-राधा की मौत के बाद टूट गई थी श्री कृष्ण की बांसुरी की तान
द्वापर काल में इस धरती पर पर अवतरित हुए भगवान श्री कृष्ण के जीवन से संबंधित कई घटनाओं को हम सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। यह भी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी और राधा संग आत्मिक रुप से प्यार था। यह दोनों चीजें भगवान श्री कृष्ण के जीवन में एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई थीं। परंतु क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की ओर से भेंट की गई अमूल्य बांसुरी को भगवान श्री कृष्ण ने किस कारण तोड़ दिया था। यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं कि राधा की मौत के बाद आहत हुए भगवान श्री कृष्ण ने उस बांसुरी को तोड़ दिया। या यूं कहें की राधा की मौत के बाद श्री कृष्ण की बांसुरी की तान हमेशा के लिए खामोश हो गई। इसके बाद श्री कृष्ण ने जीवन भर कभी भी किसी वाद्य यंत्र को हाथ नहीं लगाया। पुराणों अनुसार राधा के रूप में देवी लक्ष्मी ने धरती पर अवतार लिया था।
इसे भी देखें….यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ||
भगवान श्री कृष्ण को भेंट की थी भगवान शिव ने बांसुरी
द्वापर युग में जब भगवान श्री हरि विष्णू इस धरती पर भगवान श्री कृष्ण के रुप में अवतरित हुए। तो सभी देवी देवता वेश बदलकर समय-समय पर उनसे मिलने आने लगे। भगवान शिव में भी अपने प्रिय भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने की उत्सुक्तता बढ़ी। भोले बाबा ने सोचा वह श्री कृष्ण से मिलने धरती पर जा रहें है। तो उन्हें अपने साथ कुछ उपहार भी ले जाना चाहिए। वह सोच कर परेशान हो गए कि वह कौन सा उपहार अपने साथ ले जाएं। जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय भी लगे और वह हमेशा उनके साथ रहे। तव महादेव को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। ऋषि दधीचि वो महान ऋषि हैं, जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था। साथ ही अपने शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थीं। दान की गई इन हड्डियों की सहायता से भगवान श्री विश्वकर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गाण्डीव, शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था। तब महादेव ने ऋषि दधीचि की एक हड्डी को घिसकर एक सुंदर व मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब भोले बाबा भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पंहुचे, तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेंट स्वरूप वह बांसुरी प्रदान कर आशीर्वाद दिया। तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।
इसे भी देखें….वह कौन सा मंदिर है जिसका चंद्र देव ने करवाया था निर्माण
जीवात्मा और परमात्मा का मिलन था राधा श्री कृष्ण का प्यार
इस धरती पर जब भी प्रेम की मिसाल दी जाती है। तो सबसे पहले राधा श्री कृष्ण के प्रेम की बात होती है। राधा श्री कृष्ण के प्यार को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन माना गया है। राधा श्रीकृष्ण के बचपन का प्यार थीं। राधा श्रीकृष्ण से आयु में पांच साल बड़ी थी। जब राधा ने और श्री कृष्ण के दैवीय गुणों को भांपा, तब उन्हें श्री कृष्ण से प्रेम की अनुभूति हुई। तब श्री कृष्ण आठ साल के थे। राधा ने जिंदगी भर अपने मन में प्रेम की स्मृतियों को बनाए रखा। यही उनके पाक रिश्ते की सबसे बड़ी खूबसूरती रही। राधा वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं। कृष्ण की मधुर बांसुरी की तान सुन कर वृंदावन पहुंच जाती थी। राधा के प्रेम के कारण ही श्रीकृष्ण भगवान शिव की प्रदान की गई भेंट बांसुरी को हमेशा अपने पास ही रखते थे।
इसे भी देखें….ऐसा मंदिर… यहां मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाई जाती हैं चप्पलें….
राधा और श्री कृष्ण को बांसुरी ने बांधे रखा एक सूत्र में
चाहे श्रीकृष्ण और राधा का मिलन नहीं हो सका था। परंतु श्री कृष्ण की बांसुरी ने इन दोनों को हमेशा एक सूत्र में बांधे रखा। बांसुरी को राधा श्री कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना गया है। कंस ने जब पहली बार श्री कृष्ण व बलराम को मथुरा बुलाया। इससे वृंदावन के लोग दुखी हो गए। तब पहली बार श्री कृष्ण राधा से दूर हुए थे। श्री कृष्ण राधा से यह वादा करके गए थे कि वो वापिस आएंगे, लेकिन श्री कृष्ण फिर कभी राधा के पास वापिस नहीं आए। इधर श्री कृष्ण की शादी रुक्मिनी से हुई। वहीं राधा की शादी जतिला के पुत्र अभिमन्यु का विवाह राधा के साथ संपन्न हुआ था। योगमाया के ही प्रभाव की वजह से अभिमन्यु कभी अपनी पत्नी राधा को छू तक नहीं पाया था। समय बीतने के साथ ही राधा बूढ़ी हुईं, लेकिन उनका मन तब भी कृष्ण के लिए समर्पित था।
इसे भी देखें….मंदिर में स्थापित खंभों में से कैसे निकलता है संगीतमयी स्वर ?
श्री कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद राधा का वर्णन बेहद कम
कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद कहीं भी राधा का जिक्र नहीं मिलता है। आखिरी बार राधा को श्री कृष्ण ने कहा था कि भले ही वो उनसे दूर जा रहे हैं, लेकिन आत्मिक रुप से हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे। इसके बाद कृष्ण मथुरा गए और कंस सहित राक्षसी शक्तियों को मारा। प्रजा की रक्षा के लिए कृष्ण द्वारिका चले गए। वहां पर वह द्वारकाधीश के नाम से लोकप्रिय भी हुए।
इसे भी देखें….भगवान श्री राम ने लंका कूच से पहले यहां किया था श्री गणेश का पूजन
जब आखिरी बार श्री कृष्ण से मिलने पहुंची राधा
जीवन के सभी सांसारिक कर्तव्यों को पूर्ण करने के बाद आखिरी बार राधा अपने प्रियतम श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका गईं। द्वारिका पहुंच उसे श्री कृष्ण का रुक्मिनी और सत्यभामा से विवाह के बारे में सुना। जब श्री कृष्ण ने राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। राधा को श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था। एेसे में राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया। महल में रहते राधा मौका मिलते ही श्री कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। महल में रहते राधा को श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह का आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पाया। इसलिए राधा ने महल से दूर जाना ही उचित समझा। राधा को पता नहीं था कि वह कहां जा रही हैं, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण सब जानते थे धीरे-धीरे समय बीता गया और राधा बिलकुल अकेली व कमजोर हो गईं। उन्होंने श्री कृष्ण को याद किया। राधा के आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए।
श्री कृष्ण ने राधा से कहा कि वह उनसे कुछ मांगें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। श्री कृष्ण के बार-बार अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वह आखिरी बार उनकी बांसुरी सुनना चाहती है। श्री कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन बजाई। श्री कृष्ण बांसुरी बजाते रहे। इसी दौरान राधा का आध्यात्मिक रूप श्री कृष्ण में विलीन हो गया। राधा के इस नश्वर संसार में शरीर त्यागने को श्री कृष्ण सहन नहीं कर सके। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है। फिर भी वह बेहद आहत हुए। राधा की मौत के साथ ही श्री कृष्ण ने प्रेम के प्रतिकात्मक रुप बांसुरी को तोड़ डाला। इस घटना के बाद श्री कृष्ण ने जीवन भर बांसुरी या कोई अन्य वाद्य यंत्र नहीं बजाया।
इसे भी देखें….कुंभ में ही प्रकट होते हैं शिव और अग्नि के भक्त यह रहस्यमयी साधु
प्रदीप शाही