शाही