नाग और गरुड़ दो भाईयों में क्यों और कैसे पैदा हुई दुश्मनी…

-माता के दासी बनने पर शुरु हुई थी भाइयों में दुश्मनी

प्रदीप शाही

भाइयों में प्यार की कहानियां अक्सर सुनने को मिलती हैं। परंतु नाग और गरुड़ दो भाईयों में प्यार के स्थान पर नफरत की कहानी कुछ विशेष हैं। दुश्मनी भी इतनी कि दोनों भाई एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए। आखिर क्या था वह कारण कि दो भाईयों नाग औऱ गरुड़ के मनों में आपस में नफरत की आग पैदा हो गई।

इसे भी देखें….विश्व का पहला मंदिर… जिसमें नाग शैय्या पर विराजमान है भागवान शिव

नाग और गरुड का कैसे हुआ जन्म

कहा जाता है कि महर्षि कश्यप की 13 पत्नियां थी, लेकिन महर्षि को कद्रू और विनिता से विशेष लगाव था। एक दिन महर्षि कश्यप बेहद प्रसन्न मुद्रा में विश्राम कर रहे थे। महर्षि को अत्यंत प्रसन्न जानकर कद्रू और विनिता दोनों पत्नियों ने सेवा करनी शुरु कर दी। उनके सेवाभाव से प्रसन्न हो कर महर्षि कश्यप ने कहा कि बताओ क्या चाहती हो। तो क्द्रू ने महर्षि से एक हजार पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा। परंतु विनिता ने कहा कि मुझे केवल एक पुत्र की चाहत है। परंतु वह कद्रू के एक हजार पुत्रों से अधिक बलशाली हो। दोनों की इच्छाओं को सुन कर महर्षि कश्यप ने कहा कि वह शीघ्र ही एक यज्ञ करने जा रहे हैं। इस यज्ञ के बाद तुम दोनों की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी।

इसे भी देखें…..नाग पंचमी पर खुलेंगे किस्मत के दरवाज़े…होगा काल सर्प दोष दूर कई पीढ़ियां होंगी सुरक्षित

यज्ञ के बाद कद्रू ने एक हजार अंडे और विनिता ने दो अंडे दिए। कुछ दिनों के बाद जब कद्रू ने अपने अंडों को फोड़ा, तो उसमें से काले नाग निकले। कद्रू अपने बच्चों को देख कर बेहद प्रसन्न हो गई। कद्रू ने विनिता से पूछा कि मेरे बच्चे कैसे हैं। तो विनिता ने बच्चों को देखकर अपनी खुशी का इजहार किया। तभी विनिता ने भी अपने एक अंडे को फोड़ डाला। अंडे में से एक अविकसित बच्चा अरुण बाहर आया। अरुण ने अंडे से बाहर आते ही कहा कि माता, तुमने अंडा फोड़ने में बहुत अधिक उतावलापन दिखाया। इसके दंड स्वरुप आपको कद्रू की दासी बन कर रहना पड़ेगा। अब यदि आपने दूसरे अंडे को भी निर्धारित समय से पहले फोड़ दिया तो यह दासता सारी आयु की हो जाएगी। इसलिए आप इस अंडे को अपने आप ही फूटने देना। इस अंडे से उत्पन्न बालक ही आपको दासी के इस चक्र से मुक्त करवाएगा। निर्धारित समय पर अंडा फूटा। तो उसमें एक गरुड निकला।

इसे भी देखें….सदियों से झील में दबे खजाने की नाग देवता कर रहे हैं रक्षा

विनिता कैसे बनी कद्रू की दासी

एक दिन की बात कद्रू और विनिता सैर करने के लिए निकली। सैर के दौरान दोनों की नजर एक उच्चेश्रवा नामक घोड़े पर पड़ी। शाम का समय़ था घोड़ा काफी दूरी से जा रहा था। तभी विनिता ने कद्रू से कहा कि देखो सफेद घोड़ा। जो सर से लेकर पूंछ तक पूरा सफेद है। तब कद्रू ने कहा कि आपने ध्यान से नहीं देखा। इस घोड़े की पूंछ काली है। इस बात पर दोनों में झगड़ा बढ़ गया। दोनों में शर्त लगी कि जिसकी बात भी गलत होगी। वह दूसरे की दासी बनेगी। आखिर इस झगड़े का समाधान अगले दिन पर रखा गया। रात को कद्रू ने अपने बच्चों से कहा कि वह सभी उस घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं। ताकि पूंछ काली दिखे। कद्रू ने ऐसा ही किया। इस तरह विनिता छल से शर्त हार गई। और उन्हें कद्रू की दासी बनना पड़ा।

इसे भी देखें….विश्व का एकमात्र पंचमुखी मंदिर है पशुपति नाथ पर…

अपनी माता को दासता से मुक्त करवाने पहुंचे गरुड़

अपनी माता विनिता के छल से दासी बनने पर गरुड़, कद्रू के पास पहुंचे। और अपनी माता को दासता से मुक्त करने की प्रार्थना की। परंतु कद्रू ने गरुड़ से विनिता को मुक्त करने के लिए स्वर्ग लोक से अमृत कलश लाने की शर्त रख दी। गरुड़ अपनी माता विनिता को मुक्त करवाने के लिए स्वर्ग लोक से अमृत कलश लाने पहुंच गए। वहां पर उन्होंने अमृत कलश की सुरक्षा में देवों व सुदर्शन चक्र को देखा। तब उन्होंने अपने आकार को छोटा कर कलश को चुरा लिया। जब देवराज इंद्र को इस सारी घटना का पता चला तो उन्होंने गरुड़ पर वज्र का प्रहार किया। परंतु गरुड़ को वज्र से किसी भी तरह की कोई भी क्षति नहीं हुई। तब देवराज इंद्र ने गरुड़ से दोस्ती करने में ही अपना हित सोचा।

इसे भी देखें….ये सच है!!! शेषनाग के फन पर टिकी धरती का

तब देवराज इंद्र ने गरुड़ से अमृत कलश चुराने की उद्देश्य पूछा। गरुड़ ने सारी घटना से देवराज इंद्र को अवगत करवा दिया। तब देवराज इंद्र ने गरुड़ से कहा कि तुम कलश ले जाओ। पर कद्रू से सुबह तक अमृत न पीने की शर्त रखना। वह रात के समय कलश को वहां से हटा देंगे। तुम कलश देकर अपनी माता को मुक्त करवा लेना। कद्रू ने गरुड़ की शर्त को स्वीकार कर कलश ले लिया। गरुड़ ने देवराज इंद्र की बात को स्वीकार कर अपना वचन निभाया।  वहीं देवराज इंद्र ने मौका देखकर अमृत कलश को वहां से हटा लिया। वचन निभाने पर देवराज इंद्र ने गरुड़ को अमरता का वरदान दिया।

इसे भी देखें….यहाँ होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा…नाम मिला अर्धकाशी

सुबह जब कद्रू और उनके एक हजार बेटे अमृत कलश में से अमृत पीने पहुंचे। तो वहां पर कलश को न पा कर वहां की घास को ही चाटने लग गए। कुशा को चाटने की वजह से उनकी जीभ दो हिस्सों मे विभाजित हो गई। औऱ तभी गरुड़ ने मौका देख कर सभी नागों को खा लिया। क्योंकि इन नागों के कारण ही उसकी माता विनिता को दासता मिली थी। इसलिए आज भी नाग और गरुड़ में दुश्मनी साफ तौर से देखी जा सकती है।

इसे भी देखें…..कौन से हैं भारत के सबसे अमीर मंदिर ??

LEAVE A REPLY