चंडीगढ़, 25 सितम्बर:
भारत-यूके के दरमियान साझा टीचिंग-लर्निंग मॉडल विकसित करने और संयुक्त कार्यक्रमों के निर्माण के लिए शुरू किए गए गोइंग ग्लोबल पार्टनरशिप ग्रांट प्रोग्राम सम्बन्धी विचार-विमर्श के लिए पंजाब सरकार और बिर्टिश काउंसिल के सहयोग से चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूंआं के कैंपस में एक विशेष वर्कशॉप करवाई गई।
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इस सम्बन्धी जानकारी देते हुए प्रवक्ता ने बताया कि वर्कशॉप के दौरान बिर्टिश काउंसिल ऑफ इंडिया की डायरैक्टर एजूकेशन रीतिका चंदा पारुक और बिर्टिश काउंसिल ऑफ इंडिया के डिप्टी डायरैक्टर रवन कैनेडी ने इस ग्लोबल पार्टनरशिप प्रोग्राम के अंतर्गत ग्रांट्स और अन्य सम्बन्धित पहलुओं के बारे में विचार-चर्चा की।
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इस दौरान भारत की 18 यूनिवर्सिटियों के वाइस चांसलरों ने प्रोग्राम में शिरकत करते हुए गोइंग ग्लोबल पार्टनरशिप प्रोग्राम में आवेदन करने सम्बन्धी विभिन्न पड़ावों और पहलुओं संबंधी जाना। इस मौके पर श्री वी.के. मीना सचिव उच्च शिक्षा पंजाब सरकार, गुरदर्शन बराड़ सिंह, असिस्टेंट डायरैक्टर, पंजाब सरकार और चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी के प्रो-चांसलर डॉ. आर.एस. बावा विशेष तौर पर उपस्थित थे।
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इस दौरान बातचीत करते हुए रवन कैनेडी ने कहा कि ब्रिटिश की शैक्ष्णिक संस्थाएं और भारत की उच्च शिक्षा संस्थाओं के बीच लंबे समय से सहयोग चल रहा है। दोनों मुल्कों के बीच अकादमिक संबंधों को और मज़बूत करने के उद्देश्य से बिर्टिश काउंसिल द्वारा नई पहलकदमी गोइंग ग्लोबल पार्टनरशिप ग्रांट की शुरुआत की गई है, जिसमें शिक्षा के लिए साझा मॉडल विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बिर्टिश काउंसिल न केवल अनुसंधान के लिए बल्कि विद्यार्थियों और अध्यापकों के आदान-प्रदान के लिए भी सहयोग बढ़ाना चाहती है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 न सिफऱ् भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण पर ज़ोर देगी, बल्कि यह भारत और यूके की शैक्षणिक संस्थाओं के दरमियान सहयोग बढ़ाने के नए रास्ते भी तैयार करेगी।
इस मौके पर बातचीत करते हुए श्री वी.के. मीना ने कहा कि राज्य की यूनिवर्सिटियों के लिए यह वर्कशाप एक महत्वपूर्ण मंच है, जहाँ यूनिवर्सिटियां ब्रिटिस काउंसिल के साथ सीधे तौर पर संबंध बनाकर आदान-प्रदान प्रोग्रामों, साझा अनुसंधान प्रयासों और गुणवत्तापूर्ण टीचिंग-लर्निंग आदि मुद्दों पर विचारों को साझा कर सकेंगी। यह ग्रांट यूके और भारत की सभी उच्च शिक्षा संस्थाओं के आवेदनकर्ताओं के लिए उपलब्ध है, जो एक साझा विषय के क्षेत्र में साझा अध्ययन कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि ‘गोइंग ग्लोबल पार्टनरशिप ग्रांटÓ का मुख्य उद्देश्य भारत और ब्रिटेन में विद्यार्थियों के लिए अवसरों को बढ़ाना है और अंतरराष्ट्रीय लर्निंग का अनुभव करना है। उन्होंने बताया कि इस ग्रांट के अंतर्गत अन्वेषण (एक्सप्लोरेटरी) और सहयोग (कोलैबोरेशन) ग्रांट के रूप में दो तरह की ग्रांट मुहैया करवाई जाती हैं।
ग्रांट की प्रक्रिया संबंधी बोलते हुए रीतिका चंदा पारुक ने उम्मीद ज़ाहिर की कि इस प्रयास का प्रयोग यूनिवर्सिटियों के समूह के सहयोग को बढ़ाने के लिए किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य पाठ्यक्रमों में सीखने के अनुभवों के लिए एक साझा विश्वव्यापी पहुँच बनाना और नौजवानों के लिए ब्रिटेन में पढऩे के अवसर पैदा करना है। रीतिका चंदा ने कहा कि यह किसी भी परिवार के लिए एक महँगा प्रस्ताव है और निश्चित रूप में उन लोगों तक सीमित है जो इस किस्म के वित्तीय खर्च को वहन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि ग्रांट के लिए नामांकन दायर करने की अंतिम प्रक्रिया यूके काउंसिल के नियंत्रण में होगी, इसलिए यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि इस समूची प्रक्रिया में यूके काउंसिल की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह हिस्सेदारी भारतीय और ब्रिटेन की शैक्षणिक संस्थाओं की मज़बूती और तालमेल के साथ जुड़े विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित है। उन्होंने बताया कि हमारे पास भारत और यूके लिए इस ग्रांट का कोई निर्धारित वितरण नहीं है और इस सम्बन्ध में यह ग्रांट यूके सरकार द्वारा वैबसाईट पर प्रदान करवाई जाएगी, परन्तु उनको अपने आवेदन पत्र में यह दिखाना होगा कि वह आपके साथ सहमत हैं कि वितरण कैसे होगा। वह इस वडिंग के प्रबंधन की जि़म्मेदारी लेते हैं, हालाँकि हमें भरोसा देंगे कि उन्होंने सभी भारतीय संस्थाओं की संतुष्टि के अनुसार इसकी रूप-रेखा तैयार की है। उन्होंने कहा कि यदि आप यूके वैबसाईट पर आवेदन करते हो तो आपको दस्तावेज़ यूके साइट पर ही अपलोड करने होंगे।
इस मौके पर बातचीत करते हुए गुरदर्शन बराड़ सिंह ने कहा कि राज्य में विद्या के मानक को ऊँचा उठाने के लिए यूनिवर्सिटियों के बीच अनिवार्य तौर पर साझे प्रयास होने चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकादमिक हिस्सेदारी के अलावा राज्य की प्राईवेट और सरकारी यूनिवर्सिटियों को अनुसंधान कार्यों के लिए बतौर टीम साझे प्रयत्न करने होंगे। उन्होंने कहा कि विदेश पढऩे गए नौजवानों के कौशल का प्रयोग देश की तरक्की के लिए होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि साझे आदान-प्रदान कार्यक्रमों और साझे अनुसंधान प्रोजैक्टों के लिए हमारी यूनिवर्सिटियाँ विदेशी विद्यार्थियों को भारत में पढऩे के लिए प्रोत्साहित करें, उन्होंने कहा कि निस्संदेह आज भारत ऐसे स्थान पर खड़ा है, जहाँ हमारी संस्थाएं विदेशी विद्यार्थियों को विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करवा सकती हैं।
–Nav Gil