-सरयू नदी से जल समाधि लेकर किया था बैकुंठ धाम को प्रस्थान
इस धरती को मृत्युलोक भी कहा जाता है। क्योंकि इस धरती पर जो भी जन्म लेता है, उसकी मृत्य भी अवश्य होती है। चाहे वह नर हो या फिर नारायण। क्या आप जानते है कि भगवान श्री विष्णू जी के छठे अवतार भगवान श्री राम और शेषनाग के अवतार श्री लक्ष्मण जी ने भी मृत्यु का वरण किया था। सबसे खास बात यह है कि भगवान श्री राम से पहले लक्ष्मण जी ने मृत्युलोक से प्रस्थान किया था।
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भगवान श्री राम ने लिया छठे अवतार के रुप में जन्म
भगवान श्रीराम, भगवान श्री विष्णू हरि के छठे अवतार के तौर पर धरती को अन्याय से मुक्त करने के लिए राजा दशरथ और माता कौशल्या के घर अवतरित हुए थे। भगवान श्री राम ने अनेकों राक्षसों का वध किया। पिता के कहने पर वनवास भी गए। वनवास के दौरान रावण की ओर से उनकी पत्नी सीता का हरण किया। माता सीता की खोज में भगवान श्री राम सेना सहित लंका पहुंचे। भगवान श्रीराम और रावण के मध्य हुए युद्ध में अहंकारी रावण मारा गया। मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया। भगवान श्री राम जन्म लेने के बाद इस प्रकृति के इस नियम से अवगत भी थे। जब पृथ्वी पर उनका समय पूरा हो गया, तो उन्होंने खुद ही मृत्युलोक से अपने प्रस्थान की व्यवस्था कर ली। एक दिन यमराज का दूत एक वृद्ध संत का भेष धर अयोध्या में श्रीराम के दरबार में पहुंचा। वृद्ध संत ने श्रीराम से अकेले में चर्चा करने का अनुरोध किया। राम जी जानते थे कि यह संत यम का दूत है। जो उनसे यह कहने आया है कि उनका इस धरती पर समय पूरा हो चुका है। श्री राम उस संत को एक कमरे में ले गए। साथ ही अपने छोटे भाई लक्ष्मण को आज्ञा दी कि कोई भी उनकी चर्चा में विघ्न डालने की कोशिश करे। जो इस हुक्म की अवहेलना करेगा, उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। अपने भाई श्री राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण खुद ही कक्ष के बाहर पहरेदारी करने लगे। इतने में दुर्वासा ऋषि आए। और श्रीराम से मिलने की बात कही। लक्ष्मण के मना करने पर ऋषि दुर्वासा ने चेतावनी दी की यदि उन्हें राम से न मिलने दिया। वह अयोध्या को श्राप दे देंगे। दुर्वासा ऋषि की चेतावनी सुनकर लक्ष्मण धर्मसंकट में फंस गए। भाई राम को दुर्वासा ऋषि के क्रोध से बचाने के लिए लक्ष्मण ने खुद ही मृत्यदंड का आलिंगन करना उचित समझते हुए कक्ष में प्रवेश कर लिया।
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भगवान श्री राम से पहले लक्ष्मण ने किया मृत्यलोक से प्रस्थान
लक्ष्मण द्वारा संत के साथ चर्चा में बाधा आई देख श्रीराम धर्मसंकट में पड़ गए। उन्होंने अपने भाई को मृत्युदंड देने के स्थान राज्य निकाला दे दिया। लक्ष्मण के लिए देश निकाले का दंड मृत्युदंड से भी अधिक कठोर था। लक्ष्मण अपने भाई के बिना एक क्षण भी जीना नहीं चाहते थे। उन्होंने फैसला लिया कि वे सरयू में जल समाधि लेकर अपने प्राण त्याग देंगे। इस तरह लक्ष्मण ने अपने जीवन का अंत कर अनंत शेषनाग अवतार दोबारा हासिल कर विष्णु लोक चले गए।
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लक्ष्मण के जाने के बाद श्री राम ने भी किया मृत्युलोक से प्रस्थान
जिस तरह लक्ष्मण, श्रीराम के बिना नहीं रह सकते थे। उसी प्रकार श्री राम भी अपने छोटे भाई लक्ष्मण के बिना नहीं रह सकते थे। लक्ष्मण के जाने के बाद वह बेहद उदास रहने लगे। कुछ दिन बाद ही उन्होंने भी इस संसार को त्यागने का फैसला किया। श्रीराम ने अपना राज-पाट अपने पुत्रों और अपने भाई के पुत्रों को सौंप कर सरयू नदी की तरफ प्रस्थान किया। भाई लक्षमण की तरह श्रीराम भी सरयू के भीतर आगे बढ़ते गए। नदी के मध्य में जाकर जल समाधि ले ली। इस तरह श्रीराम अपने मानवीय रूप को छोड़ अपने वास्तविक स्वरूप भगवान श्री विष्णू के रुप को धारण करने के लिए वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया।
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प्रदीप शाही