भगवान भोलेनाथ की लीला को आज तक कोई नहीं समझ पाया। भगवान शिव इस धरती पर शिवलिंग के रूप में बिराजमान हैं। शिवलिंग को भगवान शिव का साक्षात रूप मानते हुए भक्तों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। पूरे भारत में भगवान शिव के प्रतीक इन शिवलिंगों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भगवान शिव से संबंधित अचलेश्वर महादेव के नाम से भारत में कई मंदिर मौजूद हैं जिनमें से एक धौलपुर में स्थित है इस स्थान पर स्थापित रहस्यमयी शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। आज हम आपको माउंट आबू के अचलेश्वर महादेव के बारे में जानकारी देंगे जो विश्व का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसमें भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।
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अचलेश्वर महादेव मंदिर
अचलेश्वर महादेव मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्थित है। अचलगढ़ का प्रसिद्ध किला अब खंडहर में बदल चूका है। इस किले का निर्माण परमार राजवंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। इसके बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इस किले का पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया।
माउंट आबू को कहा जाता है अर्धकाशी
राजस्थान राज्य के एकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू में भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। इसलिए माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार वाराणसी शिव की नगरी है और माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी। अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर बने अचलगढ़ के किले के पास स्थित है।
भगवान शिव के अंगूठे की होती है पूजा
अचलेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है इस मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्राचीन शिवलिंग पाताल खंड के रूप में स्थापित है, जिसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है। इसे स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। इसे भगवान शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है। कहा जाता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउंट आबू पहाड़ को थामा हुआ है और जिस दिन अंगूठे का यह निशान मिट जाएगा, उस दिन माउंट आबू का पहाड़ नष्ट हो जाएगा। मंदिर में प्रवेश करते ही पंच धातु की बनी हुई नंदी जी की एक विशाल मूर्ति के दर्शन होते हैं। इस मूर्ति का वजन लगभग चार टन के करीब है।
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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जिस स्थान पर आज आबू पर्वत स्थित है, पौराणिक काल में इस स्थान पर नीचे एक विशाल खाई थी। जिसे ब्रह्म खाई कहा जाता था। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहा करते थे। वश्ष्ठि मुनि की कामधेनु गाय घास चरते हुए अचानक ब्रह्म खाई में गिर गई उस गाय को बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई जमीन की सतह तक पानी से भर गई जिसके चलते कामधेनु गाय बाहर जमीन पर आ गई। कुछ समय बाद ही फिर ऐसा ही हुआ। बार-बार होते हादसों से परेशान होकर वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उसे अपनी समस्या बताई। इस पर हिमालय ने अपने पुत्र नंदी वर्द्धन को वहां जाकर समस्या का निदान करने का आदेश दिया। इसके बाद अर्बुद नाग, नंदी वर्द्धन को उड़ाकर वशिष्ठ आश्रम में ले आया। आश्रम में पहुंचकर नंदी वर्द्धन ने वशिष्ठ मुनि से यह वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए और साथ ही वह पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला हो। इसके बाद अर्बुद नाग ने भी वरदान मांगा कि इस पर्वत का नाम उसके नाम से रखा जाए। वशिष्ठ मुनि ने दोनों को यह वरदान दिए। इसके बाद से यह स्थान आबू पर्वत के नाम से प्रसिद्ध व विख्यात हुआ। कहा जाता है कि वरदान प्राप्त करके नंदी वर्द्धन खाई में उतरा और धंसता ही चला गया, लेकिन केवल नंदी वर्द्धन का नाक एवं ऊपर का हिस्सा ही जमीन से ऊपर रहा, जिसे आज आबू पर्वत कहा जाता है। इसके बाद उसके लिए अचल यानि स्थिर रह पाना मुश्किल हो रहा था। वशिष्ठ मुनि की प्रार्थना पर भगवान शिव ने अपने दाहिने पैर का अंगूठा पसार कर नंदी वर्द्धन को स्थिर यानि अचल कर दिया इसके बाद यह क्षेत्र अचलगढ़ के नाम से विख्यात हुआ। इसीलिए अचलेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिव के अंगूठे का पूजन किया जाता है। एक और अद्भुत व हैरान करने वाली बात यह है कि इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल रूपी खड्डे में कितना भी पानी क्यों ना डाला जाए लेकिन फिर भी यह खाई पानी से नहीं भरती। इस स्थान पर चढ़ाया जानेवाला जल कहां जाता है यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
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मंदिर में स्थापित है धर्मकांटा
मंदिर में दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा दर्शनीय है जो शिल्पकला का अद्भुत व बेजोड़ नमूना है। मान्यता है कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करते थे और इस धर्मकांटे के नीचे ही प्रजा के साथ पूर्ण रूप से न्याय करने की शपथ ग्रहण करते थे। मंदिर के बीचोबीच चंपा का विशाल प्राचीन पेड़ मौजूद है। मंदिर में द्वारिकाधीश मंदिर भी विशेष दर्शनीय है। गर्भगृह के बाहर भगवान विष्णु के अवतारों वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कल्कि अवतार की काले पत्थर से निर्मित भव्य मूर्तियों के दर्शन होते हैं।
धर्मेन्द्र संधू