-भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से कौन से 23 अवतार हुए अवतरित
धरती पर जब पाप बढ़ जाते हैं, तो भगवान अवतरित हो कर पापियों का नाश करते हैं। सदियों से धरती पर उत्पन्न होने वाले संकटों का समाधान के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने 23 बार अवतरण लिया। अब उनका आखिरी 24वां अवतार कल्कि धरती का उद्धार करने अवतरित होगा। क्या आप भगवान श्री विष्णु हरि के सभी अवतारों के बारे जानते हैं। यदि नहीं तो आप को भगवान श्री विष्णु के अवतिरत हो चुके सभी 23 अवतारों के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।
सर्वप्रथम श्री सनकादि मुनि
धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के सृजन में पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। सनकादि मुनि की स्तुति का उल्लेख सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। तो हनुमान चालिसा में भी मिलता है।
दूसरे अवतार वराह अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह रुप में दूसरा अवतार लिया था। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था तब भगवान ब्रह्मा जी की नाक से भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतरण लिया। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगाया। और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।
देवर्षि नारद के रुप में लिया तीसरा अवतार
देवर्षि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद ने भ्रमण करते हुए धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में तो देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है। श्रीमद्भ भागवतगीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में तो भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। देवर्षि नारद भगवान श्री विष्णु के तीसरे अवतार थे।
नर-नारायण का चौथा अवतार
सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों नर और नारायण के रुप में एक साथ अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था।
कपिल मुनि थे पांचवे अवतार
भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। कपिल मुनि के पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं।
छठे दत्तात्रेय अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने-अपने पतिव्रत पर गर्व हो गया। भगवान ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे। तीनों देवियों के पास अलग-अलग जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पतिव्रत की परीक्षा लें। तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधुओं का वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भीक्षा मांगी। मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर साधुओं के अपमान से डर कर उन्होंने अपने पति का स्मरण किया। और बोला कि यदि मेरा पतिव्रत धर्म सत्य है। तो ये तीनों साधु बच्चे बन जाएं। ऐसा बोलते ही त्रिदेव बच्चे बन कर रोने लगे। अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया। तीनों देवों को वापिस न आने पर सभी देवियां परेशान हो गई। तब नारद मुनि ने कर सारी बात बताई। आखिर तीनों देवियां ने अनुसूइया के पास आ कर क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेवों को असल रुप प्रदान कर दिया। इस घटना के बाद देवों ने प्रसन्न हो कर उनके घर पुत्र रुप में जन्म लिया। तब ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, शंकर जी के अंश से दुर्वासा और विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
सातवें अवतार यज्ञ
भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वयंम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वयंम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। इन्हीं आकूति के यहां भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए। भगवान यज्ञ और उनकी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र पैदा हुए। यह 12 पुत्र ही याम बारह देवता कहलाए।
भगवान ऋषभदेव थे आठवें अवतार
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवां अवतार लिया था। धर्म ग्रंथों अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी। इस कारण धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र कामना से यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हो कर उन्हें वरदान दिया कि वह उनके घर पुत्र के रुप में जन्म लेंगे। कुछ समय बाद भगवान विष्णु महाराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्मे। पुत्र का नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) देव रखा।
नौंवा अवतार आदिराज पृथु
भगवान विष्णु के आठवें अवतार का नाम आदिराज पृथु है। धर्म ग्रंथों अनुसार स्वयंम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनिथा संग हुआ। उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा। तब महर्षियों ने मंत्रों से राजा वेन के घर पृथु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु, श्रीहरि के अंश के रुप में अवतरित हुए है।
मत्स्यावतार 10वां अवतार
पुराणों अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार के रुप में अवतरण लिया। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापिस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली का आकार बढ़ता गया। राजा ने उसे अपने सरोवर में रखवा दिया। वहां भी मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले कि ये मेरा मत्स्यावतार है। राजा से बोले आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना। जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। इस दौरान मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया। जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है।
11वां अवतार कूर्म अवतार
धर्म ग्रंथों अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इंद्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। मंदराचल पर्वत को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया। मंदराचल के नीचे कोई आधार न होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल का आधार बने। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन पूर्ण हुआ।
भगवान धन्वन्तरि हैं 12वें अवतार
देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। तो उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला, जिसे भगवान शिव ने पिया। इसके बाद समुद्र मंथन से घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले। सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यहीं धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है।
मोहिनी अवतार थी 13वीं अवतार
समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हो गया। देवता औऱ दैत्य दोनों अमृत पाने की हौड़ में लग गए। इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। भगवान के मोहिनी रूप ने सबको मोहित कर दिया किया। मोहिनी अवतार ने कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए। मैं बारी-बारी से सभी को अमृत का पान करा दूंगी। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए। भगवान विष्णु ने नृत्य के दौरान केवल देवताओं को अमृत पान करवाया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया।
भगवान नृसिंह के रुप में किया राजा हिरण्यकश्यप का वध
भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार के रुप में दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे न मनुष्य, न देवता, न पक्षी, न पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था। उसको दंड दिया जाता था। उसका पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। बेटे की भक्ति से अप्रसन्न हो कर प्रह्लाद को मृत्यु दंड दे दिया। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह के रुप में खंबे से प्रकट हुए। उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। नृसिंह के रुप में भगवान विष्णु का यह 14वां अवतार था।
वामन अवतार के रुप में किया दैत्यराज बलि का वध
सतयुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से पैदा होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में पहुंच गए। राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए। उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया, लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग दोबारा लौटाया। वामन अवतार भगवान विष्णु का 15वां अवतार था।
हयग्रीव अवतार ने किया मधु कैटभ का वध
एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दुखी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंच मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा जी को लाकर दिए। यह अवतार भगवान विष्णु का 16वां रुप था।
श्रीहरि अवतार में किया मगरमच्छ का वध
प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत की तराई में एक शक्तिशाली गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ रहता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान करने गया। वहां एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष एक हजार साल तक चलता रहा। अंत में गजेंद्र शिथिल पड़ने लगा तो उसने भगवान श्रीहरि का ध्यान किया। गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए। उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध किया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया। यह रुप भगवान श्री विष्णु का 17वां रुप था।
परशुराम ने विष्णु जी के 18वें अवतार
परशुराम जी भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे। इस रुप में भगवान परशुराम जी ने अधर्म करने वालों का नाश किया। उन्होंनें धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर किया। भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। यह भगवान श्री विष्णु के 18वें अवतार है। इस अवतार को अमर कहा गया है। जो आज भी इस धरती पर तपस्या में लीन हैं।
महर्षि वेदव्यास थे भगवान विष्णु का अंश
महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का ही अंश माना गया है। भगवान व्यास नारायण के कलावतार थे। वेदव्यास महाज्ञानी महर्षि पराशर के पुत्र रूप में प्रकट हुए थे। उनका जन्म कैवर्तराज की पोष्यपुत्री सत्यवती के गर्भ से यमुना के द्वीप पर हुआ था। उनके शरीर का रंग काला था। इसलिए उनका एक नाम कृष्णद्वैपायन भी था। इन्होंने ही मनुष्यों की आयु और शक्ति को देखते हुए वेदों के विभाग किए। इसलिए इन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है। इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना भी की। महर्षि वेदव्यास 19वें अवतार थे।
हंस अवतार के रुप में हुए अवतरित
एक बार भगवान ब्रह्मा अपनी सभा में बैठे थे। तभी वहां उनके मानस पुत्र सनकादि पहुंचे। और भगवान ब्रह्मा से मनुष्यों के मोक्ष के संबंध में चर्चा करने लगे। तभी वहां भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की। इसके बाद महाहंसरूपधारी श्रीभगवान अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए। हंस अवतार 20वें अवतार थे।
श्रीराम थे 21वें अवतार
भगवान श्री विष्णु ने भगवान श्री राम के रुप में 21वां अवतार लिया। त्रेतायुग में राक्षसराज रावण के आतंक को समाप्त करने ने के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान श्री राम ने अनेकों राक्षसों का वध कर मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया। पिता के आदेशानुसार कहने पर वनवास गए। वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।
22वें परमावतार थे श्रीकृष्ण
द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रुप में 22 वां अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बन दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस रुप में प्रेम की खुबसूरत व्याख्या की।
बुद्ध के रुप में 23वां अवतार
बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के 23वें अवतार थे। भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ। यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का है। एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। भगवान बुद्ध के रुप में भगवान श्री विष्णु दैत्यों के पास पहुंचे। उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया।
कल्कि अवतार का अवतरण होना बाकि
कलयुग में भगवान विष्णु अपने आखिरी 24वें अवतार कल्कि रूप में अवतरित होंगे। कल्कि का अवतरण कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराण अनुसार कल्कि का अवतरण उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर होगा। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की दोबारा स्थापना करेंगे।
प्रदीप शाही