दानवीर कर्ण की मौत का कारण बने थे यह दो श्राप …

-झूठ बोल कर भगवान परशुराम जी से हासिल की थी शस्त्र विद्या
इंसान के जीवन में किसी भी कारण मिले श्राप का असर जरुर दिखाई देता है। चाहे उसका असर तुरंत दिखाई दे जाए। या फिर कुछ अंतराल के बाद। श्राप कभी भी विफल नहीं जाता है। महाभारत काल में भी दानवीर कर्ण की मौत के कारण उन्हें जीवन में मिले दो श्राप थे। पहला श्राप उन्हें झूठ बोलकर भगवान परशुराम जी से बोल कर शस्त्र विद्या हासिल करने पर मिला था। जबकि दूसरा श्राप एक गाय की हत्या करने पर गाय के मालिक द्वारा दिया गया था। आईए, आज आपको इन दोनों श्राप के बारे विस्तार से बताते हैं। क्या थे यह श्राप। आखिर क्यों दानवीर कर्ण को यह दो श्राप मिले थे।

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भगवान परशुराम से कर्ण ने झूठ बोल हासिल की विद्या
यह पूर्णतौर से सत्य है कि झूठ बोल कर कई बार कुछ भी हासिल किया गया। परंतु यह सफलता कभी भी स्थायी नहीं हो सकती है। उसके दूरगामी परिणाम हमेशा ही नुकसान दायक ही होते हैं। इसी तरह महाभारत काल में दानवीर कर्ण की ओर से झूठ बोल कर हासिल की गई शस्त्र विद्या युद्ध दौरान जरुरत पड़ने पर असफल हो गई थी। जो उनकी मौत का एक सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। कुंती का पुत्र होने के कारण कर्ण का नाम भी पांडवों में सही ढंग से शामिल नहीं हो सका। पांडवों में ज्येष्ठ होने के बावजूद कर्ण ने अपना समूचा जीवन एक सूतपुत्र बना कर ही गुजारा। एक अच्छा योद्धा होने के बावजूद कर्ण को वह सम्मान नहीं मिला। जिसका वह हकदार था। महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य, भगवान परशुराम और ऋषि वेदव्यास को ही ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान हासिल था। इतना ही नहीं किसी अन्य के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किए जाने पर उसे असफल कर देने का ज्ञान भी इनके पास था। ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान उन्होंने अपने कई शिष्यों को दिया। परंतु किसी अन्य के द्वारा चलाए ब्रह्मास्त्र को रोकने का ज्ञान किसी भी शिष्य के पास नहीं था।

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एक बार कर्ण गुरु द्रोणाचार्य के पास शस्त्र विद्या सीखने पहुंचे। तो उन्होंने कर्ण के सूत पुत्र होने की जानकारी मिलने पर उसे शस्त्र विद्या प्रदान करने से इंकार कर दिया। विद्या की जानकारी न मिलने पर कर्ण भगवान परशुराम के पास पहुंच गए। भगवान परशुराम ने प्रण लिया हुआ था कि वह शस्त्र विद्या और ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान केवल ब्राह्मण को ही देंगे। क्योंकि उन्हें इस विद्या के दुरुपयोग का अंदेशा था। उस काल में विनम्र, ब्रह्मज्ञाता और विद्यावान लोगों को ही ब्राह्मण कहा जाता था। कर्ण यह विद्या किसी भी रुप में सीखना चाहता था। तो उसने परशुराम के पास पहुंचकर अपने आप को ब्राह्मण का पुत्र बताया। समय के साथ-साथ वह विद्या में पारंगत होता गया। भगवान श्री परशुराम ने ब्रह्मास्त्र के अलावा कर्ण को अन्य सभी अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्रदान की।

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एक दिन जंगल में कहीं जाते हुए परशुरामजी को कुछ थकान महसूस हुई। कर्ण भी उनके साथ थे। परशुराम ने कर्ण से कहा कि वह थोड़ी देर आराम करना चाहते हैं। कर्ण ने उनका सिर अपनी गोद में रख लिया। परशुराम गहरी नींद में सो गए। तभी कहीं से एक बिच्छू आ गया। और वह कर्ण की जांघ पर डंक मारने लगा। कर्ण की जांघ पर घाव हो गया। कर्ण अपने गुरु परशुराम की नींद खुल जाने के भय से चुपचाप बैठा रहा। घाव से खून बहने लगा। बहते खून ने जब परशुराम को छुआ तो उनकी नींद खुल गई। उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुमने उस कीड़े को हटाया क्यों नहीं? तब कर्ण ने कहा कि आपकी नींद टूटने का डर था। तब परशुराम ने कहा कि किसी ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती है। तुम जरूर कोई क्षत्रिय हो। सच-सच बताओ। तब कर्ण ने भगवान परशुराम को सच से अवगत करवाया। भगवान परशुराम ने सच जानने के बाद कर्ण को श्राप दिया कि तुमने जिस तरह से झूठ बोल कर मुझसे शस्त्र विद्या हासिल की। जिस दिन तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी। तब तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी अस्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे।

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गौ हत्या की वजह से मिला था कर्ण को दूसरा श्राप
भगवान परशुराम के आश्रम से निकाले जाने के बाद कर्ण शब्द वाण चलाने की विद्या सीख रहा था। एक उसने जंगल में गाय की आवाज को कोई जंगली जानवर समझ उस पर वाण छोड़ दिया। वाण लगने से गाय मर गई। तब गाय के मालिक ने कर्ण को श्राप दिया। उसने कहा जैसे तुमने एक असहाय पशु को मारा है। एक दिन वह भी ऐसे ही मारा जाएगा। उसका ध्यान जब अपने शत्रु पर नहीं होगा। और वह असहाय होगा, तब उसे इसी गाय जैसी ही मौत मिलेगी।

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महाभारत युद्ध में कर्ण भूल गया था समूची शस्त्र विद्या
महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का पहिया धरती में फंस जाता है। जब कर्ण पहिये को निकालने रथ से नीचे उतरते हैं, उनका ध्यान शत्रु से हट जाता है।श्री कृष्ण. अर्जुन को कर्ण का वध करने के लिए कहते हैं। पहले तो अर्जुन आनाकानी करते हैं, लेकिन कृष्ण के कहने पर अर्जुन इस मौके का फायदा उठा कर्ण का वध कर देते हैं। भगवान परशुऱाम के श्राप और भूल से हुई गौ हत्या की कीमत कर्ण को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।

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प्रदीप शाही

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