भारतीय पूजा पद्धति में हर वस्तु का अपना एक अलग महत्व है। खासकर नवरात्र में अखंड ज्योति प्रज्जवलित करने और खेतरी यानि जौ बीजने का खास महत्व है। इसके पीछे कुछ परंपराएं व मान्यताएं हैं जो भारतीय आस्था का प्रतीक हैं।
क्यों जलाई जाती है अखंड ज्योति ?
नवरात्र के पावन पर्व पर मां आदि शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मां की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नौ दिन तक लगातार दिन-रात अखंड ज्योति जलाई जाती है। किन्तु शास्त्रों के अनुसार ज्योति जलाने के नियमों का पालन न किया जाए और ज्योति की अखंडता भंग हो जाए तो साधक को लाभ की बजाय नुकसान भी हो सकता है।
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अखंड ज्योति जलाने के नियम
शास्त्रों के अनुसार अखंड ज्योति संकल्प अवधि तक खंडित नहीं होनी चाहिए। तेल व घी की कमी के कारण ज्योति व दीपक का बुझना अशुभ माना जाता है। संकल्प पूरा होने के बाद भी दीपक में जब तक तेल है, इसे जलता रहने देना चाहिए। अगर साधक को इन नियमों का पालन करने में कठिनाई हो तब संकल्प के बिना ही दीपक जलाना चाहिए।
अखंड ज्योति का महत्व
अखंड ज्योति या दीपक साधक की अखंड श्रद्धा व भक्ति का प्रतीक माना जाता है। अखंड ज्योति इस लिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी एक छोटा सा दीपक अपनी रोशनी से अंधेरे को दूर कर देता है, उसी प्रकार हम भी माता के प्रति अपनी भक्ति तथा श्रद्धा से जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार अग्नि या दीपक के सामने किए गए जप का हज़ार गुणा अधिक फल प्राप्त होता है।
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अखंड ज्योति जलाने की विधि
अखंड ज्योति जलाने वाले स्थान पर लाल या पीले चावलों से अष्टदल बनाएं और इस अष्टदल के ऊपर दीपक को रखें। लोगों का मानना है कि अखंड ज्योति केवल पीतल के पात्र में ही जलाई जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है पीतल को शुद्ध धातु माना जाता है इसलिए पीतल के पात्र में ज्योति प्रज्जवलित करने का विधान है। पीतल के अलावा मिट्टी का दीपक भी जलाया जा सकता है।
घी या तिल के तेल का करें प्रयोग
ज्योति जलाने के लिए गाय के दूध से बने देसी घी या तिल के तेल का प्रयोग किया जा सकता है। मान्यता है कि घी के दीपक को देवी मां के दाहिनी ओर रखा जाता है और तेल के दीपक को बाईं ओर रखा जाता है।
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क्यों बीजे जाते हैं जौ ?
नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ ही जौ भी बीजे जाते हैं। इन्हें कुछ लोगों के द्वारा अष्टमी और कुछ लोगों के द्वारा नवमीं के दिन विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि नवरात्र पूजन के नौ दिनों में उगने वाले जौ घर-गृहस्थी में अगले छः महीने तक आने वाली परिस्थितियों के सूचक बनते हैं। माना जाता है कि 2 या 3 दिन में अंकुरित होने वाले जौ श्रेष्ठ फल देने वाले होते हैं। जबकि देर से उगने वाले जौ इस ओर संकेत करते हैं कि आने वाले समय में व्यक्ति को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। और साथ ही मेहनत करने पर भी उसका फल देर से मिलेगा। जौ की खेतरी का हरा-भरा होना इस बात का प्रतीक है कि जीवन भी हरा-भरा रहेगा और मां दुर्गा की कृपा भी बनी रहेगी । इसके अलावा अगर जौ नहीं उगते या भूरे रंग के उगते हैं या फिर ऊपर के भाग से टेढे मेढे हो तो इसका अर्थ माना जाता है कि परिवार को अशांति, कलह या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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खेतरी के विसर्जन से पहले किया जाता है पूजन
खेतरी का विसर्जन करने से पहले दुर्गा माता व खेतरी का पूजन करना चाहिए। अगर आप मंत्रों का उच्चारण और पूजन की सम्पूर्ण विधि नहीं जानते तो सच्चे मन व निर्मल भाव से देवी मां को नारियल और चुनरी जरूर अर्पित करें और पूजन में हुई भूल-चूक की क्षमा मांग लें। क्योंकि माता रानी अपने भक्तों की समस्त भूलों को क्षमा करने वाली है। इसके बाद बहते हुए साफ जल में इस खेतरी को विसर्जित कर दें।
सपना (डा.)