देवों के देव भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। पूरे भारत में भगवान शिव को समर्पित मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों में विराजमान भोलेनाथ शिवलिंग रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। आज हम आपको एक ऐसे प्राचीन शिव मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताएंगे। जिसका संबंध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। औघड़नाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह प्राचीन शिव मंदिर मेरठ में स्थित है।
इसे भी पढ़ें…यहां हनुमान जी की नाभि से निकलता है चमत्कारिक जल… होता है रोगों का इलाज
काली पल्टन के नाम से भी है विख्यात
प्राचीन औघड़नाथ मंदिर ‘काली पल्टन’ के नाम से भी विख्यात है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। औघड़नाथ मंदिर मेरठ के छावनी क्षेत्र में स्थित है। मंदिर की स्थापना कब हुई इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन जिस प्रकार इस मंदिर का संबंध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साथ जोड़ा जाता है, उस आधार पर माना जाता है कि यह प्राचीन मंदिर सन् 1857 से पहले भी विद्यमान था। इतिहासकारों के अनुसार 1944 तक यह मंदिर एक छोटे शिव मंदिर और कुएं के रूप में था। धीरे-धीरे इस स्थान की लोकप्रियता दूर-दूर तक पहुंचनी शुरू हुई, बाद में साल 1968 में शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम जी महाराज द्वारा इसके पुराने स्वरूप में बदलाव किया गया। मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है।
मंदिर का वास्तु शिल्प
इस प्राचीन मंदिर में औघड़दानी शिव के मनोहारी नटराज स्वरूप के दर्शन भी होते हैं। इसी कारण इस मंदिर को औघड़नाथ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मन्दिर के गर्भगृह में भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के नीचे शिव परिवार और स्वंयभू शिवलिंग के दर्शन होते हैं। मंदिर के बाहर नंदी जी विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का श्रृंगार करवाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके लिए भक्तों को काफी समय तक इंतज़ार करना पड़ता है। कई बार तो श्रृंगार करवाने का यह शुभ अवसर पाने के लिए दो साल तक की एडवांस बुकिंग चलती है। इसके अलावा यहां पर राधा-कृष्ण का मंदिर भी मौजूद है, जिसका शिखर मुख्य मंदिर से भी ऊंचा है।
इसे भी पढ़ें…एक ऐसा मंदिर जहां आज भी कैद में है देवी….
इस मंदिर में हुई थी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत
प्रसिद्ध व प्राचीन औघड़नाथ शिव मंदिर से जुड़ा एक महत्वपूर्ण तथ्य बहुत कम लोगों को पता है। वह यह है कि इसी मंदिर से ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ हुआ था। भारतीय इतिहास के अनुसार अंग्रेज सरकार द्वारा सिपाहियों को बंदूक के ऐसे कारतूस दिए गए थे, जिनका इस्तेमाल करने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था। औघड़नाथ शिव मंदिर में स्थित कुएं पर सेना के जवान आकर पानी पीते थे। इन कारतूसों के उपयोग के बाद मंदिर के पुजारी ने उन सिपाहियों को इस कुएं से पानी पिलाने से मना कर दिया। और कहा जाता है कि पुजारी के मना करने के बाद ही सेना के जवानों ने उत्तेजित होकर 10 मई 1857 को यहां क्रांति का बिगुल बजाते हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की। इस ऐतिहासिक कुएं पर आज भी बांग्लादेश के विजेता तत्कालीन मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा स्थापित किया गया शहीद स्मारक मौजूद है।
मंदिर के साथ एक अन्य कथा भी जुड़ी है। कहा जाता है कि मंदिर में बने कुएं के पास आज़ादी से पहले एक बाबा बैठते थे जो लोगों को पानी पिलाया करते थे और साथ ही लोगों में क्रांति की भावना भी जगाते थे। यह भी कहा जाता है कि सिपाहियों को गाय की चर्बी वाले कारतूसों के बारे में भी इसी बाबा ने ही बताया था।
इसे भी पढ़ें…अदभुत् और अविश्वसनीय…. इस ‘दुर्गा मंदिर’ में नहीं होती मां दुर्गा की पूजा
अंग्रेजों ने यहां बनाया था ट्रेनिंग सेंटर
इस मंदिर के आसपास के शांत वातावरण और गोपनीयता के चलते ही अंग्रेजों ने इस स्थान पर अपना आर्मी ट्रेनिंग सेंटर बनाया था। इसी स्थान पर अनेक स्वतंत्रता सेनानी आकर ठहरा करते थे। यही वह ऐतिहासिक स्थान है जहां पर भारतीय पल्टनों के अधिकारियों से स्वतंत्रता सेनानियों की गुप्त बैठकें होती थीं। इनमें हाथी वाले बाबा का नाम प्रमुख है।
वीर मराठाओं का था पूजा स्थल
इसी मंदिर में वीर मराठा भी पूजा-पाठ किया करते थे। कहा जाता है कि प्रमुख पेशवा अपनी विजय यात्रा पर निकलने से पहले इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना करते थे। उनका विश्वास था कि यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने से भगवान शिव उनकी हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। और यह भी कहा जाता है उनकी मनोकामना पूर्ण भी होती थी। आज भी लोग दूर-दूर से औघड़नाथ शिव मंदिर में अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। वैसे तो इस मंदिर में पूरा साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं लेकिन फाल्गुन और सावन के महीने में भक्तों का तांता लग जाता है। श्रावण और फाल्गुन महीने में शिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में शिवभक्त कांवड़ चढ़ाने पहुंचते हैं।
धर्मेन्द्र संधू