माँ चामुंडा ने की थी इस शहर की रक्षा ..

-रजवाड़ों की कुलदेवी थी माँ चामुंडा
राजस्थान रजवाड़ो की शूरवीरता के लिए हमेशा से प्रसिद्ध रहा है | किसी भी युद्ध में जाने से पहले राजवंश के राजपूत देवी की पूजा अर्चना करते थे | ऐसे ही एक जोधपुर घराने के राजवंशी जिन्होंने शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद एक नया किला और एक विशालकाय मंदिर बनवाया | राव जोधा ने जब मंडोर के किले को असुरक्षित समझा तो उन्होने अपने तत्कालीन किले से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार किया। इस पहाड़ी को भोर चिड़ियाटूंंक के नाम से भी जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी और चिड़िया रहती थी । राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. को इस पहाडी पर किले की नीव डाली और 1460 मे जोधपुर में मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। राव जोधा जिनकी चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा माता सदा से ही जोधपुर के शासकों की कुलदेवी रही है। उस समय चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि जोधपुर निवासियों की भी कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी की पूजा करते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है|

राजस्थान में मां चामुंडा देवी को करीब 550 साल पूर्व मंडोर के परिहारों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता था परन्तु जोधपुर की स्थापना के साथ ही मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के किले पर इस मंदिर को राव जोधा ने राजवंश के साथ साथ आम जनता के लिए भी बनवाया था | पहले मां चामुंडा को जोधपुर और आस-पास के लोग ही मानते थे और इनकी पूजा अर्चना किया करते थे लेकिन मां चामुंडा में लोगों का विश्वास 1965 के युद्ध के बाद बढ़ता चला गया|

लोगों की बढ़ती आस्था के पीछे की वजह के बारे में यह कहा जाता है कि जब 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ था, तब सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया था | जोधपुर के समूल नष्ट होने के खतरा हो गया था| तब भी राजवंश और जनता ने माँ चामुंडा के पूजन किया | कहा जाता है कि मां चामुंडा ने चील के रूप धारण कर के जोधपुरवासियों की जान बचाई थी और किसी भी तरह का कोई भी नुकसान नहीं होने दिया था| तभी से जोधपुर वासियों में मां चामुंडा के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास देखने को मिलता है| नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

पुराने समय में रजवाड़ो के समय यहाँ माँ चामुंडा को प्रसन्न करने के लिए बलि भी दी जाती थी जो अब बंद कर दी गई है परन्तु मंदिर में अब भी राजवंशी विधिवत पूजा अर्चना करते है |
मंदिर के पुजारी के कहना है कि मां चामुंडा का परचम इतना लहराया कि आज जोधपुर से बाहर शायद ही कोई ऐसा गांव या शहर ऐसा होगा, जहां मां चामुंडा को लोग नहीं मानते और जानते हों| इसी वजह से देश और विदेश की जानी मानी हस्तियां भी जोधपुर में आकर अपने मांगलिक कार्य पूरे करते है| यहाँ आकर माँ के आशीर्वाद लेते है |

-वंदना

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