–“भगवान अग्नि देव की पत्नी हैं स्वाहा”
-“स्वाहा” का उच्चारण है अनुष्ठान की महत्वपूर्ण क्रिया
किसी भी हवन यज्ञ, अनुष्ठान के दौरान मंत्रोच्चारण के बाद अग्नि में आहूति अर्पित करने के अंत में स्वाहा शब्द का उच्चारण किए जाने की परंपरा है। आखिर क्यों स्वाहा शब्द का ही उच्चारण किया जाता है। बेहद कम लोग जानते होंगे कि स्वाहा भगवान अग्नि देव की पत्नी है। स्वाहा का उच्चारण किए जाने के बिना देवता भी यज्ञ में अर्पित की गई आहूति को स्वीकार नहीं करते हैं।
परम पिता परमात्मा, त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णू, महेश के अलावा समस्त देवी देवताओं की अराधना करने के लिए वैदिक यज्ञ की परंपरा भारतीय सनातन संस्कृति में प्रधान है। हवन यज्ञ के माध्यम से हविष्य (वह वस्तु जो किसी देवता के निमित्त अग्नि में डाली जाती है। जिसकी आहुति दी जाती है) को देवी देवताओं तक पहुंचाने के लिए अग्नि का प्रयोग किए जाने की परंपरा शुरु की गई थी। देवताओं ने यज्ञ को, किसी भी अनुष्ठान को सफल बनाने की प्रमुख जिम्मेवारी भगवान अग्नि देव की पत्नी स्वाहा को सर्वप्रथम प्रदान की। उस समय से देवता भी “स्वाहा” से पहले किसी भी यज्ञ, किसी अनुष्ठान की आहूति को स्वीकार नहीं करते हैं। “स्वाहा” के उच्चारण को यज्ञ, अनुष्ठान की महत्वपूर्ण क्रिया स्वीकार किया गया।
भगवान अग्नि देव को मिला हविष्य वाहक का दर्जा
मंत्र विधानों की संरचना के समय से ही इस पर विचार किया गया कि आखिर कैसे हविष्य को अपने-अपने इष्ट देव तक पहुंचाया जा सके। आखिरकार भगवान अग्नि को ही हविष्य अर्पित करने में सभी देवी देवताओं में से उपयुक्त माना गया। तभी से भगवान अग्नि देव को हविष्य वाहक के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
आखिर कौन है स्वाहा ?
श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित कई वर्णन आए हैं। भगवान श्री विष्णू हरि के परमावतार श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। जबकि ऋग्वेद, यजुर्वेद वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्व पर अनेक रचनाएं संकलित है। पौराणिक कथा अनुसार स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। जिनका विवाह अग्नि देव के साथ हुआ था। इनके पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। एक अन्य मान्यता अनुसार स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी। जिसका विवाह अग्नि देव के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ। सनातन संस्कृति में स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में उच्च दर्जा मिला है। यह परंपरा देवी देवताओं में भी रही। देवताओं को आहूति पहुंचाने के लिए अग्नि देव का उपयुक्त माना गया, तब अग्नि देव की पत्नी स्वाहा के माध्यम से यज्ञ व अनुष्ठान को पूर्ण करने का आशीर्वाद प्रदान किया। एक अन्य वर्णन अनुसार देवताओं के पास खाने की कमी हो गयी। सभी देवता इस समस्या के समाधान के लिए भगवान ब्रह्मा के पास प्रार्थना करने पहुंचे। भगवान ब्रह्मा ने मूल प्रकृति पर जा कर ध्यान किया। जिससे प्रसन्न हो कर देवी ब्रह्मा के सामने प्रकट हुई। देवी ने वरदान मांगने के लिए कहा। तब भगवान ब्रह्मा ने देवी से अग्नि देव से शादी करने के लिए कहा। ताकि यज्ञ दौरान अग्नि को चढाई जाने वाली सामग्री देवताओं तक पहुंच सके। तब भगवान ब्रह्मा ने कहा कि यज्ञ में चढ़ाई गयी सामग्री तब तक देवतों तक नहीं पहुंचेगी। जब तक स्वाहा देवी का उच्चारण नहीं किया जाएगा। तब देवी स्वाहा ने अग्नि से विवाह कर लिया। इसके लिए अग्नि को सामग्री को जलने की शक्ति यानी दहन शक्ति उनकी पत्नी स्वाहा से प्राप्त होती है। इसीलिए यज्ञ में स्वाहा शब्द का मंत्र के उच्चारण के सबसे बाद में किया जाता है।
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क्या है स्वाहा का अर्थ ?
‘स्वाहा’ का अर्थ है त्याग और समर्पण भाव से प्रदान करना माना गया है। स्वाहा के उच्चारण मात्र से ही अहंकार समाप्त हो जाता है। विद्वानों अनुसार सु+आह=स्वाहा= मीठा बोलो। हमेशा सत्य बोलो। जो मन में हो उसे ही बोलो। समपर्ण की भावना से कर्म करे। इस उच्चारण से काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, राग-द्वेष, बदले की भावना का अंत होता है। मंत्रोच्चारण कर शुद्ध घी, सामग्री की आहुति के अंत में ‘स्वाहा’ उच्चारण किया जाता है। हर मनुष्य को कम से कम सोलह आहुतियां जरुर प्रदान करनी चाहिए।
इन मंत्रों का उच्चारण बेहद लाभदायक
किसी भी यज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र (ॐ भूभुर्वः स्वः| तत्सवितुर्व-रेणयं भर्गो देवस्य धीमहि| धियो यो नः प्रचोदयात्||) और ‘ॐ विश्वानि देव सवित्दुर्रितानि परा सुव| यद् भद्रं तन्न आ सुव||’ का उच्चारण बेहद लाभदायक होता है। हवन सामग्री को अनामिका (हाथ की दूसरी उंगली जिसमें अंगूठी पहनते हैं), मध्यमा (हाथ की लंबी उंगली) और (अँगूठे) से पकड़ना चाहिए।
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यज्ञ के माध्यम से ग्रहण करते हैं देवता पंसदीदा भोजन
यज्ञ, अनुष्ठान प्रयोजन तभी पूरा होता है। जबकि आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग मिल जाए। हविष्य में मीठे पदार्थ का शामिल होना अनिवार्य है। देवता स्वाहा के माध्यम से अपने पंसदीदा भोग को ग्रहण करते हैं। वैदिक व पौराणिक विधान अनुसार भगवान अग्नि देव को मंत्रोच्चारण कर स्वाहा के माधय्म से हविष्य सामग्री को देवताओं तक पहुंचने की पुष्टि होती है।
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अग्नि, स्वाहा सभी आहूतियों को नहीं करते स्वीकार
कहा जाता है कि किसी भी यज्ञ व अनुष्ठान के दौरान सभी आहूतियों हविष्य को भगवान अग्नि देव व उनकी स्वाहा स्वीकार नहीं करती है। क्योंकि हविष्य का बड़ा भाग हवन कुंड से बाहर गिर जाता है। जो भाग यज्ञ कुंड से बाहर गिर जाता है। वह भाग राक्षसों से हिस्से में जाता है। एेसे में यज्ञ के दौरान अपने ईष्ट को अर्पित किए जाने वाले हविष्य को पूर्ण श्रद्धा से अर्पित करना चाहिए।
कुमार प्रदीप