चंडीगढ़, 31 अगस्त:
राज्यों को जीएसटी मुआवजे के भुगतान के लिए केंद्र सरकार द्वारा पेश किये दो विकल्पों को सिरे से रद्द करते हुए पंजाब के वित्त मंत्री स. मनप्रीत सिंह बादल ने सोमवार को केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन को पत्र लिखकर इस फैसले, जो वस्तु एवं सेवा कर कौंसिल (जीएसटीसी) की पिछली मीटिंग में लिया गया, पर फिर से विचार करने के लिए कहा है।
इस फैसले को केंद्र सरकार के संवैधानिक विश्वास का स्पष्ट उल्लंघन करार देते हुए स. मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि इसको सहकारी संघीय ढांचे की भावना के साथ विश्वासघात माना जायेगा, जो अब तक जीएसटी प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है। पंजाब इस मसले पर पूरी स्पष्टता चाहता है और जीएसटीसी की आगामी बैठक में यह मामला एक बार फिर से ऐजंडे पर लाना चाहता है।
पत्र में स. मनप्रीत सिंह बादल ने इस मामले पर विचार-विमर्श के लिए एक जी.ओ.एम. (मंत्रियों का समूह) के गठन करने का भी सुझाव दिया, जिसके द्वारा 10 दिनों की समय-सीमा के अंदर सिफारिशें दी जाएंगी। उन्होंने कहा कि पंजाब इस मसले के हल के लिए सहयोग करने के लिए तैयार है परन्तु इस पड़ाव पर दिए गए किसी भी विकल्प के चयन में असमर्थ है।
इस पत्र में पंजाब के वित्त मंत्री ने उस समय के चेयरपर्सन के बयानों की तरफ ध्यान दिलाया कि मुआवजा राजस्व के नुक्सान का 100 प्रतिशत होगा; यह 5 साल की निर्धारित मियाद के अंदर देने योग्य होगा; इसका भुगतान केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है; केवल फंडिंग बारे फैसला जीएसटी कौंसिल द्वारा किया जायेगा और यदि कोई कमी आती है तो जरुरी फंड के लिए कर्ज लिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार खुद इसके साथ असहमत नजर आ रही है और अब रिकार्ड के उलट यह दो विकल्प पेश कर दिया हैं। उन्होंने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था उम्मीद करती है कि मुआवजे बारे केंद्रीय कानून कौंसिल की सिफारिश के अनुसार बनाए जाएँ। यदि कोई कानून इसको मान्यता नहीं देता वह असंवैधानिक है।
मुआवजे के भुगतान के तरीकों में अस्पष्टता की बात करते हुए स. मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि जीएसटी कानून की धारायें उन वस्तुओं बारे अस्पष्ट हैं, जिन पर पाँच सालों बाद लक्ष्य पूरा न होने पर सैस लगाया जा सकता है। हालाँकि, बाद में पेश किये गए जीएसटी मुआवजा बिल के मसौदे में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी या ऐसे ढंग के साथ कर्ज लेने बारे कोई जिक्र नहीं। दरअसल, जब जीएसटी कौंसिल की 10वीं बैठक में इस मसले को उठाया गया था तो कौंसिल के सैक्ट्री ने कहा था कि केंद्र सरकार मुआवजे के लिए अन्य ढंग से स्रोतों को एकत्रित कर सकती है और इसको 5 साल से अधिक समय सैस जारी रखकर रिकवर किया जा सकता है। यह स्पष्ट है कि जीएसटी मुआवजा कानून कौंसिल के फैसलों के अनुसार नहीं, परन्तु सैक्ट्री द्वारा दिए गए भरोसे के बाद कौंसिल ने कानूनी तबदीली के लिए जोर न देने के लिए सहमति दी।
स. मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि मुआवजा शब्द जीएसटी मुआवजा एक्ट -2017 की धारा 2(डी) में परिभाषित किया गया है, मुआवजे का अर्थ है रकम, जो वस्तु एवं सेवा कर मुआवजे के रूप में, जैसे कि इस ऐक्ट की धारा 7 अधीन निर्धारित किया गया है। इसके अंतर्गत अनुमानित राजस्व और असली आमदन के दरमियान अंतर के आधार पर मुआवजा तय किया जाता है। अनुमानित आय को धारा 2(के) में भी परिभाषित किया गया है, जो कि सालाना राजस्व सें 14 प्रतिशत सीएजीआर है। इस तरह मुआवजे को इस ऐक्ट में संशोधन किये बिना न बढ़ाया और न ही घटाया जा सकता है। सरकार या कौंसिल के किसी भी स्तर पर मुआवजे बारे कोई एग्जीक्यूटिव फैसला नहीं होता।
उन्होंने कहा, जीएसटी मुआवजा एक्ट यह माँग करता है कि सभी स्रोत पहले मुआवजा फंड में जमा किये जाने चाहिएं जो भारत के सार्वजनिक खाते (धारा 10) का हिस्सा बनेंगे। उन्होंने सवाल किया कि किसी राज्य द्वारा लिए गए कर्जे को मुआवजा फंड में कैसे जमा किया जा सकता है।
केंद्र जी.एस.टी -घाटे को बीते वित्तीय वर्ष की अपेक्षा 10 प्रतिशत की वृद्धि दर मानकर चल रहा है और महामारी का हवाला दिया जा रहा है। यह घाटे का अनुमान लगाने की पूरी कवायद को मनमाना, एकतरफा और किसी कानूनी प्रामाणिकता से मुक्त बनाता है।
कोविड से पहले साल 2019 -20 में जीएसटी राजस्व में लगभग 4 प्रतिशत की दर के साथ विस्तार हो रहा था। साल 2019 -20 के आखिर में जी.डी.पी. की वृद्धि दर धीमी आई। उन्होंने कहा कि कोविड -19 के कारण राजस्व घाटे को दिखाने के लिए 10 प्रतिशत की दर लागू करना बहुत ही तथ्यों से दूर, आंकड़ों के पक्ष से और कानूनी तौर पर गलत है।
कोविड -19 ने अलग -अलग देशों और भारत में विभिन्न राज्यों पर अलग -अलग ढंग से प्रभाव डाला है। पंजाब मुख्य तौर पर एक खेती प्रधान राज्य है और सभी राज्यों के लिए मुआवजे पर समान पाबंदी लगाना उचित तर्क से कोसों दूर है।
श्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि पंजाब अब भारत में सबसे अधिक जीएसटी -घाटे वाला राज्य है। विकल्प 1 में राज्य की राजस्व कमी हमारे हिस्से का विशेष लाभ लेने के बाद और वित्तीय घाटे के अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत के बावजूद पूरा नहीं होगा। अन्य राज्य भी इसी स्थिति में हो सकते हैं। केंद्र सरकार के पास राज्यों से कर्जों की कीमत वसूलने का कोई तर्क नहीं है।
उन्होंने हैरानी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘क्या राजस्व के नुक्सान के दो अलग -अलग आंकड़े हो सकते हैं। मुझे शक है कि संविधान इस तरह की भिन्नता की आज्ञा देता हैे। यहाँ राजस्व के नुक्सान की सिर्फ एक संख्या होनी चाहिए और आपने इसे दूसरे विकल्प में सही मान लिया है। किसी समस्या के दो अलग अलग हल होने का मतलब यह नहीं हो सकता कि दो अलग अलग समस्याएँ हैं
यह भी स्पष्ट नहीं है कि कोविड -19 का प्रकोप कब घटेगा। राज्यों को भी इस स्थिति के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए कि वह आगे भी इसी पहुँच का पालन करते रहेंगे। जनवरी 2021 के बाद की मियाद के दौरान मुआवजे का अनुमान कैसे लगाया जायेगा।
अगर मुआवजा अवधी के अंत तक अनुमान लगाए जाते हैं तो कुल राजस्व कमी 4.50,000 करोड़ को पार कर सकती है। इसलिए ब्याज के साथ, कर्जे की पुन: अदायगी के लिए 4-5 साल से अधिक के समय की जरूरत होगी न कि 2-3 साल की, जैसे कि माना जा रहा है।
उन्होंने कहा कि मीटिंग में बहुत से सदस्यों द्वारा यह कहा गया कि राज्यों द्वारा कर्ज 50 -150 बेसिक पुआइंटों से कहीं महँगा पड़ सकता है। ‘‘हमारी भविष्य की कर्ज और पुन: अदायगी की सामथ्र्य जीएसटीसी द्वारा लिए जाने वाले फैसलों के आधार पर बदल जायेगी, जहाँ अकेले केंद्र सरकार का ही निर्णायक वोट है। जीएसटी मुआवजे के सम्बन्ध में भविष्य के किसी भी तरह के विवादों का राज्यों पर नुकसानदेय प्रभाव पड़ेगा।’’
-NAV GILL