-सोमवार व्रत कथा, विधि व पूजन
भारतीय संस्कृति बेहद प्राचीन है। इस सृष्टि के संचालक त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु और भगवान महेश (शिव) और त्रिदेवी माता सरस्वती, माता लक्ष्मी और माता पार्वती का पूजन कर सभी कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है। सप्ताह के सभी दिन किसी ने किसी देवी देवता को समर्पित हैं। यदि इन खास दिनों पर अपने आराध्य का पूजन किया जाए, तो हर मंगलकामना पूर्ण होती है। आईए, आज आपको सोमवार व्रत, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष के बारे विस्तार से जानकारी देंगे। यह व्रत किस देवता को समर्पित है। इस व्रत की कथा, पूजन करने की क्या विधि है।
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सोमवार व्रत कथा की कहानी
प्राचीन काल में एक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। जिसका व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था। व्यापारी संपन्न होने के बावजूद भी कोई संतान न होने के कारण बहुत दुखी था। उसे इस बात की चिंता थी उसके बाद उसके व्यापार का क्या होगा। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापारी ने सोमवार को भगवान शिव, माता पार्वती का व्रत और पूजन शुरु कर दिया। उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई। भगवान शिव को उन्होंने उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने की विनती की। भोले बाबा ने कहा कि इस संसार में सबको उसके कर्मानुसार फल की प्राप्ति होती है। माता पार्वती के बार-बार अनुरोध करने पर भोले नाथ ने व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी को स्वप्न में दर्शन देकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हुए उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात बताई।
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भगवान से मिल वरदान से व्यापारी खुश भी हुआ, साथ ही बेटे कम आयु से दुखी भी हुआ। वरदान मिलने के बावजूद व्यापारी पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ समय बाद उसके घर एक बालक ने जन्म लिया। सभी ने खुशियां मनाई, लेकिन व्यापारी पुत्र की कम आयु के कारण चिंतित था। जब पुत्र 12 वर्ष का हो गया, तो व्यापारी ने उसे बच्चे के मामा संग पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया। रास्ते में मामा-भांजा विश्राम करने एक स्थान पर रुके। उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आई। वर का पिता अपने बेटे की एक आंख होने के कारण चिंतित था। उसे डर था कि कहीं इस बात का राजा को पता न चल जाए। वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखकर सोचा क्यों ने इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।
वर के पिता ने लड़के के मामा से यह बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। व्यापारी के बेटे की राजकुमारी से शादी हो गई। शादी के बाद जब लड़का राजकुमारी संग लौट रहा था। तो उसने सारा सच राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया। जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ सच पढ़ा तो उसने उस एक आंक वाले लड़के संग जाने से इंकार कर दिया। राजा ने सारी बातें जान कर राजकुमारी को महल में ही रख लिया। उधर व्यापारी का लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया। और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई। यज्ञ की समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया। रात को भगवान शिव के वरदान चलते व्यापारी के बेटे की मौत हो गई। सुबह मामा अपने मृत भांजे को देखकर रोने लगा। लड़के की मौत पर मामा के रोने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। माता पार्वती ने भोले बाबा से कहा कि मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इसके कष्ट को जरुर दूर करें। भगवान शिव ने पार्वती को बताया कि यह उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। अब इसकी आयु पूरी हो गई है। मां पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को फिर जीवित कर दिया।
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शिक्षा समाप्त कर लड़का अपने मामा संग अपने नगर की तरफ चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में यज्ञ का आयोजन हो रहा। वह भी उस यज्ञ में शामिल हुए। राजा ने उस लड़के और उसके मामा को पहचान लिया। यज्ञ के समाप्त होने के बाद उन्हें महल में ले जाकर बहुत-सा-धन, वस्त्र देकर राजकुमारी संग विदा कर दिया। वहीं दूसरी तरफ व्यापारी और उसकी पत्नी अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। जैसे ही उन्हें बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार मिला। तो माता-पिता बेहद प्रसन्न हुए। बेटे के विवाह का समाचार सुनकर बेहद खुश हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा वत्स मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं । उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
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सोमवार व्रत विधि
सोमवार व्रत भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिन्दू धर्म में सोमवार के व्रत का विधान है। माना जाता है कि सोमवार का व्रत पूरे विधि- विधान के साथ करने से मन की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष के रुप में किए जाते हैं। तीनो तरह के व्रतों की पूजा विधि एक ही है। परंतु व्रत कथा अलग-अलग है। सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। ॐ नमः शिवाय’ से भगवान शिव तथा ‘ॐ शिवायै’ नमः से माता पार्वती जी का पूजन करें। पूजन के बाद व्रत कथा सुनें। इसके बाद ही भोजन करें।
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प्रदीप शाही