भारत में यहां पर होती दशानन रावण की पूजा, नहीं किया जाता है दहन

-कई लोग रावण को मानते हैं अपना पूर्वज
माता सीता का हरण करने पर भगवान श्री राम की ओर से महाबली, प्रकांड पंडित, वेदों के ज्ञाता, महादेव के अनन्य भक्त लंकापति रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत दर्ज की। दशानन लंकापति रावण सहित मेघनाद, कुंभकर्ण की उक्त बुराई के चलते ही देश भर में दशहरे के अवसर उनके पुतलों को अग्नि भेंट किया जाता है। परंतु देश में कई स्थान एेसे बी जहां पर दशानन रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। बल्कि वहां पर उनकी पूजा की जाती है। कई लोग तो रावण को अपना पूर्वज तक मानते हैं। आईए आज आपको उन स्थानों की जानकारी देते हैं, जहां पर दशानन रावण के मंदिर भी बने हुए है। इतना ही नहीं वहां पर रावण की पूजा अर्चना भी की जाती है।

इसे भी पढें….महाभारत कालीन इस मंदिर में समुद्र की लहरें करती हैं…शिवलिंग का जलाभिषेक


जोधपुर में स्थित है रावण का मंदिर
राजस्थान के जोधपुर शहर में लंकापति रावण का मंदिर बना हुआ इस इलाके में दवे, गोधा और श्रीमाली समुदाय से संबंधित लोग रावण की पूजाअर्चना करते हैं। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि जोधपुर रावण की ससुराल थी। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रावण के वध के बाद रावण के वंशज लंका को तज कर यहां पर आकर बस गए थे। ये लोग खुद को रावण का वंशज कहने में अपना गर्व समझते हैं।

इसे भी देखें….त्रिदेवों में कौन है सर्वश्रेष्ठ, मह्रर्षि भृगु ने कैसे ली परीक्षा

विसरख गांव है रावण का ननिहाल
यूपी के गौतमबुद्ध नगर जिले के बिसरख गांव को लंकापति रावण का ननिहाल माना जाता है। यहां पर स्थानीय लोग रावण के मंदिर का निर्माण भी कर रहे हैं। बिसरख गांव गाजियाबाद शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सरकारी गजट अनुसार इस गांव में रावण के पैतृक गांव होने के कई साक्ष्य मौजूद मिले हैं। इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्रवा के नाम पर पड़ा। परंतु बाद में इसे बिसरख के नाम से अधिक पहचान मिली।

इसे भी देखें….जानिए एक ही पत्थर से निर्मित विश्व के सबसे बड़े शिवलिंग के बारे में….

रावण मंडोर के थे दामाद
मध्यप्रदेश के मंडोर गांव को रावण का ससुराल माना जाता है। लंकपति रावण को इस गांव का दामाद माने जाने के कारण यहां पर रावण की पूजा की जाती है। मंंडोर के खानपुरा क्षेत्र के रुंडी नामक स्थान पर तो रावण की एक विशालकाय मूर्ति भी स्थापित है। माना जाता है कि रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी मंडोर की रहनी वाली थी। मंदोदरी के कारण ही दशपुर का नाम मंडोर माना जाता है। इस इलाके में आज भी सदियों पुरानी गुफाएं हैं। इन गुफाओं के बारे कहा जाता है कि रावण के बराती इन गुफाओँ के माध्यम से लंका से यहा तक आए थे। इन गुफाओं का रास्ता पाताल से होकर गुजरता है।

यहां होती है रावण की पूजा
उज्जैन जिले के चिखली गांव में कभी भी रावण के पूतलों का दहन नहीं किया जाता है। यहां के लोगों की मान्यता है कि यदि रावण की पूजा न की गई तो पूरा गांव ही जल कर भस्म हो जाएगा। दशहरे पर इस गांव में लगी विशाल मूर्ति की पूजा की जाती है।

इसे भी देखे…स्त्री रुप में शनि देव कहां श्री हनुमान के चरणों में हैं विराजमान ….

कर्नाटक में फसल महोत्सव पर होती है रावण की पूजा
कर्नाटक के कोलार जिले में मनाए जाने वाले फसल महोत्सव पर रावण की पूजा करते हैं। यहां पर लोग भगवान शिव के अनन्य भक्त होने के कारण रावण को पूजते हैं। इस क्षेत्र में लंकेश्वर महोत्सव में भगवान शिव के साथ रावण की प्रतिमा को शोभा यात्रा के दौरान शामिल किया जाता है। वहीं मंडया जिले के मालवल्ली तालुका में रावण को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है।

इसे भी देखें….अद्धभुत; कई वर्षों से बढ़ रहा इस शिवलिंग का आकार

शिवलिंग के पास ही स्थापित ही रावण की प्रतिमा
कहा जाता है कि लंकापति रावण ने आंध्र प्रदेश के काकिनाड में एक शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी शिवलिंग के निकट रावण की एक प्रतिमा स्थापित की हुई है। यहां पर मछुआरा समुदाय के लोग देवों के देव महादेव शिव और रावण दोनों की एक समान रुप से पूजा करते है। श्रीलंका में कहा जाता है कि राजा वलगम्बा ने इला घाटी में रावण के नाम पर गुफा मंदिर का निर्माण करवाया था।

रावण व उनके बेटे मेघनाथ को यहां मिला है देवता का दर्जा
महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में कोरकू और गोंड आदिवासी समुदाय के लोग रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मान उनकी पूजा करते हैं। दक्षिण भारत के कई अन्य शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा की जाती है।

इसे भी देखें….आखिर क्यों भगवान श्री राम को धरती पर लेना पड़ा अवतार…

दशहरे पर रावण की उतारी जाती है आरती
इटावा जिले के जसवंतनगर में दशहरा मनाने का अंदाज देश भर से बिल्कुल अलग है। दशहरे वाले दिन रावण की पूरे शहर में आरती उतार कर पूजा की जाती है। रावण को जलाने के स्थान उसके पुतले को टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता हैं। इन टुकड़ों को इस इलाके के लोग अपने घर ले जाते हैं। रावण की मौत के तेरहवें दिन रावण की तेरहवीं करने की यहां परंपरा भी प्रचलित है। यहां के रामलीला मैदान में नवरात्रि की सप्तमी पर ही 15 फीट रावण के पुतले को स्थापित कर दिया जाता है। यहां पर रावण की आरती उनके ज्ञान रुपी स्वरुप की जाती है। जबकि राक्षसी योनि के कारण उनके पुतले के टुकड़े किए जाते हैं।

इसे भी देखें…जानिए क्यों नागा साधू पूरे शरीर पर लगाते हैं भस्म?

रावण के पुतले को जलाना समझते हैं महापाप
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ कस्बा है। यहां के स्थानीय लोग रावण के पुतले को जलाना महापाप समझते हैं। लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र में रावण का यदि पुतला जलाया गया तो उसकी मौत निश्चित हो जाएगी। पुराणों में मिले उल्लेख अनुसार रावण ने कई वर्ष बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। एेसे में शिव के परमभक्त के पुतले को जलाना उचित नहीं है। ऐसा करने वाला दंड का भागीदार होता है। इसी वजह से यहां रावणदहन नहीं किया जाता है।

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY