-नियोग विधि से होता था बच्चे का जन्म
हमारी मौजूदा साइंस को आज बेहद उन्नत माना जा रहा है। परंतु यदि सही अर्थों में कहा जाए तो हमारी प्राचीन सभ्यता में साइंस अधिक उन्नत कही जा सकती है। 21वीं सदी में प्रवेश करने के बाद आज हम टेस्ट टयूब बेबी से बच्चे को जन्म दे रहे हैं। पंरतु प्राचीन समय में कई पात्र ऐसे भी हैं, जिनके जन्म के बारे आज भी साइंस कोई जवाब नहीं दे सकती है। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि में कई ऐसे पात्रों का उल्लेख हैं, जिनका जन्म माता और पिता के मिलन से नहीं हुआ। बल्कि यह पात्र देवी देवताओं या फिर साधु महात्माओं के आशीर्वाद के इस धरती पर आए। क्या आप जानते हैं कि महाभारत में धृतराष्ट्र, पाण्डु, महात्मा विदुर का जन्म भी अनोखे ढंग से हुआ। इस अनोखे ढंग से होने वाले बच्चे के जन्म को नियोग विधि कहा जाता है। इन तीन प्रमुख पात्रों के जन्म की कहानी आपको देते हैं।
धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर का जन्म…..
महाभारत काल में हस्तिनापुर नरेश शांतनू और रानी सत्यवती के दो बेटे चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। शांतनू का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया। इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म पितामह ने किया। भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी सौप दी, लेकिन वह एक युद्ध में मारे गए। तब भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिंता हुई। इसी दौरान भीष्म को काशीराज की तीन बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका के स्वयंवर की जानकारी मिली। स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहां आये समस्त राजाओं को परास्त कर तीनों लड़कियों का हरण कर के हस्तिनापुर ले आये। अंबा ने भीष्म को बताया कि वह अपना राजा शाल्व के प्रति समर्पित हैं। यह सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया। जबकि अंबिका व अंबालिका का विवाह विचित्रवीर्य संग कर दिया।
राजा शाल्व ने अंबा को स्वीकार नहीं किया, ऐसे में अंबा हस्तिनापुर लौट कर भीष्म से बोली हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये थे. ऐसे में अब आप मुझसे विवाह करें। पंरतु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा बता कर उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो भगवान परशुराम पास गई और उन्हें सारी कहानी सुनाई। भगवान परशुराम ने अंबा से कहा कि वह उनका विवाह भीष्म से करवाएं। भगवान परशुराम गुस्से में भीष्म के पास पहुंचे। दोनों में भयानक युद्ध छिड़ गया। तब देवताओं ने हस्तक्षेप कर के इस युद्ध को बंद करवाया। अंबा निराश हो कर वन में तपस्या करने चली गई।
वहीं दूसरी तरफ विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के खुशी से जीवन व्यतीत करने लगे। परंतु उनकी दोनों रानियों से कोई संतान नहीं हुई। इसी दौरान वितित्रवीर्य क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से संतान उत्पन्न करो। परंतु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा बता इस मांग को ठुकरा दिया।
माता सत्यवती ने अपने बड़े वेदव्यास से इस समस्या का समाधान करने के लिए नियोग विधि से विचित्रवीर्य की पत्नियों से संतान उत्पन्न करने को कहा। वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले माता, आप दोनों रानियों से कहें कि वह वो मेरे सामने से निवस्त्र होकर गुजरें। जिससे उनको गर्भ धारण होगा। पहले बड़ी रानी अंबिका फिर छोटी रानी छोटी रानी अंबालिका गई। अंबिका ऋषि वेदव्यास के तेज से डर कर अपने नेत्र बंद कर लिए। जबकि अंबालिका ऋषि वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। इस विधि के पूरा होने पर ऋषि वेदव्यास वापिस लौटने से पहले बोले माता अंबिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा। किंतु रानी के नेत्र बंद करने के चलते वह बच्चा नेत्रहीन होगा। जबकि अंबालिका के गर्भ से पैदा होने वाला बच्चा रोग से ग्रसित होगा। यह सुन माता सत्यवती ने एक बार फिर बड़ी रानी अंबिका को दोबारा वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। तब अंबिका ने अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजर गई।
तब ऋषि वेदव्यास ने कहा कि माता इस दासी के गर्भ से वेदों व नीति के ज्ञाता पुत्र का जन्म होगा। यह कह ऋषि वेदव्यास तपस्या पर चले गये। समय आने पर अंबिका के गर्भ से नेत्रहीन धृतराष्ट्र, अंबालिका के गर्भ से रोग ग्रसित पांडू और दासी के गर्भ से महात्मा विदुर का जन्म हुआ।
क्या नियोग विधि के निय़म….
कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी, न कि आनंद के लिए। इस दौरान महिला व पुरुष के मन में केवल धर्म की भावना ही होनी चाहिए। किसी तरह की वासना का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस विधि को निभाएगा।
इस प्रथा से जन्म लेने वाला बच्चा वैध होगा। यह बच्चा उस नियुक्त पुरुष का नहीं माना जाएगा। साथ ही इस बच्चे से कोई भी संबंध नहीं रखेगा।
इस प्रथा का दुरुपयोग न हो, इसलिए नियुक्त पुरुष जीवन में केवल तीन बार ही नियोग का पालन कर सकता है।
नियोग के दौरान महिला के शरीर पर घी का लेप किया जाता है। ताकि पत्नी व नियुक्त पुरुष के मन में कोई बुरी भावना पैदा न हो।
प्रदीप शाही