हिन्दु धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था, लेकिन आज स्थिति ठीक ऐसी है कि धार्मिक मान्यताओं परंपराओं को आडंबर व अंधविश्वास से देखा जाने लगा है> कारण सिर्फ यही है कि हम अपनी संस्कृति और ज्ञान को सही परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करने से कहीं ना कहीं चूक रहे हैं। यदि प्रचीन मंदिरों के बारे में सही व स्टीक जानकारी साधारण जनमानस के सामने रखी जाए तो कई प्रकार की भ्रांतियां दूर की जा सकती हैं।
आखिर कौनसा जीपीएस था आर्यों के पास
आज हम बात करते हैं कालों के काल महाकाल की और जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर क्या कारण है कि महाकाल से प्रमुख शिवलिंगों के बीच की दूरी गणितिय भाषा में एक जैसी क्यों लगती है।
उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-
उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी
उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी
उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी
उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी
उज्जैन से,मल्लिकार्जुन- 999 किमी
उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी
उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी
उज्जैन से रामेश्वरम- 1999 किमी
उज्जैन से घृष्णेश्वर – 555 किमी
महाकाल की भूमि उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। सनातन धर्म में निष्ठा रखने वाले हजारों सालों से उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र मानते आ रहे है और इसी आधार पर खगौल विज्ञान का आंकलन करते रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये है। ये यंत्र एक दो शताब्दियों पहले नहीं अपितु करीब 2050 वर्ष पहले स्थापित किए गए हैं।
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यहां यह भी बताते चलें कि लगभग सौ सवा सौ साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उसका मध्य भाग उज्जैन ही निकला था और आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते है सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिए ऐसे में महाकाल की महिमा अपरंपार है।