-भगवान राम के दर्शन के लिए पहले हनुमान जी लेनी पड़ती है आज्ञा
उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या में सरयू नदी के किनार उंचे टीले पर भगवान शिव के 11वें रुद्रावातर हनुमान जी की अनोखा मंदिर स्थापित है। इस पावन मंदिर में मात्र छह इंच की प्रतिमा में हनुमान जी का वास है। अयोध्या में भगवान श्री राम के दर्शन से पहले हनुमान जी की आज्ञा लेने की प्रथा है। हनुमानजी को कलियुग के जीवंत देवता का दर्जा हासिल है।
मंदिर में छह इंच की प्रतिमा विद्यमान
हनुमान जी का यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दांये तट के पास एक उंचे टीले पर स्थित है। इस मंदिर में श्री हनुमान जी के दर्शन करने के लिए 76 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। हनुमानजी की छह इंच की यह प्रतिमा सदा पुष्प मालाओं से सुशोभित रहती है। संकट मोचन श्री हनुमान जी की महिमा में रचित श्री हनुमान चालीसा की चौपाइयों को मंदिर की दीवारों पर उकेरा गया है। माताअंजनी की गोद में बालरुप हनुमान जी की लेटे होने की मूर्ति बेहद दर्शनीय है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए कुछ पावन निशान भी इस हनुमान गढ़ी में रखे गए है। जिन्हें विशेष मौकों पर भक्तों के दर्शानार्थ रखा जाता है।
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श्री हनुमान जी से लेनी पड़ती है आज्ञा
श्री हनुमान मंदिर की हनुमानगढ़ी के नाम से भी पहचान है। माना जाता है कि हनुमान जी यहां पर एक गुफा में वास कर राम जन्म भूमि की रक्षा करते है। भगवान राम ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए यहां आएगा। उसे सबसे पहले तुम्हारा पूजन करना होगा। उसके बाद ही वह मेरे दर्शन करने आएगा। यहां आज भी छोटी दीपावली को संकटमोचन के जन्म दिवस के रुप में मनाए जाने की परंपरा है। सरयू नदी में स्नान कर पाप धोने से पहले जनमान को श्री हनुमान जी से आज्ञा लेनी पड़ती है।
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मंदिर व क्षेत्र का इतिहास
प्राचीन काल में यह क्षेत्र कौशल देश के नाम से विख्यात था। अथर्ववेद में अयोध्या शहर को प्रभु का नगर भी बताया गया है। रामायण जी के मुताबिक अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह शहर कई सदियों तक सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। धर्म ग्रंथों अनुसार अयोध्या को भगवान श्रीराम की जन्मस्थली भी माना गया है। हनुमान गढ़ी की निर्माण शैली में दिल्ली और आगरा के लाल किले की ही झलक मिलती है। यह मंदिर काफी बड़ा है। मंदिर के चारों तरह बने आवास में साधु-संत रहते हैं। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव और अंगद टीला है। अयोध्या के जाने कितनी बार बसने व उजड़ने की जानकारी है। बावजूद इसके हनुमान टीला को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ।
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मंदिर से जुड़ी किदवंतियां…
सुल्तान मंसूर अली लखनउ और फैजाबाद का प्रशासक था। एक बार सुल्तान का पुत्र बीमार पड़ा। सभी माहिर बच्चे का इलाज करने में असमर्थ हो गए। तब सुल्तान ने श्री हनुमान के चरणों में प्रार्थना की। चमत्कार हुआ और उनका बेटा पूर्ण तौर से स्वस्थ हो गया। सुल्तान ने खुश होकर मंदिर के विकास के लिए 52 बीघा भूमि प्रदान की।
इस स्थान को पहले हनुमान बाडी के नाम से भी जाना जाता था। करीब 600 साल पहले बख्तयार खिलजी ने इसका नाम इस्लामबाडी कर दिया था। लगभग 200 साल पहले अवध के नवाब मुहम्मद अली शाह और उनकी बेगम रबिया को औलाद का सुख नहीं था । नवाब से बजरंग बली के भक्त से गुजारिश करने को कहा। रबिया बेगम ने साधु के सामने झोली फैलाई। हनुमान जी ने भी बेगम की आस्था को परखने की सोची। स्वप्न में बेगम को कहा कि वह उस टीले के नीचे दबी मेरी मूर्ति को निकाल कर मंदिर में स्थापित करे। बेगम ने स्वप्न के बारे बाबा को बताया। आखिर टीले की खुदाई में निकली मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर दिया। तब नवाब को संतान सुख भी मिला। इस मंदिर पर कई बार मुसलमानों ने हमला किया। परंतु महन्त अभय रामदास ने हर बार उन्हें मार भगाया। तब से मंहत पक्के तौर से मंदिर में निवास कर हनुमान जी पूजा करने लगे। उनके सशस्त्र साधु हमेशा मंदिर में रहते थे। आज भी साधु साल में एक बार विशेष पूजा का आय़ोजन करते है। जिसमें महंत जी व अन्य साधु के अस्त्रों को रखा जाता है। इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है।