महादेव का नृत्य ही है सृष्टि के सृजन व अंत का सार

-शिव के रौद्र तांडव में है प्रलय, आनंद तांडव में है आनंद का वास
महादेव भगवान शंकर द्वारा किए जाने वाले अलौकिक नृत्य तांडव में सृष्टि के सृजन व अंत का सार छिपा है। भगवान शिव का नटराज रुप एक नर्तक के तौर पर किया तांडव नृत्य उनके क्रोधित व आनंदमयी रुप को पेश करता है। रोद्र तांडव में प्रलय और आनंद तांडव में आनंद की रोमांचकारी प्रस्तुति दिखाई देती है।


नटराज रुप में भगवान शिव का तांडव
भगवान शिव के नटराज रुप में किए नृत्य को ही तांडव माना गया है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है। नट अर्थात कला और राज। ज्यादातर लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही मानते हैं। जबकि यह सत्य नहीं है। नर्तक रुप में भगवान शिव के किए गए तांडव महादेव के रौद्र और आनंदमयी दो रुपों के दर्शन होते हैं। रौद्र तांडव में भगवान शिव का पहला रुप उनके क्रोध का परिचायक, प्रलयकारी रौद्र को दर्थाता है। इस रुप को शिव रुद्र कहा जाता है। जबकि आनंदमयी रुप में किए नृत्य को नटराज कहा जाता है। विद्वानों अनुसार शिव के आनन्द तांडव से सृष्टि अस्तित्व में आती है, जबकि शिव के रौद्र तांडव में सृष्टि का अंत हो जाता है। भगवान शिव के नर्तक के रुप में किए नृत्य में नृत्य की सभी कलाओं के सहज ही दर्शन होते हैं। भारतीय संगीत में चौदह प्रमुख तालभेद में वीर तथा बीभत्स रस के सम्मिश्रण से बने तांडवीय ताल का वर्णन भी मिलता है।

इन्हें भी पढें….भगवान शिव ने क्या भेंट किया था भगवान कृष्ण को अनमोल उपहार…

नटराज रुप में भगवान शिव देते हैं कई संदेश
नटराज के रुप में भगवान शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति की चार भुजाएं हैं। उनके चारों तरफ अग्नि का घेरा, एक पांव से वह एक बौने को दबाए हुए हैं। जबकि उनका दूसरा पांव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। उपर की तरफ उठे अपने पहले दाहिने हाथ में वह डमरु तो पकड़े हुए हैं। डमरू की आवाज को सृजन का प्रतीक कहा जाता है। इस रुप में शिव की सृजनात्मक शक्ति दिखाई देती है। उपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में अग्नि है। यहां पर अग्नि को विनाश का प्रतीक माना गया है। इसका अर्थ यह माना गया है कि भगवान शिव एक हाथ से सृजन और दूसरे हाथ से विलय कर रहे हैं। उवहीं दूसरा दाहिना हाथ आशीष मुद्रा में उठा हुआ है, जो कि हमें बुराईयों से रक्षा करने रुप में आशीर्वाद प्रदान कर रहा है। इसके अलावा उनका उठा हुआ पांव मोक्ष का द्योतक है। उनका दूसरा बायां हाथ उनके उठे हुए पांव की तरफ इशारा करता है। इसका अर्थ यह है कि शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव कर रहे है। यानिकि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। उनके पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है, जिसे शिव नष्ट कर रहे हैं। चारों तरफ उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्मांड की तरफ इशारा कर रही हैं। उनके शरीर पर लहराते सर्प कुण्डलिनी शक्ति के प्रतीक है। उनकी यह संपूर्ण आकृति ॐ कार स्वरूप जैसी दिखाई देती है। यानकि ॐ ही शिव में समाहित है।

इन्हें भी पढ़ें….यहां पर भगवान शिव मणि के रूप में देते हैं दर्शन

शास्त्रों में भी वर्णित है तांडव नृत्य
शास्त्रों में प्रमुखता से भगवान शिव और तांडव नृत्य को एक ही माना गया है। परंतु कई काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम के तांडव का भी वर्णन मिलता है। लंकेश रावण में शिव ताण्डव स्तोत्र के अलावा वैश्यवर समाधि रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है। रावण के भवन में पूजन के समाप्त होने पर शिव जी ने, महिषासुर को मारने के बाद दुर्गा माता ने, गजमुख की पराजय के बाद गणेश जी ने, ब्रह्मा के पंचम मस्तक के छेदन के बाद आदिभैरव ने एवं रावण के वध के समय भगवान श्री राम ने भी तांडव किया था।

 

इन्हें भी पढें….भगवान शिव के आंसू से बना था पाकिस्तान स्थित मंदिर में यह कुंड

भगवान शिव ने धरती पर राधिका का रूप धर किया था रास
कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के तांडव नृत्य में एक बार सम्मिलित होने के लिए समस्त देवगण उपस्थित हुए। माता गौरी की अध्यक्षता में तांडव का आयोजन किया गया। देवर्षि नारद भी उस नृत्य कार्यक्रम में खास तौर से सम्मलित हुए। कुछ समय बाद भगवान शिव ने भावविभोर होकर तांडव नृत्य प्रारंभ किया। नृत्य के दौरान सभी देवी देवता विभिन्न वाद्य बजाने लगे। मां सरस्वती वीणा वादन, भगवान विष्णु मृदंग, , देवराज इन्द्र बांसुरी बजाने लग। जबकि भगवान ब्रह्मा जी हाथ से ताल देने लगे और माता लक्ष्मी जी गायन करने लगीं। भगवान शिव ने प्रदोष काल में नृत्य का प्रदर्शन किया। अत्यंत प्रसन्न होकर भगवती मां ने शिवजी से कहा कि हे भगवन्‌! आज आपके इस नृत्य से मुझे बड़ा आनंद हुआ है, मैं चाहती हूं कि आप आज मुझसे कोई वर प्राप्त करें। आशुतोष भगवान शिव ने नारद जी की प्रेरणा से कहा कि हे देवी! इस तांडव नृत्य का जिस तरह आप सबने आनंद उठाया है । मेरी इच्छा उसी तरह से पृथ्वी के प्राणियों को भी इसका दर्शन प्राप्त हो सके। किंतु मैं अब तांडव नहीं केवल रास करना चाहता हूं। भगवान शिव की बात सुनकर मां भगवती ने समस्त देवताओं को विभिन्न रूपों में पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया। भगवान श्याम सुंदर के रुप में श्रीकृष्ण का अवतार लिया। भगवान ने ब्रज में राधा के रूप में अवतार ग्रहण किया। यहां इन दोनों ने मिलकर देव दुर्लभ, अलौकिक रास नृत्य का आयोजन किया। भगवान शिव की नटराज उपाधि यहां भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त हुई थी।

कुमार प्रदीप

LEAVE A REPLY