समस्त विश्व को दीपोत्सव एवं धन्वंतरी प्रगट दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
लौटें अपनी सनातन परम्पराओ की ओर…..
सोना,चांदी,बर्तन,खरीदने का ही नहीं, आरोग्य और चरित्र अपनाने का उत्सव है धनतेरस।
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दीपावली सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आतंरिक प्रकाश को जगाने का पर्व है।
इसकी शुरुआत हो जाती है, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से, जिसे कि धनत्रयोदशी और धनतेरस भी कहते हैं।
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आयुर्वेद और अमरता के वरदायी देव भगवान धन्वन्तरि इस उत्सव के अधिष्ठाता देव हैं। उनके नाम की शुरुआत में धन शब्द होने से यह पर्व केवल धन को समर्पित रह गया है।
संस्कृत भाषा में एक सूक्ति है –
शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्।
यानी कि शरीर ही सभी प्रकार के धर्म करने का माध्यम है।
इसी बात को और अधिक विस्तार तरीके से समझाते हुए एक श्लोक में कहा गया है कि यदि धन चला गया तो समझिए कि कुछ नहीं गया, यदि स्वास्थ्य चला गया तो समझिए कि आधा धन चला गया, लेकिन अगर धर्म और चरित्र चला गया तो समझिए सबकुछ चला गया।
यानी कि भारतीय मनीषा, सृष्टि के निर्माण के साथ ही मनुष्य जीवन के लिए उन्नत तरीकों और विचारों को बहुत पहले ही स्थापित कर चुकी थी।
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समय-समय पर इन्हीं विचारों को याद दिलाने और समाज में इनकी स्थापना बनाए रखने के लिए त्योहारों-पर्वों की परंपरा विकसित की गई।इन्हीं परंपराओं का सबसे बड़ा केंद्र है, दीपावली प्रकाश का पर्व।
भारतीय समाज विडंबनाओं में जी रहा है-
पिछले कुछ तीन दशकों में भारतीय समाज की विडंबना रही है कि हम तेजी से बाजार की जकड़ में आए हैं। ऐसे में धनतेरस के शुभलक्षणों का पर्व केवल धन-संपत्ति को समर्पित पर्व रह गया है।
इसके साथ ही विभिन्न आभूषण निर्माता कंपनियां लुभावने विज्ञापनों के जरिए यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि धनतेरस का अर्थ केवल उनके ब्रांड का आभूषण उत्पाद खरीदना है।
जबकि धनतेरस का महत्व इससे कहीं अधिक का है।
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सागर मंथन से निकले भगवान धन्वन्तरि:-
दरअसल, पौराणिक आधार पर मानें तो समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर निकले भगवान धन्वन्तरि ने अमरता की विद्या से आयुर्वेद को पुनर्जीवन प्रदान किया और देवताओं के वैद्य कहलाए।
भगवान विष्णु का अवतार माने जाने की वजह से उनकी गणना अवतारी व्यक्तित्वों में भी होती है।
उन्होंने आरोग्य के महत्व को परिभाषित किया और इस तरह की जीवन शैली का निर्माण किया जिससे जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य निरोगी काया के साथ रह सकता है.
यही आरोग्य का धन सबसे बड़ा धन है।
आरोग्य का लीजिए लाभ:-
कार्तिक त्रयोदशी के दिन समुद्र से उत्पन्न होने के कारण इसी दिन धनतेरस का उत्सव मनाया जाता है।
इस उत्सव का पहला उद्देश्य़ आरोग्य लाभ ही है।
धन्वन्तरि विद्या के अनुसार ऋतु के अनुसार भोजन, शाक, रस आदि ग्रहण करना चाहिए। व्यायाम करना चाहिए और सबसे जरूरी बात समय पर सोना और जागना, यही सबसे बड़ा धन है।
धर्म और चरित्र है सबसे बड़ा धन:-
इसके बाद सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य, चरित्र और धर्म है।
धर्म का अर्थ है धारण करने योग्य तत्व।
मनुस्मृति में धर्म की व्य़ाख्या करते हुए इसके दस लक्षण बताए गए हैं।
महाराज मनु ने लिखा,
धृति क्षमादमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः,
धीर्विद्या सत्यं क्रोधो, दशकं धर्म लक्षणम् ।
अर्थात धैर्य, क्षमा, चोरी न करना, शुचिता बनाए रखना, इन्द्रियों पर नियंत्रण, जुटा-जुटा कर न रखना, विद्या लेना, सत्य बोलना, क्रोध न करना और चरित्र धर्म के लक्षण हैं।
इनमें से अगर आप किसी एक से भी चुके तो आप धर्म से विमुख हो गए।
यह हानि धर्म धन की हानि कहलाती है।
एक श्लोक में लिखा गया है।
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः !
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!
जो निम्न श्रेणी के लोग होते हैं, उन्हें सिर्फ धन की इच्छा होती है। मध्यम श्रेणी के लोग मान और धन दोनों चाहते हैं।
लेकिन उत्तम श्रेणी के लोग सम्मान ही चाहते हैं। सम्मान ही सबसे बड़ा धन है।
यह बेहद सरल सी बात है कि जो व्यक्ति रोगी न हो, उत्तम चरित्र वाला हो, खुले विचारों का हो और विद्वान हो और फिर धनवान भी हो तो उसका मान-सम्मान का धन अपने आप बढ़ता है
* ऐसा नहीं है कि धन का महत्व है नहीं है, भौतिक धन का भी अधिक महत्व है। लेकिन धन्वन्तरि विद्या के अनुसार केवल नीतिगत और धर्मार्थ अर्जित किया गया धन ही पवित्र है।
जीवन के चार उद्देश्य धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष बताए गए हैं. इसमें धन का उपार्जन आवश्य क्रिया है।
पंचतंत्र में लिखा है:-
अशनादिन्द्रियाणीव स्युः कार्याण्यखिलान्यपि।
एतस्मात्कारणाद्वित्तं सर्वसाधनमुच्यते।।
भोजन का जो संबंध इंद्रियों के पोषण से है वही संबंध धन का समस्त कार्यों के संपादन से है।इसलिए धन को सभी उद्येश्यों की प्राप्ति अथवा कर्मों को पूरा करने का साधन कहा गया है।
*इस बार धनतेरस के महत्वपूर्ण अवसर को सिर्फ सोना-चांदी खरीदने में खर्च मत कर दीजिए। बल्कि इसे आरोग्य की ओर बढ़ने का अवसर बनाइए।
सोने-चांदी और पीतल-लौह आदि जैसे खनिज और धातुएं हमें वनस्पतियों के सेवन से भी मिलती हैं। शरीर को इनकी भी जरूरत है।
धनतेरस का यह पर्व Corona जैसी अत्यंत षडयंत्र कारी बीमारी के इस संकट से उबारने में भी सहायक सिद्ध होगा।