पुत्र रत्न की प्राप्ति, संतान की मंगल-कामना का व्रत है छठ पूजा

-13 नवंबर को श्रद्धा-उल्लास से की जाएगी छठ पूजा
भारतीय संस्कृति में महिलाओं की ओर से अपने परिवार, अपने पति, अपनी संतान की मंगल-कामना के लिए हर राज्य में कुछ अलग विधि से व्रत रखने की परंपरा रही है। जिस तरह से करवा चौथ व्रत पति की दीर्धायू के लिए रखा जाता है। वहीं पंजाब व आस-पास के क्षेत्र में संतान की मंगल-कामना के लिए चक्री का व्रत रखा जाता है। वहीं पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में पुत्र रत्न की प्राप्ति व संतान की मंगल कामना के लिए दीपावली के छह दिनों बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष पर छठ पर्व का आयोजन किया जाता है। छठ पूजा हिंदूओं के प्रमुख पर्व के रुप में श्रद्धा व उल्लास से मनाया जाता है। छठ पूजा भगवान सूर्य देव व उनकी पत्नी उषा का आभार जताने के लिए की जाती है। इस साल यह व्रत 13 नवंबर मंगलवार को मनाया जाएगा।


लोक आस्था का पावन पर्व छठ पूजा…
भारत में सूर्योपासना करने के लिए मनाए जाने वाली छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में की जाने वाली छठ पूजा को चैती छठ व कार्तिक में की जाने वाली पूजा को कार्तिकी छठ पूजा कहा जाता है। परिवार सुख, पुत्र प्राप्ति और संतान की मंगल कामना के लिए रखे जाने वाले इस पर्व अनुसार महाभारत में जब पांडव जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। तो भघवान श्री कृष्ण की ओर से बताए जाने पर छठ पूजा का व्रत रख था। तब उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई। सूर्यदेव और छठी मैय्या का आपसी संबंध भाई-बहन का है।

भगवान जगननाथ मंदिर के अजूबों को क्यों नहीं समझ पाई साइंस ??

किस प्रकार मनाते हैं छठ पर्व….
यह पर्व भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बने चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है। दूसरे दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रत रखने वाले अन्न-जल त्याग कर शाम को खीर बनाकर, पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को दूध का अर्घ्य अर्पण किया जाता है। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण किया जाता हैं। जिन घरों में यह व्रत रखा जाता है। वहां लहसून, प्याज का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं लगातार 36 घंटे पानी भी नहीं ग्रहण नहीं करती हैं।
छठ व्रत
छठ व्रत करवा चौथ के व्रत की तरह ही एक कठिन व्रत है। छठी का व्रत अधिकतर महिलाएं ही रखती है। परंतु आज कल पुरुष भी इस व्रत को रखने लग गए हैं। क्यों कि छठ पूजा में चार दिनों तक लगातार उपवास करना होता है। घर में किसी भी सदस्य की मौत हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है। छठ पर्व का व्रत रखने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

यह भी पढ़ें…महाकाल से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है……??

संध्या अर्घ्य…
कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जबकि कुछ इलाकों में इसे टिकरी भी कहते हैं। इसमें चावल के लड्डू भी बनाए जाते हैं। चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फलों को छठ प्रसाद के रूप में शामिल किया जाता है। शाम के समय बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। परिवार तथा पड़ोस के सभी लोग सूर्य को अर्घ्य देने घाट पर जाते हैं। सभी छठ का व्रत रखने वाले एक साथ तालाब, झील या नदी किनारे एकत्रित होकर अर्घ्य दान करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देने की पंरपरा है। इस दौरान उत्सव सा माहौल बनता है।

यह भी पढ़ें…आखिर कौनसा जीपीएस था आर्यों के पास

सुबह का अर्घ्य
चौथे दिन व अंतिम दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सुबह के सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सभी व्रत रखने वाले पहुंचते है। बीती शाम को निभाई गई प्रक्रिया को दोहराया जाता है। सभी व्रत करने वाले पीपल के पेड़ का पूजन कर, कच्चे दूध का शरबत पीकर व प्रसाद ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करते हैं।

LEAVE A REPLY