भारत का एक ऐसा गांव जिसे कहते हैं भगवान का अपना बगीचा

-एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का मिला है दर्जा
यह पूर्णतया सच है कि सफाई में भगवान का वास होता है। इसी कथन को पूर्णतया सच करने वाले भारत के इकलौते गांव को आज भगवान का अपना बगीचा कहा जाता है। इतना ही इस गांव के लिए सबसे गर्व की बात यह है कि इस गांव को एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा भी मिला है। आईए आज आपको इस गांव के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। आखिर ऐसा गांव भारत के किस राज्य में स्थित हैं। कैसे गांव के सभी गांववासियों ने अपनी सोच बदल कर देश ही नहीं एशिया को भी प्रभावित किया है। यह गांव केवल सफाई ही नहीं शत-प्रतिशत साक्षरता दर, बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट व शानदार खाने-पीने के लिए भी प्रसिद्ध है।

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कहां पर है भगवान का अपना बगीचा?
भारत के अधिकतर गांवों व शहरों में सफाई की हालत बेहद दयनीय है। वहीं दूसरी तरफ सबसे खास बात यह है कि एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गांव भारत के मेघालय राज्य में स्थित हैं। भगवान का अपना बगीचा के नाम विख्यात मावल्यान्नॉंग गांव केवल सफाई के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षा में भी अवल्ल है। इस गांव की साक्षरता दर शत-प्रतिशत है। इस गांव के सभी पढ़े-लिखे लोग आमतौर पर केवल अंग्रेजी में ही एक दूसरे से बात करते हैं। खासी हिल्स जिले से संबंधित यह गांव शिलॉंन्ग में स्थित है।

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सभी गांववासी रखते हैं सफाई का समूचा ध्यान
वर्ष 2014 की जनगणना अनुसार यहां पर 95 परिवार रहते हैं। गांव वासियों की आजीविका का मुख्य साधन सुपारी की खेती है। यहां के लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं। और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती में खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस गांव को वर्ष 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव का मान प्रदान किया गया। गांव की सारी सफाई गांववासी खुद करते है। प्रशासन से गांव की ओर से सफाई में कोई मदद नहीं ली जाती है। बच्चा, महिला या फिर बुजुर्ग किसी को भी कहीं गंदगी दिखाई देती है, तो वह उसे वहां से हटाने को प्राथमिकता देता है।

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गांव के आस-पास हैं कई अमेजिंग टूरिस्ट स्पॉट
इस गांव के आसपास कई अमेजिंग टूरिस्ट स्पॉट जैसे वाटरफॉल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने ब्रिज) और बैलेंसिंग रॉक्स दर्शनीय हैं। वहीं 80 फ़ीट उंची मचान पर बैठ कर शिलांग की प्राकृतिक खूबसूरती को निहारना पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। पेड़ो की जड़ों से बनाए गए प्राकृतिक पूल और इसपर बने ब्रिज केवल मेघालय में ही दिखाई देते हैं।

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सैलानियों के लिए खानेपीने का विशेष प्रंबध
इस गांव में कई जगह पर्यटकों के खाने-पीने का ठेठ ग्रामीण परिवेश में किया हुआ है। जो सैलानियों को बेहद पसंद आता है। टी-स्टाल पर चाय की चुस्कियों का आनंद लिया जा सकता है। गांव में एक रेस्टोरेंट भी हैं। जहां आप साफ व स्वादिष्ट भोजन किया जा सकता है।

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पर्यावरण को संवारने में गांव का अनूठा योगदान

इस गांव का पर्यावरण को संवारने में अहम योगदान है। गांव में केवल सफाई ही नहीं यहां पर हर जगह हरियाली मन को आनंदित कर देती है। गांव के हर हिस्से में फूल, फल व अन्य महकदार पौधे देखने वाले के मन में प्रकृति प्रति एक प्रेम को उत्पन्न करती है।

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कैसे पहुंचे मावल्यान्नॉंग गांव
मावल्यान्नॉंग गांव शिलांग से 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से 92 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। दोनों ही जगह से सड़क के द्वारा यहां पुहंचा जा सकता है। शिलांग तक देश के किसी भी हिस्से से हवाईजहाज के द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। अधिकतर पूर्वोत्तर राज्यों में प्रीपेड मोबाइल बंद होने के कारण यहां सैलानी अपने साथ पोस्ट पेड़ मोबाइल ले कर जाएं, तो बेहतर होगा।

प्रदीप शाही

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