पृथ्वी की नाभि पर बना मंदिर जिसका सीधा संबंध है मंगल ग्रह से

वंदना

चार दिशाएं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण जहां आकर मिलती है | जहां से कर्क रेखा, भूमध्य रेखा गुजरती हैं| वह पृथ्वी का केंद्र भारत का उज्जैन नगर है| उज्जैन को पुराणों में मंगल ग्रह की जननी भी कहा गया है| कर्क रेखा पर बना मंगलनाथ मंदिर पृथ्वी का नाभि स्थल होने के कारण इसका सीधा संबंध मंगल ग्रह से है जिससे इस जगह का महत्व खास हो जाता है | जिन व्यक्तियों की कुंडली में मंगल भारी होता है, वह अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए पूजा पाठ करवाने यहां आते हैं|

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मंगल का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व

पुराणों के अनुसार यह मंदिर सदियों पुराना है वैसे तो उज्जैन को महाकाल की नगरी कहते हैं| यहां भगवान मंगलनाथ का भी शिव रूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है|

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मंगल ग्रह से जुड़ी पौराणिक कथाएं

स्कंद पुराण के अनुसार अंधकासुर दैत्य को शिवजी से वरदान प्राप्त था कि धरती पर अगर कहीं भी उसके रक्त की बूंदें गिरेगी तो वहीं पर हजारों दैत्य पैदा हो जाएंगे| वरदान के नशे में चूर अंधकासुर ने अवंतिका पर तबाही मचा दी| इस तबाही से परेशान होकर ऋषि-मुनियों, दीन दुखियों ने भगवान शंकर की स्तुति की| भगवान शंकर पुकार सुन स्वयं रूद्र रूप में प्रकट हुए और अंधकासुर से युद्ध किया| दोनों के बीच घमासान व भीषण युद्ध हुआ और भगवान शंकर के रूद्र रूप को पसीना आने लगा जैसे ही पसीने की कुछ बूंदें धरती पर गिरीं तो उज्जैन की धरती फट कर दो भागों में बंट गई और एक नए ग्रह मंगल का जन्म हुआ| शिवजी के रूद्र रूप ने अंधकासुर का अंत किया और मंगल ग्रह ने उसके रक्त की सभी बूंदों को अपने अंदर समेट लिया| रक्त को धरती पर गिरने नहीं दिया| रक्त की सभी बूंदे अपने अंदर समेटने के कारण मंगल की धरती लाल हो गई जो कि आज तक है| शिवजी ने इस ग्रह को धरती से अलग कर ब्रह्मांड में स्थित कर दिया|

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मंगल ग्रह का धार्मिक महत्व

भगवान मंगल को नवग्रह में भी पूजा जाता है| इन्हें “अंगारक” और “खुज” नाम से भी जाना जाता है| वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान मंगल धर्म के रक्षक होने के साथ-साथ शक्ति, वीरता और साहस के भी परिचायक हैं| इस मंदिर में मंगल को शिव के की रूप में पूजा जाता है| वैदिक ज्योतिष के अनुसार घर में कोई अनहोनी, अप्रिय घटना, कार्य में बाधा, संबंधों में तनाव, दंपत्ति की असामयिक मृत्यु, का कारण मांगलिक दोष होता है| ऐसे व्यक्ति ग्रह शांति के लिए यहां आकर पूजा अर्चना करवाते हैं| जिससे उनकी समस्याओं का समाधान हो सके यानी मंगल ग्रह का बुरा प्रभाव कम हो जाए और सकारात्मक विचारों का प्रवेश हो जाए| यहां मंगल ग्रह की शांति के लिए भात पूजा भी की जाती है| हर मंगलवार यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है| भक्तों के साथ-साथ यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटक भी सुबह शाम होने वाली आरती में भाग लेते हैं |अंगारक चतुर्थी के दिन मंगलनाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है| इस दिन यहां विशेष रूप से यज्ञ और हवन भी किए जाते हैं| इस दिन का विशेष फल प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं| कहा यह भी जाता है कि आरती के बाद प्रसाद के रूप में जो दाने यहां तोतों को डाले जाते हैं वह भगवान मंगल स्वयं ग्रहण करने आते हैं| माना जाता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में मंगलनाथ मंदिर से बढ़कर कोई और जगह है ही नहीं|

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कैसे पहुंचे

उज्जैन भारत के किसी भी शहर से रेल, सड़क या वायु मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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