चंडीगढ़, 2 नवंबर:
पंजाब का वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई) पड़ोसी राज्य हरियाणा और दिल्ली की तुलना में काफ़ी बेहतर है और इससे पंजाब पर पूरा दोष मढऩे के दोषों का पर्दाफाश हुआ है क्योंकि ज़मीनी हालात एक अलग ही कहानी बयान करते हैं।
इस सम्बन्धी जानकारी देते हुए एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि हाल के दिनों में विशेष तौर पर अक्तूबर से दिसंबर के महीनों के दौरान दिल्ली में प्रदूषण के लिए उत्तर भारत के राज्यों, खासकर पंजाब में धान की पराली जलाने को जि़म्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए यहाँ तथ्यों को समझने की ज़रूरत है।
प्रवक्ता ने आगे बताया कि पंजाब में 6 कंटीन्यूस ऐंबईऐंट एयर क्वालिटी मोनिटरिंग स्टेशंस (सीएएक्यूएमएस) स्थापित हैं जिनमें अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, खन्ना, मंडी गोबिन्दगढ़ और पटियाला में एक-एक स्टेशन स्थापित है। उन्होंने बताया कि इन आंकड़ों (औसतन आधार पर) की तुलना में दिल्ली के नज़दीक हरियाणा में गुरूग्राम, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद, रोहतक में यह स्टेशन स्थापित हैं और दिल्ली के स्टेशनों ने यह खुलासा किया है कि अगस्त और सितम्बर (2018-2020) के महीनों में, पंजाब का औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 से 87 के बीच रहा। जबकि दिल्ली में, उसी समय के दौरान औसतन ए.क्यू.आई 63 से 118 तक रहा। इसी समय दिल्ली (2019-2020) और फरीदाबाद के नज़दीक हरियाणा के स्टेशनों में, औसतन ए.क्यू.आई. 67 से 115 तक रहा। इसलिए अक्तूबर में धान के कटाई के सीजन के शुरू होने से पहले दिल्ली और हरियाणा का औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक क्रमवार 26-36 प्रतिशत और 32 – 34 प्रतिशत था, जो पंजाब की अपेक्षा ज़्यादा था।
अधिक जानकारी देते हुए प्रवक्ता ने ज़ोर देते हुए कहा कि अक्तूबर (2018 -2020) के महीने में कटाई शुरू होने और पराली जलाने के समय के दौरान पंजाब के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 116 से 153 तक रहा। उसी समय, दिल्ली (2019-2020) और फरीदाबाद (2020) के नज़दीक हरियाणा के स्थानों में औसतन ए.क्यू.आई. 203 से 245 तक रहा और इस समय के दौरान दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक 234 से 269 तक रहा। पंजाब के शहरों के वायु गुणवत्ता सूचकांक में 76 प्रतिशत विस्तार जबकि हरियाणा के शहरों और दिल्ली स्टेशनों के वायु गुणवत्ता सूचकांक में क्रमवार 107 प्रतिशत और 134 प्रतिशत का विस्तार देखा गया। इसके साथ ही इसी समय के दौरान हरियाणा का औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक 80-90 प्रतिशत रहा जो पंजाब से अधिक है जबकि दिल्ली का औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक 100 प्रतिशत से भी अधिक रहा।
प्रवक्ता ने और विवरण देते हुए कहा कि हरियाणा के शहरों और दिल्ली स्टेशनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक में वृद्धि की उच्च प्रतीशतता दर्शाती है कि हरियाणा और दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक स्थानीय कारणों के साथ-साथ एनसीआर में पराली जलाने के कारण प्रभावित होता है। इन स्थानीय कारणों में ट्रांसपोर्ट, उद्योग, पावर प्लांट, रिहायशी, सडक़ों की धूल, निर्माण कार्य, डी.जी. सैट्टस, कृषि अवशेष जलाना, श्मशान घाट, रैस्टोरैंट, हवाई अड्डे, कूड़ेदान, म्युंसिपल की कूड़े के साथ भरी ज़मीनों में आग लगाने की कार्यवाहियां आदि शामिल हैं। इसका पता इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि पंजाब में वायु गुणवत्ता सूचकांक पीएम2.5 के उच्च मूल्य के कारण है जबकि दिल्ली में आम तौर पर ए.क्यू.आई. पी.एम10 के उच्च मूल्य के कारण है। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि वैज्ञानिक तौर पर यह सिद्ध किया गया है कि पी.एम2.5 सैंकड़ो किलोमीटर का सफऱ कर सकते हैं जबकि पी.एम.10 आम तौर और बहुत कम दूरी तय करते हैं।
प्रवक्ता ने आगे कहा कि फसलों की कटाई और खुले मैदानों में गतिविधियों के कारण पंजाब के स्थानीय वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे सस्पैंडिड पार्टीकुलेट मैटर में विस्तार होता है। हालाँकि, राज्य सरकार इस दिशा में सभी ज़रूरी कदम उठा रही है। इसके साथ ही फ़सलीय विभिन्नता की लंबे समय की रणनीति पंजाब में अपनी जड़ें मज़बूत कर रही है जिसके अधीन 2019-20 और 2020-21 के दौरान ग़ैर-बासमती धान से वैकल्पिक फसलों जैसे कि कपास, मक्का और बासमती की काश्त अधीन 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल आया है। पंजाब सरकार धान की पराली के प्रबंधन के लिए किसानों और कस्टम हायरिंग सैंटरों को सुपर एस.एम.एस, हैप्पी सिडर, सुपर सिडर, ज़ीरो टिल ड्रिल, रोटावेटर, चौपर, मल्चर आदि मशीनें भी मुहैया करवा रही है। इसके अलावा सख़्ती के साथ लागूकरण के नतीजे के तौर पर पिछले साल के मुकाबले इस साल पराली जलाने के अधीन क्षेत्र में 5.26 प्रतिशत की कमी आई है।
-NAV GILL