भारत के लिए अंग्रेज़ों ने किए थे यह काम….

आज भारत विश्व में अपनी विशेष पहचान व स्थान रखता है। हमारी संस्कृति, सभ्यता, भाषा व हमारी भूमि सदियों से विदेशियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है। इसीलिए कुछ विदेशी भारत दर्शन के लिए आए तो कुछ विदेशी इसके खज़ाने को लूटने के लिए भारत आए। लूटने वाले लूटकर चले गए लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे कुछ व्यापारी ऐसे भी थे जिन्होंने भारत में व्यापार व विकास की संभावनाएं देखीं। और धीरे-धीरे भारत को ब्रिटिश सरकार का गुलाम बना दिया। अंग्रेज़ों को भारत से कोई हमदर्दी तो थी नहीं बल्कि उनका उद्देश्य था भारतीय साधनों का प्रयोग अपने देश की तरक्की के लिए करना। लेकिन फिर भी जाने अनजाने में अंग्रेज़ों ने अपने फायदे के लिए भारत का विकास किया जिसका देश की तरक्की में विशेष महत्व है।

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रेलगाड़ी की शुरूआत
1843 में लार्ड डल्हौज़ी ने भारत में रेल चलाने के लिए बंबई, कोलकाता व मद्रास को रेल संपर्क से जोड़ने का प्रस्ताव दिया। हालांकि इसका मकसद भारत की तरक्की नहीं था बल्कि अपने व्यापार को भारत के अलग-अलग कोनों तक लेजाना था। साल 1849 में ग्रेट इंडियन पेंनिनसुलर कंपनी कानून पास हुआ और भारत में रेलवे की स्थापना का काम शुरू हुआ। भारत में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच चली। इस ट्रेन में 14 कोच लगे थे जिन्हें लोकोमोटिव सुल्तान, सिंध और साहिब नामक इंजन खींच रहे थे। देश की आज़ादी तक अंग्रेज़ों ने भारत में 53,596 किलोमीटर का रेल नेटवर्क तैयार कर दिया था।

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इंडियन आर्मी की स्थापना
भारत में इंडियन आर्मी की स्थापना का श्रेय भी ब्रिटिश सरकार को जाता है। चाहे इंडियन आर्मी की स्थापना भारत के आज़ाद होने के बाद हुई लेकिन इसकी नींव अंग्रेज़ों ने 1776 में रख दी थी। कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में ही इंडियन आर्मी का गठन किया गया था। इस आर्मी में सबसे बड़ा बदलाव प्रथम विश्व युद्ध के बाद आया। इस युद्ध के दौरान सैनिकों की कमी के चलते भारतीयों को सेना का हिस्सा बनाया गया। उन्होंने डोगरा, गोरखा, सिक्ख, राजपूत व अन्य कम्युनिटीस को इंडियन आर्मी का हिस्सा बनाया। आज़ादी के बाद भी अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए यह रेजिमेंट भारतीय सेना में ऐसे के ऐसे ही बने रहे।

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शिक्षण संस्थानों की स्थापना
भारत में शिक्षा के आधुनिकीकरण का श्रेय लार्ड मैकाले को जाता है। इसके पीछे अंग्रेज़ों का मक्सद भारतीयों को शिक्षित करना नहीं बल्कि एक ऐसी जमात को बनाना था जो केवल अंग्रेज़ी बोल व समझ सके। अंग्रेज़ ऐसा करके अपने लिए सस्ते क्लर्क चाहते थे क्योंकि ब्रिटेन से लोगों को भारत लाना ब्रिटिश सरकार को महंगा पड़ता था। लेकिन फिर भी मैकाले की इस प्रणाली के चलते देश में कालेजों व यूनिवर्सिटीज़ की स्थापना की गई। अंग्रेज़ इसके द्वारा विदेशी ज्ञान व सम्यता को बढ़ावा देना चाहते थे। हालांकि कई लोग मैकाले की इस पहल को भारत की सफल पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को खत्म करने का कारण भी मानते हैं।

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कानून का विस्तार
1857 के बाद ब्रिटेन ने भारत में सरकार को मज़बूत किया और अदालती प्रणाली के द्वारा अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया।1860 से 1880 में जन्म-मृत्यु, विवाह व संपत्ति संबंधी सर्टिफिकेट जरूरी कर दिए गए। आज़ाद भारत में मौजूद कानून व्यवस्था में बहुत कुछ अंग्रेज़ों की ही देन है।


डाक सुविधा
भारत में डाक सुविधा की शुरूआत भी ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही की थी। 1744 में पहली बार डाक सेवा का आरंभ हुआ। इसे गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने शुरू किया था। बंगाल, मद्रास और मुंबई में डाकघर खोले गए और जनरल पोस्ट मास्टर की नियुक्ति की गई। डाक सेवा में सुधार के लिए 1837 में फस्र्ट इंडियन पोस्ट एक्ट बनाया गया। इसमें पोस्ट मास्टर की वर्दी तय करने के साथ-साथ पोस्ट आफिस को एक खास पहचान नंबर दिया गया था।

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उद्योगीकरण की शुरूआत
भारत में उद्योग लगाने का श्रेय भी अंग्रेज़ों को जाता है। 1853 से 1854 में भारत में रेल और तार प्रणाली शुरू हो चुकी थी। रेल सेवा शुरू करने का मकसद भी कच्चे माल का निर्यात और तैयार माल का आयात करना था। आरंभ में भारतीय पूंजी से कुछ सूती मिलें और कोयले की खद्दानें स्थापित की गईं। बाद में कागज़ और चमड़े के कारखाने लगाए गए। 1908 में लोहे व इस्पात के कारखानों की शुरूआत हुई। 1932 में शक्कर के कारखानों की स्थापना हुई। कुल मिलाकर भारत में उद्योग लगाने का प्रथम प्रयास अंग्रेज़ों द्वारा ही किया गया।
चाहे भारत के विकास के पीछे अंग्रेज़ों का अपना निजी स्वार्थ था फिर भी भारत के विकास में अंग्रेज़ों द्वारा किए गए प्रयास विशेष महत्व रखते हैं।
धर्मेन्द्र संधू

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