देव भूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक स्थलों के कारण विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है। हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शहर कांगड़ा में स्थित ब्रजेश्वरी माता मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। इस स्थान पर मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। प्राचीन समय में कांगड़ा नगरकोट धाम के नाम से विख्यात था।
ब्रजेश्वरी माता मंदिर नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर धार्मिक स्थलों में अहम स्थान रखता है। 1009 ई. में महमूद गजनवी ने कांगड़ा शहर को लूटा था और मंदिर को नुकसान भी पहुंचाया था। इसके अलावा 1905 में आए जोरदार भूकंप के कारण यह मंदिर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। इसके बाद 1920 में इस मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया गया।
इसे भी पढ़ें…महर्षि मैत्रेय ने क्यों दिय़ा था दुर्योधन को श्राप
यहां गिरा था मां सती का पावन दाहिना वक्ष
मान्यता है कि मां सती ने पिता राजा दक्ष द्वारा किए गए यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे। भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के पावन शरीर को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। मां सती के पावन शरीर के अंग धरती पर जिस-जिस स्थान पर गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था । यह पावन स्थान बज्रेश्वरी धाम शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
मंदिर में तीन पावन पिंडियों की होती है पूजा
माता बज्रेश्वरी शक्तिपीठ से जुड़ी विशेष बात यह है कि इस पावन स्थल पर केवल हिंदू धर्म से संबंधित भक्त ही माता के दर्शनों के लिए नहीं आते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म से संबंध रखने वाले श्रद्धालु भी इस स्थान पर श्रद्धासुमन भेंट कर नतमस्तक होते हैं। बज्रेश्वरी देवी मंदिर में तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक माने जाते हैं। पहला मंदिर जैसी आकृति का गुबंद हिंदू धर्म का प्रतीक है, दूसरा मुस्लिम धर्म का प्रतीक है और तीसरा गुंबद सिख धर्म का प्रतीक माना जाता है। तीन धर्मों की आस्था के केन्द्र माता बज्रेश्वरी मंदिर में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित प्रथम और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी पिंडी मां भद्रकाली व तीसरी आकार में सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। मान्यता है कि मां के इस पावन दरबार में ही भक्त ध्यानु ने अपना शीश माता को अर्पित किया था। इसलिए मां के दर्शनों के लिए आने वाले वह श्रद्धालु जो भक्त ध्यानु को भी मानते हैं, वह श्रद्धालु पीले रंग के वस्त्र धारण करके मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए आते हैं।
इसे भी पढ़ें…इस गुफा में छिपा है प्रलय का राज़…स्कंद पुराण में है इस पावन गुफा का वर्णन
पांच बार है मां की आरती का विधान
बज्रेश्वरी माता के दरबार में पांच बार आरती होती है। सुबह के समय मंदिर के कपाट खुलते ही मां की शैय्या को उठाए जाने का विधान है। इसके बाद रात्रि श्रृंगार में ही माता की मंगला आरती होती है। इस आरती के बाद रात्रि श्रृंगार उतार दिया जाता है और मंदिर में सुशोभित पिंडियों का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के उपरांत फिर से पीले चंदन से माता का श्रृंगार किया जाता है और नए वस्त्र और सोने के आभूषण धारण करवाए जाते हैं। इसके बाद भोग लगाने पर प्रातः कालीन आरती सम्पूर्ण होती है। दोपहर की आरती के समय मां के दरबार के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस आरती के बाद दोबारा माता के भवन के कपाट खुलते हैं और भक्त माता के दर्शन करके माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। एक बार फिर से शाम के समय सूर्यास्त के बाद भी माता की आरती की जाती है इस दौरान पावन पिंडियों का पंचामृत से अभिषेक होता है। अभिषेक के उपरांत लाल चंदन से माता का श्र्ंगार किया जाता है और नए वस्त्र धारण करवाए जाते हैं। रात के समय पुजारी द्वारा शयन आरती की जाती है।
मंदिर में स्थापित है भगवान भैरव की अद्भुत मूर्ति
मंदिर में भगवान भैरव की अद्भुत मूर्ति स्थापित है। मान्यता है कि इस मूर्ति के द्वारा कांगड़ा शहर पर आने वाली बड़ी मुसीबत का आभास पहले ही हो जाता है। कहा जाता है कि कोई भी घटना घटित होने से पहले इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलना आरंभ हो जाता है। इसके बाद पुजारियों द्वारा विशेष पूजा व हवन करके माता से आने वाली समस्या को टालने व शहर की रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है और विश्वास है कि माता हर समस्या और आपदा से नगर की रक्षा करती है।
इसे भी पढ़ें…जानिए किस मंदिर में भगवान को लगाया जाता है ‘चाकलेट का भोग’
मंदिर तक कैसे पहुंचें
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शहर कांगड़ा की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 2350 फुट है। रेल मार्ग व सड़क मार्ग के अलावा हवाई मार्ग से भी कांगड़ा तक पहुंचा जा सकता है। कांगडा से तकरीबन सात किलोमीटर की दूरी पर गगल एयरपोर्ट है। पठानकोट से कांगडा की दूरी 90 किलोमीटर के करीब है। पठानकोट से जोगेंद्रनगर तक नैरोगेज रेल ट्रैक पर छोटी रेल गाड़ी चलती है इसके द्वारा भी कांगड़ा रेलवे स्टेशन तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा पंजाब से नंगल से उना होते हुए या पठानकोट अथवा अन्य सड़की मार्गों से भी कांगड़ा तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
धर्मेन्द्र संधू