भारत में कहां पर हैं भगवान श्री विष्णु, माता लक्ष्मी के वंशज

-श्री विष्णु हरि के श्राप से उत्पन्न हुआ हैहय वंश

प्रदीप शाही

भारत की धरती विश्व में एकमात्र ऐसी पावन धरती है। जहां पर देवी देवताओं ने मानव रुप में व अन्य रुपों में जन्म लेकर इस धरती पर रहने वालों के दुख दर्द को दूर किया। इस धरती पर जन्म लेने वाले देवी देवताओं के वंशज आज भी विद्यमान है। यह समुदाय अपने आप को देवी देवताओं का वंश होने पर गर्व महसूस करता है। भारत में आज भी भगवान श्री विष्णु हरि व माता लक्ष्मी के वंशज हैहय आज भी मौजूद है। आखिर किस तरह से इस वंश की उत्पत्ति हुई। इस के पीछे एक बेहद रोचक कथा है।

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भगवान विष्णु जी के श्राप से माता लक्ष्मी बनी मादा अश्व

पौराणिक कथा अनुसार भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी जी वैकुण्ठ धाम में आपस में विचार चर्चा कर रहे थे। तभी वहां पर रेवंत अपने श्रवा नामक अश्व (घोड़े) संग पहुंचे। श्रवा नामक इस अश्व की सुंदरता की तुलना इस ब्रहमांड में किसी अन्य अश्व से नहीं की जा सकती थी| माता लक्ष्मी जी ने जैसे श्रवा नामक अश्व को देखा तो वह उसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गयी| वह अपलक उसे निहारने लगी। भगवान श्री विष्णु जी ने देखा कि लक्ष्मी जी अश्व की सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो गयी है। उन्होंने लक्ष्मी जी का ध्यान अश्व से हटाने की काफी कोशिश की, लेकिन लक्ष्मी जी अश्व को ही देखने में तल्लीन रही। जब भगवान श्री विष्णु के सभी प्रयास असफल हो गए। तो उन्हें गुस्सा आ गया। क्रोधित श्री विष्णु हरि ने लक्ष्मी जी को श्राप दे दिया कि इस अश्व की सुंदरता में खोने के कारण तुमने मेरी अवहेलना की। जाओ तुम मादा अश्व बन जाओ। जब माता लक्ष्मी का अश्व की सुंदरता से मोह भंग हुआ तो उन्हें भगवान श्री विष्णु जी के दिए श्राप की जानकारी मिली। तब माता लक्ष्मी को अपनी गलती का अहसास हुआ। वह विष्णु जी से माफी मांग कर उन्हें दिए गए श्राप को वापिस लेने की विनती करने लगी। माता लक्ष्मी जी की प्रार्थना सुन कर विष्णु जी का क्रोध शांत हो गया। पर उन्होंने कहा कि श्राप वापिस नहीं लिया जा सकता है। परंतु इससे मुक्ति जरुर मिल सकती है। जब तुम अश्व रुप में एक बच्चे को जन्म दोगी। तो इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। और दोबारा मेरे पास आ जाओगी।

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भगवान श्री विष्णु के श्राप से मादा अश्व बनी माता लक्ष्मी जी यमुना और तमसा नदी के संगम पर पहुंची। वहां पर बैठ कर भगवान शिव की पूजा अर्चना कर इस श्राप से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने प्रकट हो कर कहा कि वह श्री विष्णु को समझा कर अश्व का रुप धारण करने के लिए कहेंगे। ताकि आप एक पुत्र को जन्म देकर वापिस भगवान श्री विष्णु के पास बैकुंठ धाम पहुंच सके।

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लंबा समय बीत जाने के बाद भी श्री विष्णु हरि, माता लक्ष्मी के पास नहीं पहुंचे। तो माता लक्ष्मी ने फिर भगवान शिव का स्मरण किया। तब भगवान शिव ने कहा कि विष्णु जी अश्व रुप में अवश्य प्रकट होंगे। तब भगवान शिव ने अपने एक गण के माध्यम से श्री विष्णु हरि के पास अपना संदेश पहुंचाया। विष्णु जी ने भगवान शिव के प्रस्ताव को स्वीकार कर अश्व बन कर माता लक्ष्मी के पास पहुंच गए। कुछ समय बाद मादा अश्व रुप में माता लक्ष्मी गर्भवती हुई। और एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इस तरह से वह श्राप से मुक्त हो बैकुंठ धाम पहुंची।

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माता लक्ष्मी के पुत्र का किया तुर्वसु ने पालन पोषण

मादा अश्व रुप में माता लक्ष्मी जी ने जिस बालक को जन्म दिया था। उस बालक के पालन पोषण की जिम्मेवारी ययाति के पुत्र  तुर्वसु ने ले ली। क्योंकि संतानहीन तुर्वसु पुत्र प्राप्ति के लिए ही यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। तुर्वसु ने भगवान श्री विष्णु व माता लक्ष्मी के अश्व रुपी संतान का नाम हैहय रखा। हैहय के वंशज ही हैहयवंशी कहलाए गए। मौजूदा समय में हैहयवंशी में कसेरा, ताम्रकार, ठठेरा जाति के लोग हैं। यह वंश अपने आपको भगवान श्री विष्णु हरि व माता लक्ष्मी का वशंज कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं।

 

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