महर्षि मैत्रेय ने क्यों दिय़ा था दुर्योधन को श्राप

श्राप कारण ही दुर्योधन की भीम ने तोड़ी थी जंघा
हर धरती पर जन्म लेने वाला हर इंसान अपने कर्मों का फल भोगता है। पिछले जन्म के किए कर्म अनुसार ही वह सुख और दुख झेलता है। अपने व्यवहार के चलते ही कई बार उदंडता का खामियाजा भी भुगतता है। आईए, आज आपको महाभारत काल में कौरव वंश के सबसे बड़े बेटे दुर्योधन को उसकी उदंडता के चलते मिले श्राप से अवगत करवाते हैं। आखिर ऐसी क्या स्थिति पैदा हुई कि दुर्योधन को महर्षि मैत्रेय से श्राप मिला। महर्षि मैत्रेय से मिले श्राप के कारण ही दुर्योधन की महाबली भीम ने महाभारत के युद्ध में जंघा को तोड़ दिया था।

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क्यों महर्षि मैत्रेय ने दिया था दुर्योधन को श्राप
कहा जाता है एक बार महर्षि वेदव्यास ने महाराज धृतराष्ट्र से मुलाकात कर कहा कि महर्षि मैत्रेय राजसभा में आ रहे हैं। महर्षि मैत्रेय पांडवों से मिल चुके हैं। अब वह आप लोगों से मिलना चाहते हैं। महर्षि मैत्रेय के आने का उद्देश्य केवल उपदेश ही देना है। वह तुम्हारे पुत्रों को पांडवों से मेल-मिलाप का उपदेश देंगे। मैं केवल यह बताने आया हूं कि महर्षि मैत्रेय जो कुछ भी कहें, उसे दुर्योधन बिना तर्क किए मान ले। यदि महर्षि मैत्रेय की आज्ञा का उल्लंघन हुआ तो वह क्रोध में आकर श्राप भी दे सकते हैं। इसलिए शांतिपूर्वक उनकी बातें सुनना ही सभी के लिए हितकारी होगा। उनके उपदेशों को मानना या न मानना यह अब तुम पर निर्भर करता है। इतना कहकर वेदव्यास जी चले गए।
वेदव्यास के जाते ही महाराज धृतराष्ट्र, महर्षि मैत्रेय के स्वागत के लिए अपने पुत्रों सहित तैयारी शुरु कर देते हैं। कुछ समय विश्राम करने के बाद धृतराष्ट्र ने महर्षि मैत्रेय से पूछा कि भगवन, आपकी यहां तक की यात्रा कैसी रही? तब महर्षि मैत्रेय ने बताया कि राजन वह तीर्थयात्रा कर वापिस आ रहे थे, संयोगवश काम्यक वन में युधिष्ठिर से मेरी भेंट हो गई। वे आजकल तपोवन में रहते हैं। मैंने सुना है कि तुम्हारे पुत्रों ने पांडवों से छल से जुए में राज्य छीन लिया है। महर्षि मैत्रेय ने महाराज धृतराष्ट्र से यह कह पीछे मुड़ कर दुर्योधन से कहा क्या तुम जानते हो कि पांडव कितने वीर और शक्तिशाली हैं। इस लिए तुम्हें उनके साथ मेल मिलाप संग रहना चाहिए। मेरी बात मान लो, और गुस्से में ऐसा अनर्थ मत करो।

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महर्षि मैत्रेय की बात सुनकर दुर्योधन को गुस्सा आ गया। वह व्यंग्यपूर्ण मुद्रा में मुस्कुराते हए पैर से जमीन कुरेदने लगा। इतना ही नहीं इसी दौरान उसने अपनी जांघ पर हाथ से ताल भी ठोंक दी। दुर्योधन की यह उदंडता देखकर महर्षि मैत्रेय को गुस्सा आ गया। तब उन्होंने दुर्योधन को श्राप देते कहा कि तूने मेरा अपमान किया है। मेरी बात शांतिपूर्वक सुन भी नहीं सकता था। जा घंमडी जिस जंघा पर तू ताल ठोंक रहा है, उस जंघा को युद्भ में गदा से तोड़ दिया जाएगा। यही तुम्हारी उदंडता का फल है। कौरव और पांडवों के मध्य हुए महाभारत के युद्ध में जब कौरवों की तरफ सभी वीर मारे जाते हैं। तब अंत में दुर्योधन के साथ हुए गदा युद्ध में महाबली भीम दुर्योधन की जंघा को तोड़ देता है। यह महर्षि मैत्रेय के श्राप का ही परिणाम था।

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प्रदीप शाही

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