-64 कलाओं में पारंगत, भगवान श्री कृष्ण थे पूर्णावतार
प्रदीप शाही
सतयुग, त्रेताय़ुग के बाद द्वापर युग में बढ़ रहे अधर्म, अत्याचार पर अंकुश लगाने के लिए भगवान विष्णु हरि जी ने श्री कृष्ण के रुप में अवतार लिया। 64 कलाओं में दक्ष भगवान श्री कृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि भगवान श्री कृष्ण में सृष्टि के सभी रंग समाहित हैं। आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न रुपों से अवगत करवाते हैं।
इसे भी देखें…..जानिए भगवान श्री कृष्ण की आठ पत्नियों से थी कितनी संताने…?
भगवान श्री कृष्ण का बाल रुप
भगवान श्री विष्णु हरि के अवतार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय और उनके बाल रुप के दौरान विचित्र अद्भुत घटनाएं घटित हुई। श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान श्री कृष्ण की अनूठी बाल लीलाओं का विस्तृत उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण का बालपन गोकुल और वृंदावन में बीता। श्रीकृष्ण ने अपने बाल रुप के दौरान ताड़का, पूतना, शकटासुर का वध किया। जहां श्रीकृष्ण के इस रुप के दर्शन होते हैं। वहीं उनके माखन चोर के रुप में भी अद्भुत दर्शन होते हैं।
इसे भी देखें…..यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार
गोपाल कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण के परिवार की ग्वाले के रुप में पहचान थी। इसलिए वह भी अपने परिजनों के साथ गाय चराने जाते थे। इसी कारण श्री कृष्ण को गोपाल कृष्ण के नाम से भी पुकारा जाता है। पुरुष ग्वाले को गोप और महिला ग्वालन को गोपी कहा जाता है। शायद इसी वजह से श्री कृष्ण के साथ गोप और अन्य लड़कियों और महिलाओं के साथ गोपियां शब्द जुड़ा हुआ है। पुराणों में भी गोपियां-कृष्ण लीलाओं का खास तौर से उल्लेख मिलता है। श्री कृष्ण का गोपियों संग किया डांडिया डांस आज भी मथुरा, वृंदावन क्षेत्र में प्रचलित है।
इसे भी देखें…..भगवान श्री कृष्ण के वंश के अंत का कारण बने ये दो श्राप
गोवर्धनधारी श्री कृष्ण
बाल अवस्था को पार कर किशोरावस्था में श्रीकृष्ण का चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया। इतना ही नहीं इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा कर इलाकावासियों की रक्षा की। साथ ही इलाके को जलप्रलय से भी बचाया। इसी वजह से श्री कृष्ण को गोवर्धनधारी के नाम से भी पुकारा जाता है।
इसे भी देखें….भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से बबरीक कैसे बने कृष्णावतार..
श्री कृष्ण एक शिष्य
श्रीकृष्ण ने अवंतिका (उज्जैन) स्थित गुरु सांदीपनी के आश्रम में किशोरावस्था में अपने बड़े भ्राता बलराम और अपने प्रिय सखा सुदामा संग शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा संपन्न होने पर गुरु सांदीपनी को उनके मृत पुत्र को यमराज से मुक्त करवा अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी। कई जगहों पर यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण ने जैन धर्म में 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ जी से भी ज्ञान ग्रहण किया था।
इसे भी देखें…..जानिए कहां आज भी रास रचाते हैं भगवान श्री कृष्ण ? जिसने भी देखा वो सुध खो बैठा…
भगवान श्री कृष्ण के सखा और सखियां
भगवान श्री कृष्ण के जीवन में उनके नाम संग कई सखा औऱ सखियों के नाम प्रमुख तौर से जुड़े हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण के यह सभी सखा और सखियां जाति, धर्म, अमीर, गरीब की सीमा को को पार कर उनके साथ जुड़े हुए थे। इनमें प्रमुख तौर से सुदामा, श्रीदामा, मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश और प्रिय अर्जुन थे। श्रीकृष्ण की सखियों में राधा औऱ ललिता का नाम प्रमुख तौर से दर्ज है। जबकि ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा, भद्रा, चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी, सुदेवी, कृत्रिमा (मनेली) के नाम भी सखियों के रुप में आते हैं। इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गईं 16 हजार से अधिक सभी महिलाएं श्री कृष्ण की सखियों की श्रेणी में आती हैं। द्रौपदी श्रीकृष्ण की प्रिय सखी थी।
इसे भी देखें…..दर्शन कीजिए… भगवान श्री कृष्ण व पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन शिवलिंगों के….
श्री कृष्ण का प्रेमी रुप
श्री कृष्ण को अनेक गोपियां और प्रेमिकाएं दिलोजान से चाहती थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्यों में गोपियों-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। हमारे पुराणों में तो गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और श्रृंगारिक रूप दिया गया है।
इसे भी देखें…..श्री कृष्ण की द्वारिका सहित पानी में दफन हैं दुनिया के कई प्राचीन शहर
श्री कृष्ण का कर्मयोगी रुप
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अपने प्रिय सखा अर्जुन को दिए गीता संदेश के अलावा कर्मयोग से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि इस जीवन में कर्मयोग का बहुत महत्व है। श्री कृष्ण ने जो भी काम किया, उसे अपना कर्म समझा। अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया। इसी कारण वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण रुप से विजयी रहे। समूचे जीवन में पूरी जिम्मेदारी से उसका पालन करते रहे।
इसे भी देखें…..श्री कृष्ण के पड़पौते वज्रनाभ के नाम पर स्थापित है मथुरा में ब्रजमंडल
श्री कृष्ण एक धर्मयोगी
महर्षि वेद व्यास संग मिल कर भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए बहुत कार्य किए। गीता में उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं इस धरती पर अवतार लूंगा। श्रीकृष्ण ने महर्षि वेद व्यास संग नए सिरे से उनके कार्य में सनातन धर्म की स्थापना करने में अपना योगदान दिया।
इसे भी देखें……जानिए किसने किया था श्री कृष्ण की द्वारिका, रावण की सोने की लंका का निर्माण…
बलशाली श्री कृष्ण
यह सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में कभी भी शस्त्र नहीं उठाए थे। उन्होंने युद्ध के दौरान केवल अपने प्रिय सखा अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। परंतु बहुत कम लोग जानते होंगे कि श्री कृष्ण कई युद्धों में भाग लिया और विजय हासिल की। श्री कृष्ण ने चाणूर, मुष्टिक, कंस, जरासंध, कालयवन, नरकासुर, पौंड्रक और जाम्बवंत से भयंकर युद्ध किए। इतना ही नहीं अपने प्रिय अर्जुन औऱ भगवान शंकर के साथ भी उन्हें युद्ध करना पड़ा था। श्री कृष्ण की चतुराई के चलते ही उन्हें रणछोड़ कृष्ण के नाम से भी संबोधित किया गया। क्योंकि वह अपने संगी साथियों और परिजनों की रक्षा करे लिए मथुरा को छोड़ कर द्वारिका जा कर बस गए थे।
इसे भी देखें…..श्री कृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में यहां दिए थे दर्शन
महायोगी श्री कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण एक महायोगी के रुप में देखा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। माना जाता है कि श्री कृष्ण का शरीर बहुत ही लचीला था। वह अपनी इच्छानुसार अपने शरीर को वज्र समान बना लेने में सक्षम थे। श्री कृष्ण कई तरह की यौगिक शक्तियों के जानकार थे। श्री कृष्ण ने योग के बल पर मौत होने तक अपने आप को जवान बनाए रखा था।
इसे भी देखें…..श्रीकृष्ण के श्राप के कारण पांच हजार साल से कहां?? भटक रहे हैं अश्वत्थामा
पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण जी, भगवान श्री विष्णु हरि जी के अवतार थे। श्री कृष्ण को पूर्णावतार का दर्जा प्रदान किया जाता है। महाभारत के युद्ध के दौरान अपने प्रिय अर्जुन को सत्य से अवगत करवाने के लिए उन्होंने अपना विराट स्वरूप दिखाया। ताकि अर्जुन जान सकें कि श्री कृष्ण ही परमेश्वर हैं।
इसे भी देखें…..बर्बरीक हैं कृष्ण अवतार प्रसिद्ध मंदिर खाटू श्री श्याम में
राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने समूचे जीवन में कूटनीति के बल पर परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालकर भविष्य का निर्माण किया। उन्होंने वक्त की नजाकत को समझते हुए जहां कर्ण के कवच और कुंडल दान में दिलवाए। वहीं उन्होंने दुर्योधन के संपूर्ण शरीर को वज्र के समान होने से रोका। अपार शक्तिशाली बर्बरीक का शीश मांगा और घटोत्कच को सही समय पर युद्ध में उतारा। ऐसी कई बातें हैं, जिससे पता चलता है श्री कृष्ण की राजनीति औऱ कूटनीति के चलते ही महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय मिल पाई थी।
रिश्ते और श्री कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण के बारे सभी जानते हैं कि उनके निकट संबंध पांडवों संग थे। परंतु उनके कौरवों संग भी पारिवारिक संबंध भी थे। श्री कृष्ण जी की आठ पत्नियां रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी थी। इनसे श्रीकृष्ण को लगभग 80 पुत्र पैदा हुए। वहीं श्री कृष्ण की तीन बहनें एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं), सुभद्रा और द्रौपदी (मानस भगिनी, तीन भाई नेमिनाथ, बलराम और गद थे। सुभद्रा का विवाह श्री कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। वहीं श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र साम्ब का विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से किया था।
इसे भी देखें……जानिए क्यों ? भगवान कृष्ण ने अपने हाथों पर किया था दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार