-बसंत पंचमी के दिन हुई थी माता सरस्वती अवतरित
-बसंत पंचमी पर माता सरस्वती के पूजन से मिलता है इच्छित वरदान
संगीत, ज्ञान और कला की देवी, ब्राह्माण की रचयिता माता सरस्वती के अवतरण दिवस पर उनके पूजन से इच्छित वरदान की प्राप्ति होती है। क्या आप जानते हैं कि माता सरस्वती कब और कैसे प्रकट हुई। इस साल माता का अवतरण दिवस कब आ रहा है। इस साल माता के बनने वाले महासंयोग पर कैसे पूजा अर्चना कर माता का आशीर्वाद कैसे हासिल किया जा सकता है। आपको माता सरस्वती के अवतरण दिवस के बाबत बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।
बसंत पंचमी के दिन हुआ था माता का अवतरण
कहा जाता है कि भगवान विष्णु जी की आज्ञा से जब भगवान श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। तो समूची पृथ्वी पूरी तरह से विरान थी। चारों तरफ उदासी का वातावरण था। इस उदासी को दूर करने के लिए भगवान श्री ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। कमंडल से निकले जलकणों से चार भुजाओं वाली एक आदि शक्ति प्रकट हुई। इस शक्ति के हाथों में वीणा, पुस्तक व माला थी। भगवान ब्रह्मा जी ने इस आदि शक्ति से वीणा बजाने को कहा ताकि पृथ्वी पर चारों तरफ फैली उदासी दूर हो सके। इस आदि शक्ति ने जैसे ही वीणा के तार छेड़े तो सारी पृथ्वी लहलहा उठी, सभी जीवों को वाणी मिल गई। आदि शक्ति बसंत पंचमी के दिन अवतरित हुई। हाथों में वीणा, पुस्तक व माला धारण किए जाने के चलते ही उन्हें माता सरस्वती के नाम से पुकारा गया।
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देवी सरस्वती हैं भगवान श्री ब्रह्मा की अर्धांगिनी
देवी माता सरस्वती, भगवान श्री ब्रह्मा की दिव्य पत्नी के रूप में जानी जाती है। माँ सरस्वती त्रिनिती, त्रिदेवी मां लक्ष्मी , मां पार्वती और माँ सरस्वती से एक हैं। वह हमेशा संगीत यंत्र वीणा हाथों में धारण किए रहती है। उन्हें शारदा वाधदेवी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इनका वाहन श्वेत हंस है। माता सरस्वती, भगवान श्री ब्रह्म की शक्ति के रूप में भी जानी जाती हैं। नदियों की देवी के रूप में भी इनकी पूजा की जाती है
देवी सरस्वती के इस मंत्र से मिलता है वरदान
माता सरस्वती के मूल मंत्र ॐ येम सरस्व्ताय नमः से स्तुति करने से माता अपने भक्तों का इच्छित वरदान देती है। वहीं माता सरस्वती का यह गायत्री मंत्र ॐ सरस्वत्यै चा विदमहे ब्रह्मपुत्रिये चा धीमहि तन्नो सरस्वती प्रचोदयात का जाप करने से माता सरस्वती का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
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माता सरस्वती कैसी दिखती है ?
पुराणों में देवी सरस्वती को शुद्ध सफेद कपड़े पहने एक खूबसूरत महिला के रूप में दर्शाया गया है। माता को एक विशाल सफेद कमल पर खड़े दर्शाया गया है। सफेद रंग को सच्चे ज्ञान की पवित्रता का प्रतीक कहा जाता है । हालांकि माता को पीले रंग से भी जुड़ी माना गया है। माता सरस्वती के बसंत पंचमी के दिन अवतरित होने के कारम उन्हें सरसों के पौधे भी समर्पित किये जाते है। माता के चार हाथ दिखाए गए है। उनके चार हाथ मानव व्यक्तित्व के चार पहलुओं मन, बुद्धि , सतर्कता, और अहंकार का प्रतीक है। वही उनके चार हाथों को चारों वेद का प्रतिनिधित्व करते भी माना गया है। गद्य के लिए ऋग्वेद व यजुर वेद , संगीतके लिए सामवेद, और दर्शन के लिए अथर्ववेद को प्रमुख माना गया है।
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माता सरस्वती का पूजन कैसे करें ?
माता सरस्वती का पूजन केवल बसंत पंचमी पर करना चाहिए। अगर किसी कारणवश बसंत पंचमी पार पूजन न किया जा सके, तो किसी भी पुष्य नक्षत्र में माता की पूजा प्रारंभ की जा सकती है। बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त में किसी शांत स्थान या मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। पूजा के सामने लकड़ी के तख्त पर सफेद वस्त्र बिछा कर माता सरस्वती के चित्र को लगाएं। लकड़ी के तख्त पर रखी एक तांबे की थाली में कुमकुम, केसर से रंगे हुए चावलों की एक ढेरी लगाएं। इन चावलों की ढेरी में सरस्वती यंत्र स्थापित करें। माता सरस्वती के यंत्र को पंचामृत से स्नान करवाएं। सबसे पहले दूध से स्नान करवा, फिर दही से, इसके बाद घी से स्नान करवा कर शक्कर व शहद से स्नान करवाएं। केसर या कुमकुम से यंत्र औऱ चित्र पर तिलक लगाएं। आंखे बंद करके माता सरस्वती का ध्यान करते हुए माता सरस्वती के इस मंत्र—ॐ श्री ऐं वाग्वाहिनी भगवती
सन्मुख निवासिनि
सरस्वती ममास्ये प्रकाशं
कुरू कुरू स्वाहा: ।।
की 11 बार माला मंत्र जाप करें। साथ ही माता सरस्वती से अपने व अपने बच्चों के लिए ऋद्धि-सिद्धि, विद्यार्जन, स्मरण शक्ति प्रदान करने की कामना करें।
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सरस्वती पूजा पर बन रहा है महासंयोग
इस बार बसंत पंचमी पर माता सरस्वती पूजा पर ग्रह-गोचरों का महासंयोग बन रहा है। सरस्वती पूजा पर रविवार, रवि सिद्धियोग,अबूझ नक्षत्र और 10 तारीख का महासंयोग बन रहा है। माघ शुक्ल पंचमी शनिवार की दोपहर 12.25 बजे से शुरू हो जाएगी। जो रविवार पहर 2.08 बजे तक रहेगी। पूजन के समय अबूझ नक्षत्र का भी संयोग बना है। पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त रविवार को सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक है। गौर हो सरस्वती पूजा पर मंत्र दीक्षा, नवजात शिशुओं की विद्या का शुभारंभ भी किया जाता है। इस तिथि पर मां सरस्वती के साथ सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश, माता लक्ष्मी की पूजा अति फलदायी मानी गई है। माता सरस्वती को विद्या की देवी भी कहा जाता है। माता की पूजा करने से स्मरण शक्ति में इजाफा होता है।
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बसंत पंचमी को कहा जाता है ऋतुओं का राजा
बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। सूर्य हमें संदेश देता है कि हमें सूर्य की तरह गंभीर और प्रखर बनना चाहिए। बसंत ही एक ऐसी ऋतु है। जिसमें सभी ऋतुओं की अपेक्षा धरती की उर्वरक शक्ति बढ़ती है। इस दौरान फसल पकती है। पेड़-पौधों में नई कोपलें फूटती हैं। बसंत को ऋतुओं का राजा भी कहा गया है। बसंत पंचमी के दिन प्रकृति पीली चुनरी ओढ लेती है। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है। ने में भी पीले रंग की चीजें बनायी जाती हैं। इसमें पीले रंग के चावल, पीली पूरियां, पीले लड्डू और केसर की खीर शामिल होती हैय़ एक शोध अनुसार पीले रंग के कपड़े पहने से दिमाग का सोचने समझने वाला हिस्सा अधिक सक्रिय हो जाता है। इंसान के अंदर उर्जा अधिक पैदा होती है। पीला रंग इंसान को खुशी और उमंग प्रदान करता है। इस दिन रंग बिरंगे कपड़े पहन कर पंतग उड़ाने का भी परंपरा है।
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प्रदीप शाही