-रुद्राक्ष के विभिन्न रुपों में वास करते हैं देवी-देवता
-विभिन्न मुखी रुद्राक्ष से मिलते हैं यह लाभ
समस्त देवी देवताओं में से भगवान भोलेनाथ का भक्तों की ओर से आराध्य के रुप में सबसे अधिक पूजन किया जाता है। इसके कई कारण माने गए हैं। प्रमुख कारणों में इस विश्व भऱ में स्थापित भोलेनाथ के मंदिरों में शिव लिंग का प्राण प्रतिष्ठित होना है। वहीं भगवान शंकर की आंखों से निकली अश्रू बूंद का रुद्राक्ष के रुप में जन्म लेना भी इसका विशेष कारण माना गया है। विभिन्न आकारों व मुखों वाले रुद्राक्ष में विभिन्न रुपों में भोले बाबा के संग अन्य देवी-देवता वास भी करते हैं। इसी वजह से भक्त रुद्राक्ष को धारण कर भोले नाथ के अलावा अन्य देवी देवताओं का आशीर्वाद हासिल करते हैं।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति
रुद्राक्ष संस्कृत भाषा का एक यौगिक शब्द माना गया है। भगवान भोले नाथ को रुद्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है। रुद्र संस्कृत का शब्द है। अक्सा का अर्थ अश्रू की बूंद होता है। एेसे में रद्राक्ष को भगवान शिव की अश्रु की बूंद कहा जाता है। रुद्राक्ष का पेड़ हिमालय के क्षेत्र में पाया जाता है। रुद्राक्ष 14 तरह के आकारों में पाया जाता है।
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रुद्राक्ष से निकलती है सकारात्मक उर्जा
रुद्राक्ष असल में एक फल की गुठली है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आंख से निकली अश्रू की बूंद से मानी गई है। रुद्राश्र को धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। रुद्राक्ष शिव का वरदान है। भगवान भोले नाथ संसार के भौतिक दु:खों को दूर करने के लिए रुद्राक्ष को जन्म दिया।
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रुद्राक्ष का पूजा दौरान माला के रुप में किया जाता है प्रयोग
हिंदू धर्म में रुद्राक्ष को प्रार्थना के दौरान माला के रूप में भी प्रयोग करने का चलन है। रुद्राक्ष देवों के देव महादेव भगवान शिव से जुड़ा हुआ हैं। भक्त इसे सुरक्षा कवच के तौर पर पहनते हैं। ओम नमः शिवाय मंत्र के जाप के लिए इसका माला के रुप में उपयोग किया जाता है।
भगवान शिव स्वयं पहनते हैं रुद्राश्र की माला
भारत में रुद्राक्ष की माला को ग्रहण करने एक प्राचीन परंपरा है। भगवान शिव खुद रुद्राक्ष माला को पहनते हैं। स्नान करते समय इसको उतारना जरुरी होता है। इसका मुख्य कारण पानी रुद्राक्ष बीज को हाइड्रेट कर सकते हैं।
एक मुख से लेकर 14 मुख तक होता है रुद्राक्ष
संस्कृत में मुखी का मतलब चेहरा होता है। रुद्राक्ष का आकार हमेशा मिलीमीटर में मापा जाता है। वे मटर के बीज के रूप में छोटे से बड़े होते हैं। जबकि कुछ रद्राक्ष अखरोट के आकार तक को भी होते हैं। पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए रुद्राक्ष का भी उपयोग किया जाता है। आमतौर से मिलने वाले रुद्राक्ष में पांच चेहरे होते हैं। इन्गें भगवान शिव के पांच चेहरों का प्रतीक माना जाता है। रुद्राक्ष को केवल काले, लाल धागे में पहनना चाहिए। इसे सोने की चेन में भी पहना जा सकता है।
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रुद्राक्ष में वास करते भगवान शिव व अन्य देवी देवता
मान्यता अनुसार एकमुखी रुद्राक्ष में महादेव भगवान शिव, द्विमुखी में श्री गौरी-शंकर, त्रिमुखी में अग्नि, चतुर्थमुखी में श्री पंचदेव, पंचमुखी में सर्वदेव्मयी, षष्ठमुखी में भगवान कार्तिकेय, सप्तमुखी में प्रभु अनंत, अष्टमुखी में सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश, नवममुखी में भगवती देवी दुर्गा, दशमुखी में श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी में श्री इंद्र तथा चौदहमुखी में भगवान शिव के अवतार हनुमानजी का वास होता है। इसके अलावा गौरी शंकर रुद्राक्ष को भी पूजा जाता है और धारण किया जाता है।
विभिन्न मुखी रुद्राक्ष से मिलते हैं यह लाभ
एक मुखी रुद्राक्ष को महादेव शिव का स्वरूप माना जाता है। जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है। द्विमुखी रुद्राक्ष से सभी कामनाएं पूरी होती है। दांपत्य जीवन में सुख, शांति मिलती है। त्रिमुखी रुद्राक्ष से समस्त भोग-ऐश्वर्य मिलते हैं। चतुर्थमुखी रुद्राक्ष से इंसान को धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष मिलने की राह परिपक्व होती है। पंचमुखी रुद्राक्ष से सुख, षष्ठमुखी रुद्राक्ष से पापों से मुक्ति, सप्तमुखी रुद्राक्ष से गरीबी दूर होती है। अष्टमुखी रुद्राक्ष से आयु बढ़ती है। व उर्जा मिलती है। नवमुखी रुद्राक्ष से मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है। दशमुखी रुद्राक्ष से शांति मिलती है। जबकि ग्यारह मुखी रुद्राक्ष हर तरह से फतेह व भक्ति प्रदान करता है। बारह मुखी रुद्राक्ष से धन प्राप्ति, तेरह मुखी रुद्राक्ष से शुभ, लाभ मिलता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष इंसान के समूचे पापों को नष्ट कर देता है।