मकर सक्रांति को भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह

-अर्धकुंभ मेले में पहला शाही स्‍नान 15 जनवरी

सदियों से हिंदू मकर सक्रांति को अपने प्रमुख पर्व के तौर पर मनाते आ रहे हैं। इस साल मकर सक्रांति का पर्व हिंदूओं के लिए यादगार पलों में से एक होने जा रहा है। इसका प्रमुख कारण इस साल मकर सक्रांति वाले पावन दिन अर्ध कुंभ का शुभारंभ होने जा रहा है। कुल तीन शाही स्नान में से मकर सक्रांति वाले दिन पहला शाही स्नान संपन्न होगा। जबकि दूसरा शाही स्नान चार फरवरी, को मौनी अमावस्‍या को और आखिरी शाही स्‍नान 10 फरवरी 2019 को वसंत पंचमी के दिन किया जाएगा। हिंदू मान्यता अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त अमृत कलश से धरती पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं। जिनमें प्रयागराज प्रमुख है। कुंभ पर इन पावन नदियों में डुबकी लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

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मकर संक्रांति का असाधारण महत्व

ज्योतिषियों अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। प्रयागराज का कुंभ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है। प्रयागराज की इस पावन नगरी में भगवान श्री विष्णु खुद वास करते हैं। इतना ही नहीं वह यहां पर वह माधव रूप में बारह स्वरूप में विद्यमान हैं। पौराणिक मान्यता भी है कि इस दिन भगवान सूर्य देव अपने बेटे शनि से मिलने खुद उसके घर जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

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मकर संक्रांति पर त्यागी थी भीष्म पितामह ने देह

इच्छा मृत्यु का वरदान हासिल करने वाले महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। क्योंकि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जाकर मिली थी। भारत में मकर संक्रांति पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन तिल-गुड़ के सेवन का साथ नए जनेऊ को धारण करने की परंपरा भी जारी है।

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देश में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है पर्व

तमिलनाडु में मकर सक्रांति को पोंगल के रूप में मनाते हैं। जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहा जाता हैं। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता है। यह पर्व जनवरी माह के 13, 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है। इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं। दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि यानि नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है। इसीलिए मकर संक्राति वाले  दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व है। इस दिन र दिया गया दान भी सौ गुना बढ़कर दोबारा प्राप्त होता है।

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मकर संक्राति पर गंगा स्नान बेहद शुभ

मकर संक्रांति के दिन गंगास्नान व दान को शुभ माना गया है।  तीर्थराज प्रयाग व संगम  में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। आमतौर पर सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। परंतु कर्क और मकर इन दिनों राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से बेहद लाभकारी होता है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं, लेकिन मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। इस दिन से रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। इस दिन से गर्मी के मौसम की शुरुआत हो जाती है।

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प्रदीप शाही

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